नाहन : प्रदेश सरकार शिक्षा व्यवस्था को लेकर सरकारी विद्यालयों की अपेक्षा प्राइवेट स्कूलों में जाने वाले छात्रों पर अंकुश लगाने के दावे करती नहीं थकती। खासकर प्रदेश का शिक्षा विभाग प्री-नर्सरी जैसे कार्यक्रम छेड़ कर सरकारी स्कूलों के छात्रों का पलायन रोकने के लिए प्रयास कर रहा है। मगर कई शिक्षा नीतियां ऐसी हैं जिनसे साफ़ पता चलता है कि धरातल पर कार्यक्रम पूरी तरह से लागू नहीं हो रहे हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण शीतकालीन विद्यालयों में सामने आया है।
दिसंबर 2019 में
शीतकालीन विद्यालयों में 8वीं कक्षा की वार्षिक परीक्षा संपन्न हुई। इन स्कूलों में “फेल न करने की नीति” में बदलाव के चलते आठवीं में असफल विद्यार्थियों को संबंधित विषयों की परीक्षा शीतकालीन अवकाश के उपरांत लेने का निर्णय लिया गया है। मगर अत्यंत अफ़सोसजनक बात यह है कि स्कूल खुलने के बाद एक माह का समय बीत जाने के बावजूद भी विद्यार्थियों की परीक्षा नहीं हो पाई है।
अब इन छात्रों के अभिभावक, स्वयं छात्र व विद्यालय प्रशासन असमंजस की स्थिति में है कि इन छात्रों को कौन सी कक्षा में बिठाया जाए व परीक्षा कब ली जाए। इससे साफ प्रमाणित होता है कि सरकारी विद्यालयों में पढाई की हालत खस्ता है। आधी-अधूरी नीतियों के चलते छात्रों का भविष्य दांव पर लगा है।
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