शिमला : सिखों को जिंदादिली की मिसाल माना जाता है। इस कसौटी पर बद्दी के गुल्लरवाला के रहने वाले सरदार महेंद्र सिंह ने खरा उतरकर दिखाया है। साथ ही उन लोगों के लिए भी प्रेरणा बने हैं, जो धन होने के बावजूद भी सेवाभाव में कंजूसी बरतते हैं। अहम बात यह है कि सरदार महेंद्र सिंह यह भी बखूबी समझते हैं कि इन प्रवासी मजदूरों की बदौलत ही आज पूरे इलाके में संपन्नता है। दरअसल एक अनूठी पहल करते हुए सरदार महेंद्र सिंह ने प्रवासी मजदूरों के लगभग 110 कमरों का दो महीने का किराया न लेने का फैसला लिया है। रकम 2 से 4 लाख के बीच की है।
महेंद्र सिंह द्वारा बनाई गई कालोनी के 110 कमरों में लगभग 400 प्रवासी रहते हैं। किराया ही नहीं, बल्कि उन्होंने इन परिवारों को राशन भी मुहैया करवाने का बीड़ा उठा रखा है। लाजमी तौर पर कोरोना संकट में ऐसे कर्मवीरों की दरियादिली की भी प्रशंसा की जानी चाहिए। एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत में उनका कहना था कि 2003 में औद्योगिक पैकेज आया। इसके बाद धीरे-धीरे बद्दी व नालागढ़ में संपन्नता तेजी से बढ़ी। वो मानते हैं, इस संपन्नता की रीढ ये प्रवासी ही हैं। अहम खुलासे में उनका यह भी कहना था कि पैकेज से पहले इस इलाके के लोग भी प्रवासी कामगारों जैसा ही जीवन व्यतीत किया करते थे। पैकेज के बाद उद्योगों में रोजगार मिलने के बाद धीरे-धीरे संपन्नता आनी शुरू हुई। आज लोगों की लाखों की आमदनी केवल किरायों से ही है।
कामगारों को ही श्रेय देते हुए कहा कि हरेक कार्य में इन्हीं का योगदान है। 18 सालों से इलाका इनकी वजह से ही समृद्ध हो रहा है। आज अगर इन पर संकट की घ़ड़ी आई है तो क्या हम दो महीने का किराया नहीं छोड़ सकते। आपको यह भी बता देना चाहेंगे कि सरदार महेंद्र सिंह नहीं चाहते थे कि उनके इस कार्य को मीडिया में प्रकाशित किया जाए। जब उन्हें इस बात का अहसास करवाया गया कि उनकी सोच से कईयों को प्रेरणा मिल सकती है, तब जाकर हल्की-फुल्की बातचीत करने को तैयार हुए। दीगर है कि चंद रोज पहले सिरमौर के राजगढ़ से भी एक शख्स ने दुकानदारों का किराया माफ करने का निर्णय लिया था।