सोलन : कोरोना महामारी के कारण प्रदेश की तमाम जनता एक तरफ महामारी के गंभीर खतरे से त्रस्त है टी वहीं वहीं दूसरी ओर इस महामारी से उतपन्न आर्थिक व सामाजिक संकट ने जनता का सुख छीन लिया है। लोग आर्थिक व सामाजिक रूप से भारी दिक़्क़तों का सामना कर रहे है। इससे सबसे बुरी तरह से मजदूर वर्ग प्रभावित व पीड़ित हुआ हुआ है। उद्योगों में कार्यरत मजदूरों के बड़े हिस्से का मार्च अप्रैल 2020 के वेतन का भुगतान नहीं किया गया है। असंगठित क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले श्रमिक वर्ग का बहुत बड़ा हिस्सा इस महामारी से आर्थिक तौर पर बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। मजदूर वर्ग पर विपदा के दौर में उसे आर्थिक समाजिक मदद की दरकार थी, उसे प्रदेश सरकार की सहानुभूति की जरूरत थी ताकि वह संकट काल से बाहर निकल कर अपना गुजारा बसर कर सके।
इन सभी बातों को लेकर आज ट्रेड यूनियन संयुक्त मंच मध्य प्रदेश एटक की अध्यक्षता में इंटक व सीटू ने डीसी के माध्यम से ज्ञापन मुख्यमंत्री को सौंपा है जिसमें विभिन्न मांगों का ब्यौरा दिया गया है। एटक के प्रदेशाध्यक्ष जगदीश चन्द्र भारद्वाज ने कहा कि हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र और त्रिपुरा जैसे राज्य में श्रम कानूनों में किए गए अथवा प्रस्तावित मजदूर विरोधी संशोधनों को तुरंत वापस लिया जाना चाहिए। उन्हें कहा कि काम के घंटों के अवधि को 8 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे कर दिया गया है इससे ना केवल मजदूर की छंटनी होगी अपितु कार्यरत मजदूरों के बंधुआ मजदूरी जैसी स्थिति हो जाएगी इसलिए इस निर्णय को वापस लेना चाहिए।
इंटक के प्रदेशाध्यक्ष बाबा हरदीप सिंह का कहना है कि आज पूरे देश मे आज 12 श्रमिक संगठनों ने केंद्र सरकार द्वारा एमपी, यूपी और गुजरात मे जिस तरह से श्रम कानूनों को निरस्त करने की है। उसका इंटक विरोध करती है। उन्होंने कहा कि भाजपा के नेतृत्व में गुजरात सरकार ने अगुवाई करते हए एकतरफा रुप से फ़ैक्टरी एक्ट के अनुसार वैध मुवावजे के बगैर दैनिक कामकाज का समय 8 से 12 घँटे कर दिया है। जिससे मजदूर वर्ग पर काफी असर पड़ रहा है।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ईपीएफ हिस्सेदारी को 12 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत करने की घोषणा की है। यह कदम मजदूर विरोधी है और लंबे समय के लिए उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने वाला है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में सैंकड़ो उद्योगों में हज़ारों मजदूरों को मार्च अप्रैल 2020 के वेतन का भुगतान नहीं किया है। वेतन भुगतान अधिनियम 1936 के अनुसार मजदूरों को वेतन का भुगतान तुरंत करवाया जाए। अगर ये सभी मांगे नही मानी जाती है तो आने वाले समय में सभी श्रमिक संगठन इसके खिलाफ कड़ा विरोध करेंगे।