शिमला : क्रिसमस के पर्व पर पूरा देश आज़ जश्न मना रहा है। अंग्रजों की ग्रीष्मकालीन राजधानी रही शिमला में कई दशकों बाद लोगों व पर्यटकों ने यहां के ऐतिहासिक फिर शुरू हुई क्राइस्ट चर्च की धड़कन बने ऐतिहासिक क्राइस्ट चर्च की (बैल ) घंटी की आवाज़ सुनी। इस घंटी की मंत्रमुग्ध करने वाली धुन की आवाज़ न केवल रिज़ मैदान बल्कि शहर के कई उपनगरों तक भी गूंजी। क्रिसमस के बाद अब हर रविवार को चर्च में होने वाली प्रार्थना सभा से पहले भी इस बैल को बजाया जाएगा।
दरअसल इस बैल को 150 साल पहले इंग्लैंड से लाकर यहां लगाया गया था। तब से लेकर साल 1982 तक लगातार इसकी आवाज से ऐतिहासिक चर्च ओर राजधानी शिमला गूंजती थी, लेकिन उसके बाद तकनीकी खामियों के कारण यह खराब पड़ी थी और इसे बजाया नहीं जा रहा था। अहम बात यह रही कि कई सालों तक इस बैल को ठीक ही नहीं किया गया। सरकारों ने भी इसे हल्के में लिया और इसे ठीक करने को लेकर कोई प्रयास किए गए। शिमला के रहने वाले मिस्टर विक्टर डीन ने घंटी को ठीक करने का जिम्मा लिया और 20 दिन की मरम्मत के बाद बैल को दुरुस्त करवाया गया।
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चर्च के फादर मोहन लाल ने कहा कि मिस्टर विक्टर डीन ने इस बेल की मरम्मत करवाई है। अपना पूरा समय उन्होंने इस काम के लिए दिया और इस बैल के जो पार्ट्स गुम हो गए थे उन्हें नए सिरे से बनाने के साथ ही जो पुराने पार्ट्स खराब हो गए थे उन्हें दोबारा से ठीक किया गया है। इसमें नए हैमर, वायर और रस्सा लगाया और चर्च में अब इसे पहले की तरह बजाया जा रहा है।
इस बैल के कुछ पार्ट्स चंडीगढ़ से लाए गए है। लकडी का नया सांचा भी इस बैल के लिए बनाया गया है। इस बैल में छ: सुर हैं और इसे हाथों से रस्से से खींच कर बजाया जाता है। इसमें छ: पाइप लगी हैं जिसमें से छ: सुर निकलते हैं और सरगम के सुरों की ध्वनि पैदा करते हैं। ऐतिहासिक क्राइस्ट चर्च को शिमला का ताज कहा जाता है। यह उतरी भारत में दूसरा सबसे पुराना चर्च है। वर्ष 1857 में नियो गोथिक कला में बना यह चर्च एंग्लीकेन ब्रिटिशन कम्युनिटी के लिए बनाया गया था।