हमीरपुर: भारतीय उपमहाद्वीप से लेकर पश्चिमी देशों में जाने पहचाने वाली जलेबी उत्तर भारत में अधिक मशहूर है सर्दियों के मौसम में खाने के बाद अगर गरमा-गरम जलेबी मिल जाए तो बस मजा ही आ जाता है। शहर की दुकान शाम जलेबी सेंटर में बनने वाली जलेबी कुछ खास है यूं तो हलवाई की दुकान पर हर तरह की मिठाई मिलती है लेकिन शहर में गांधी चौक से महज 100 मीटर की दूरी पर शामा जलेबी सेंटर के नाम से मशहूर हलवाई सिर्फ जलेबी बनाता है।
4 दशक से अधिक समय से लोगों के दिलों पर जलेबी की वजह से जगह बनाई इस छोटी सी दुकान में अक्सर भीड़ रहती है। आम जलेबी से हटकर धारी वाले कपड़े से बनने वाली जलेबी यह इसे अन्य दुकानदारों से अलग बनाती है। इसे बनाने के लिए सिर्फ रथ वनस्पति घी का ही इस्तेमाल किया जाता है। यहां एक बार जलेबी खा जाए वह दोबारा इस दुकान को ढूंढता है। धनी आबादी के कारण शहर का स्वरूप बदल चुका हो लेकिन जलेबी का स्वाद आज भी बरकरार है।
खेड़ा की ग्राम पंचायत दई दा नौण के निवासी विधीचंद कहते हैं कि उन्होंने 1967 में हमीरपुर बाजार में कपड़े की दुकान शुरू की थी। लेकिन जलेबी की दुकान 1974 में शुरू की थी उस दौरान मैंने 4 रूपये किलो के हिसाब से जिलेबी बेची। हालांकि उस समय इसका बाजार में भाव 5 रूपये किलो था। कपड़े से जलेबी का कारोबार शुरू करने के बारे में विधि चंद कहते हैं कि दुकान में एक बाबा आया और उसे मैंने चाय पिलाई और उसके कपड़ों पर चाय गिर गई, बाबा के साथ कुछ बहस भी हुई लेकिन बाद में उसी बाबा के आशीर्वाद से मैंने जलेबी की दुकान शुरू की। विधि चंद कहते हैं कि हमने जलेबी बनाने की गुणवत्ता से कभी समझौता नहीं किया। एक ही क्वालिटी का घी उपयोग किया जाता है, जबकि अन्य सामग्री में गुणवत्ताका ध्यान रखा जाता है। इसी बजह से यहां लोगों जलेबी के लिए कई बार 1 घंटे से भी अधिक इंतजार करते हैं।
अब बेटे बढ़ा रहे कारोबार..
जीवन के 80 बसंत देख चुके विधीचंद दुकान पर कभी-कभार ही बैठते हैं उनके इस कारोबार को अब दोनों बेटे आगे बढ़ा रहे हैं। कारोबार बढ़ाने के साथ बेटे राजपाल व संजीव अब किराए की दुकान को छोड़कर अपनी दुकान कर ली है। दुकान में अपने टेबल के साथ कच्चे फर्श की जगह अब बेशक मार्बल बिछ गया हो, लेकिन जो कभी नहीं बदला वो है इस जलेबी का स्वाद । बेटे पिता की इस कारोबार को बखूबी आगे बढ़ा रहे हैं परिवार का सारा खर्च भी इसी से चलता है।
पहले ग्राहक को मुफ्त जलेबी..
लोगों से अक्सर सुना है कि बिधि चंद की दुकान में सप्ताह में 1 दिन पहले ग्राहक को मुफ्त जलेबी मिलती है। जब इसी सवाल के साथ विधीचंद को कुरेदा तो उन्होंने कहा कि जब से जीवन में मैंने होश संभाला है तो भगवान शिव की आराधना करता आ रहा हूं। 1974 में जब मैंने यह दुकान शुरू की तो उससे पहले भी मैं भगवान भोले की भक्ति के लिए सोमवार का व्रत रखता था। इसी कारण हर सोमवार को पहले ग्राहक को जलेबी मुफ्त दी जाती है। बकौल विधीचंद शिव भगवान की कृपा से फल फूल रहा है यह कारोबार को आगे बढ़ा रहे हैं। खुशी की बात यह है कि बेटों के साथ अब मेरे पोते पोती अभी काम में हाथ बंटा रहे हैं। मेरा व परिवार का रोजगार जलेबी की दुकान ही है कठिन दौर में यह दुकान खोलकर गुणवत्ता बरकरार रखी और लोगों के दिलों में जगह बनाई। आज किराए की दुकान से अपनी दुकान में जलेबी तैयार कर लोगों के मन की इच्छा को पूरा किया जा रहा है।
यह सामग्री होती है इस्तेमाल..
जलेबी सेंटर में रथ घी से जलेबी तैयार होती है । उत्तम शुगर की चीनी चने की दाल मूंग की दाल सूजी व मैदा जलेबी बनाने में प्रयोग में लाया जाता है।
जलेबी बनाने का समय
शामा जलेबी सेंटर में सुबह 10:00 बजे से लेकर 2:00 बजे तक और शाम 3:00 से 7:00 बजे तक जलेबी तैयार की जाती है। दोपहर 2:00 से 3:00 बजे तक लंच का समय होता है और इस समय जलेबी नहीं बनाई जाती है। दिन में 50 किलोग्राम से अधिक जलेबी तैयार की जाती है। जलेबी के लिए कई बार लोगों को इतंजार भी करना पड़ता है। गरमा गरम जलेबी खाने के लिए हर वर्ग के लोग यहां आते हैं स्कूल के दिनों में तो यह बच्चों की भीड़ लग जाती है।
क्या कहते है बिधि चंद के पुत्र
जलेबी बनाने वाले हलवाई एवं विधि चंद के पुत्र राजपाल व संजीव पाल कहते हैं कि पिता विधिचंद के पद चिन्हों पर चलते हुए हम इसे आगे बढ़ा रहे हैं। पिताजी सोमवार का व्रत करते हैं और यह उसी तपस्या का फल है कि आज हम एक खास पहचान मिली है बुढ़ापे के कारण पिता अब घर पर अधिक रहते हैं जबकि दुकान में कम आते हैं दोनों बेटे कहते कि हमीरपुर शहर में जलेबी की दुकान होने का गौरव भी हमें मिला है।
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