शिमला: 2012 में मात्र 25 साल की उम्र में पहली ही कोशिश में आईएएस का रुतबा हासिल करने वाले कांगड़ा के डीसी राकेश प्रजापति की बिंदास कार्यशैली से हर कोई वाकिफ है। कोरोना संकट में समूचे प्रदेश में सबसे पहले चुनौती का सामना करना पड़ा। कांगड़ा से ही पॉजिटिव मामलों की शुरुआत हुई। अपने स्तर पर ही व्यवस्था को प्रभावी बनाने के फैसले लेने में भी माहिर रहे।
संकट की घड़ी में आपातकालीन बैठकों में भी व्यस्त रहने के बावजूद एक ऐसी व्यवस्था बना रखी थी कि उनके मोबाइल से हर हाल में रिस्पांस आता था। चंद फैसले ऐसे भी लिए, जिन्हें बाद में समूचे प्रदेश ने भी लागू किया। इसमें आवश्यकता वाली वस्तुओं के अलावा दुकानों को खोलना था। बहरहाल, 33 साल के यंग आईएएस अधिकारी को आज इंडिया टुडे ग्रुप ने रियल एक्शन हीरो के तौर पर अलंकृत किया है। इसके निश्चित तौर पर वो हकदार भी हैं। दीगर है कि इंडिया टुडे मैग्जीन ने हरेक राज्य से एक उस आईएएस अधिकारी को चुना है, जिसने कोरोना संकट में बेहतरीन कार्य किया हो।
अगर बिंदास अधिकारी की पृष्ठभूमि में जाएं तो उत्तर प्रदेश के एक बेहद ही साधारण से परिवार से ताल्लुक रखते हैं। शायद, ये भी वजह हो सकती है कि गरीब के दर्द को करीब से महसूस कर सकते हैं। आर्मी में सूबेदार के बेटे राकेश प्रजापति के मन में अचानक ही समाज के लिए कुछ करने का भाव जाग उठा। फिर क्या था, पहली ही कोशिश में देश की सर्वोच्च सेवा परीक्षा उत्तीर्ण कर ली। 2012 में हिमाचल कैडर मिला। कांगड़ा के डीसी बनने से पहले ऊना व हमीरपुर में भी उपायुक्त के तौर पर ही सेवाएं दे चुके हैं। बीटस पिलानी से मैकेनिकल व कंप्यूटर इंजीनियरिंग की डिग्री एक साथ हासिल कर ली। पढ़ाई में तेज थे, लिहाजा पांच साल में ही डबल डिग्री होल्डर बन गए।
क्यों रियल एक्शन हीरो अवार्ड…
हिमाचल के सबसे बड़े जिला कांगड़ा में 14 सब डिवीजन हैं। यहां चुनौती सबसे अधिक थी। सोचिए, 18 मार्च को ही लॉकडाउन जैसे फैसले लिए। रेलवे व फ्लाइटस इत्यादि का प्रवेश रोकने का फैसला अपने ही स्तर पर बिंदास अधिकारी ने लिया। यही नहीं, देश में लॉकडाउन लागू होने से पहले कांगड़ा जिला में दो हजार लोग विदेशों से पहुंच चुके थे। जबकि 17 हजार अन्य राज्यों से आ गए थे। इनकी मॉनिटरिंग का गजब प्लान तैयार किया। यही नहीं, लॉकडाउन के दौरान भी अनुमति लेकर लगभग 35 हजार लोग कांगड़ा जिला में आए हैं।
आज प्रदेश का सबसे बड़ा कंट्रोल रूम कांगड़ा में ही चल रहा है। इसमें 24 कर्मचारी 24 घंटे ही तैनात हैं। ई-पास की व्यवस्था शुरू करने वाला भी कांगड़ा सबसे पहला जिला था। हंगर लाइन भी काफी चर्चित हुई, ताकि कोई भूखा न सोए। जिला के 50 कैमिस्टस को सूचीबद्ध किया गया, ताकि आपातकालीन स्थिति में बाहरी राज्यों से भी दवाओं का इंतजाम हो सके। आप यह जानकर हैरान होंगे कि देश के लॉकडाउन से पहले ही 1000 ऐसे वाहनों की व्यवस्था कर ली थी, जो लाउड स्पीकर के जरिए जागरूकता फैलाने का कार्य शुरू कर चुके थे। धर्मषाला में साउथ अफ्रीका व भारत के मैच को भी समय पर रद्द करवाने का फैसला लिया।
चाहते तो आज बीएमडब्ल्यू जैसी कार में सकते थे घूम…
एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने जब आईएएस अधिकारी राकेश प्रजापति की पृष्ठभूमि को खंगालने की कोशिश की तो पता चला कि बैच में 15 युवा शामिल थे। इसमें से 13 विदेशों में सैटल हैं, जो बीएमडब्ल्यू जैसी लग्जरी कारों का इस्तेमाल करते हैं। चाहते तो वो भी आज निजी क्षेत्र में हर साल करोड़ों का पैकेज ले सकते थे। 2008 से 2009 में फ्रांस में बतौर जूनियर रिसर्च एसोसिएट की नौकरी भी मिल गई थी। यहीं से उनका सालाना पैकेज आज करोड़ों में भी हो सकता था। मगर उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा को पहली ही कोशिश में क्रैक करने का मन बना लिया था।
क्या बोले…
बातचीत के दौरान कांगड़ा के ज़िलाधीश राकेश प्रजापति ने कहा कि जीवन में एक अलग ही सोच रखने का प्रयास किया, ताकि समाज के एक विशेष वर्ग के लिए कुछ कर पाएं। उनका कहना था कि कोरोना संकट से निपटने के लिए उन्हें जो ठीक लगा, उसे क्रियान्वित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। स्पष्ट तौर पर कहा कि वो इस अवार्ड के अकेले हकदार नहीं हैं। इसे वो अपनी उस टीम को समर्पित करते हैं, जो उनके साथ दिन-रात योद्धा की तरह डटी रही। डीसी का यह भी कहना था कि एक मामूली सी चूक काफी महंगी साबित हो सकती है। इन्हीं शब्दों को मन में बिठाकर कार्य किया है।