सुंदरनगर : विश्वभर में फैली कोरोना महामारी के चलते सभी देशों की चिंता बढ़ चुकी है। भारत में भी इस वायरस का कहर तेजी से बढ़ता जा रहा है जो देश के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है। इस वायरस से मरने वाले लोगों के अंतिम संस्कार को लेकर प्रशासन द्वारा भी वैकल्पिक व्यवस्था की कवायद शुरू कर दी गई है। इसके अंतर्गत शव को जलाने के लिए चांदपुर शमशान घाट में मौजूद वुडन गेसिफायर (Wooden Gasifier) एक कारगर कदम साबित हो सकता है। इसको लेकर चांदपुर शमशान घाट कमेटी ने भी प्रशासन को इसका उपयोग करने की हामी भर दी गई है।
लगभग 20 वर्ष पहले सुंदरनगर में सर्वप्रथम स्थापित इस वुडन गेसिफायर मशीन में लोगों द्वारा शव को जलाने के लिए कोई रूचि नहीं दिखाई गई। लेकिन इस विकट परिस्थिति में यह मशीन एक सबसे बड़ी सुविधा के तौर पर सामने आ सकती है। बेशक कोरोना पीड़ित का अंतिम संस्कार करते समय प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग द्वारा पूरी सावधानी बरती जाती है, लेकिन इसके बावजूद एक गलती संक्रमण फैला सकती है। ऐसे में वुडन गेसिफायर मशीन बहुत कम लकड़ी के साथ शव को बिना प्रदूषण और वायरस फैलाने के डर से जला सकता है।
चांदपुर शमशान घाट कमेटी के मुख्य संरक्षक नरेंद्र गोयल ने कहा कि लगभग 20 वर्ष पहले इस वुडन गेसिफायर को मुंबई की एक कंपनी द्वारा पूर्ण रूप से नि:शुल्क स्थापित किया था। उन्होंने कहा कि इस गेसिफायर में परंपरागत तरीके की बजाय मात्र 60 किलोग्राम लकड़ी के गुटकों से शव का दाह संस्कार हो जाता है। इस वुडन गेसिफायर को प्रदेश में सर्वप्रथम सुंदरनगर के बाद शिमला के संजौली शमशान घाट में स्थापित किया गया था। उन्होंने कहा कि इसमें शव जलाने के उपरांत अस्थियों के सिवाए अन्य कोई अवशेष नहीं बचता है।
नरेंद्र गोयल ने कहा कि स्थानीय लोगों द्वारा इस वुडन गेसिफायर का ज्ञान नहीं होने के कारण इसमें शव को जलाने को लेकर दिलचस्पी नहीं दिखाई गई और इसमें अधिकतर लावारिस लाशों का दाह संस्कार ही हुआ है। उन्होंने प्रशासन से इस वुडन गेसिफायर को उपयोग करने को लेकर पूर्ण सहयोग देने के लिए आश्वस्त किया गया है।