शिमला : कोरोना पॉजिटिव होने वाला शख्स परिवार से अलग ही हो जाता है। यदि, मौत हो जाए तो अंतिम संस्कार का मौका भी नहीं मिलता। ऐसे में दाह संस्कार का दायित्व निभाने वाले ही खौफजद हो जाएं और एक महिला प्रशासनिक अधिकारी इसका जिम्मा उठा ले तो लाजमी तौर पर इस संकट की घड़ी में लिखे जा रहे इतिहास में नाम दर्ज हो ही जाएगा।
कोरोना से 21 वर्षीय युवक के शव के दाह संस्कार में राजधानी कीं एसडीएम (शहरी) नीरज चांदला खुद गवाह बनी। मन में श्मशानघाट पर जाने का कोई खौफ नहीं था। यहां तक कि संस्कार के लिए की जाने वाली तमाम क्रिया की व्यवस्था भी संभाली। कर्त्तव्य परायणता को तवज्जो देते हुए रात 10ः30 बजे से लगभग 1ः00 बजे तक मोर्चे पर डटी रही। इस बात का भी कतई भी इल्म नहीं था कि घर पर 7 साल की बेटी ने कुछ खाया होगा या नहीं। मम्मी की इंतजार में सो भी न पा रही हो। अब आपके सामने यह सवाल पैदा हो सकता कि आखिर एक प्रशासनिक अधिकारी को क्यों मोर्चा संभालना पड़ा।
दरअसल, शिमला नगर निगम ने दाह संस्कार से हाथ पीछे खींच लिए थे। इसकी जानकारी जब एचएएस नीरज चांदला को मिली तो उन्होंने खुद ही मोर्चा संभालने का फैसला ले लिया। वो उस परिवार का भी दर्द समझने की कोशिश कर रही थी, जिसने बचपन से ही अपने बेटे को किडनी की बीमारी से जूझते देखा हो। मौत की वजह कोरोना बन गई। राजनीतिक पृष्ठभूमि में एक पहचान रखने वाले दिवंगत रिखी राम कौंडल की बेटी नीरज चांदला के साहसिक कदम को हर कोई सराहा रहा है। वैसे भी हिमाचल में हिन्दू धर्म से ताल्लुक रखे वाली महिलाओं के श्मशानघाट पर जाने का चलन काफी कम है। बावजूद इसके महिला एचएएस अधिकारी ने अपने दायित्व को बखूबी निभाया।
ये बोली…
एमबीएम न्यूज नेटवर्क से खास बातचीत में महिला एचएएस अधिकारी का कहना था कि बचपन से ही डर व खौफ को नजदीक नहीं आने दिया। बहादुरी व साहस परिवार की पहचान है। घर लौटने के बाद सावधानी के बारे में पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा कि श्मशानघाट में करीब 25 से 30 फुट दूर थी। केवल उन लोगों के लिए पीपीई किट अनिवार्य थी, जो शव को टच कर रहे थे। एसडीएम ने कहा कि घर लौटने के बाद वो आइसोलेट रही। पीपीई किट को लेकर एसडीएम ने कहा कि प्रोटोकॉल के तहत हरेक कदम उठाया गया था।उनका यह भी कहना था कि यदि नगर निगम जिम्मेदारी का निर्वहन करती तो कोई समस्या पैदा नहीं होती।