नाहन: वैश्विक महामारी को लेकर एक ऐसा माहौल बन चुका है, जिसमें सिवाए खौफ के कुछ नजर नहीं आ रहा है। लेकिन यह बात समझ लेनी चाहिए कि अगर संक्रमित व्यक्ति खुद हाैंसला रखे तो 75 साल की उम्र में भी कोरोना को मात दी जा सकती है। परिवार से कोसों दूर रहकर करीब 75 साल के खलील अहमद ने इस बात को साबित कर दिखाया है। पांवटा साहिब के सूरजपुर में अपने घर भी लौट आए हैं। 5 मार्च को हाजी खलील अहमद ने ऊना की कुठेड़ मस्जिद का रुख किया था। वहां कुछ लोग दिल्ली की मरकज से आए थे। यही कारण बना कि वो भी कोरोना संक्रमित हो गए।
7 अप्रैल को रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद हाजी खलील अहमद को टांडा शिफ्ट कर दिया गया। 27 अप्रैल तक हाजी खलील अहमद की तीन बार सैंपल जांच हुई। इस दौरान नेगेटिव पाए गए। चूंकि मोबाइल भी नहीं रखते हैं, लिहाजा परिवार से सीधा संपर्क भी नहीं हुआ। टांडा के चिकित्सक जरूर उनकी बात परिवार से करवाते रहे। एमबीएम न्यूज नेटवर्क की सीधी बात तो खलील अहमद से नहीं हुई, लेकिन बेटे रवीन अहमद से फोन पर लंबी बातचीत हुई। इस दौरान बताया गया कि पिता को 11 मई तक ऊना में ही इंस्टीटयूशनल क्वारंटाइन पर रखा गया। बेटे का यह भी कहना था कि इस दौरान पिता को बेहतर उपचार दिया गया। इसी की बदौलत वो निजी वाहन से 12 मई को घर लौट आए हैं। उन्होंने बताया कि वापस लौटकर बताया कि उन्हें कभी लक्षण तक महसूस नहीं हुए। एक बार हल्का ब्लड प्रैशर जरूर महसूस किया था।
हाजी खलील अहमद के बेटेरवीन अहमद ने यह भी बताया कि सरकार द्वारा उन्हें घर पर रखने के लिए कुछ दिशा -निर्देश दिए गए हैं, जिसकी बारीकी से पालना हो रही है। कुल मिलाकर आपको कोरोना से घबराना नहीं है। साथ ही भयभीत भी नहीं होना है। केवल और केवल सावधानी के साथ सरकार द्वारा दी जा रही एडवाइजरी की पालना की जानी चाहिए। ऐसा कतई नहीं समझा जाना चाहिए कि कोरोना को हराया नहीं जा सकता। हाजी खलील अहमद की इस दास्तां से उन बुजुर्गों को भी बेपरवाह नहीं होना है, जो किसी बीमारी से पीडि़त है। अलबत्ता हौंसला कायम रखना है। परिवार ने मेडिकल स्टाफ का भी शुक्रिया किया है, जिन्होंने बजुर्ग को कोरोना मुक्त करने में अहम भूमिका निभाई। साथ ही बेहतरीन उपचार पर सरकार का धन्यवाद किया है।