सोलन : प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की दिशा में आगे बढ़ते हुए डॉ॰ वाईएस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी ने विवि द्वारा विकसित तीन प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण के लिए हिमाचल की कंपनियों के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।
तीन प्रौद्योगिकी अदरक और लहसुन के मूल्य संवर्धन के लिए प्रोटोकॉल सेब प्रसंस्करण इंडस्ट्री और प्रौद्योगिकी की स्थापना के लिए तकनीकी कार्य ज्ञान और जंगली खुरमानी की गिरी का तेल निकालने के लिए प्रसंस्करण उद्योग की स्थापना का तकनीकी कार्य ज्ञान को डॉ देविना वैद्य, डॉ मनीषा कौशल और अनिल गुप्ता द्वारा विकसित किया गया है। यह तीनों वैज्ञानिक विश्वविद्यालय के खाद्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग में कार्यरत हैं। इन प्रौद्योगिकियों को आईसीएआर की पोस्ट हार्वेस्ट इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के तहत विकसित किया गया है।
पहली तकनीक अदरक और लहसुन की विभिन्न मूल्य वर्धित उत्पादों के विकास के लिए मददगार है। विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पूर्ण उत्पाद विकास पर काम किया है। अदरक लहसुन के पेस्ट के निर्माण के दौरान उद्यमियों के सामने आने वाली तकनीकी समस्याओं को हल करने का प्रयास किया है। यह तकनीक राज्य के सिरमौर बेल्ट के किसानों के लिए एक वरदान साबित हो सकती है। जहां किसानों को अक्सर सीजन के दौरान अपनी उपज के लिए सही मूल्य नहीं मिल पाता। इस प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण के लिए कसौली की कंपनी पूर्वा खाद्य उद्योग के साथ हस्ताक्षर किया गया है। कंपनी इस प्रौद्योगिकी का उपयोग राज्य में अच्छी गुणवत्ता वाले अदरक लहसुन के पेस्ट के विकास के लिए करेगी।
दूसरी तकनीक सेब के प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन से संबंधित है। वर्तमान में राज्य के कुछ क्षेत्रों में बाज़ार के लिए अप्रयुक्त सेब को बिना किसी पूर्व उपचार किए बिना जूस निकालने इस्तेमाल किया जा रहा है। परिणामस्वरूप कम गुणवत्ता वाला अंतिम उत्पाद तैयार हो रहा है। इसकी खराब गुणवत्ता के कारण किसानों को इसका अच्छा दाम नहीं मिल पा रहा है। विश्वविद्यालय ने उपरोक्त समस्याओं को दूर करने के लिए प्रसंस्करण के लिए सेब के पूर्ण उपयोग का एक प्रोटोकॉल विकसित किया है। इस तकनीक को सोलन की कंपनीवाइल्ड हिमालय को स्थानांतरित किया गया है।
तीसरी तकनीक जंगली खुरमानी की गिरी का तेल के प्रसंस्करण उद्योग की स्थापना के लिए है। किन्नौर, चंबा, ऊपरी शिमला और मंडी जिले के कुछ हिस्सों के किसान पारंपरिक तरीकों का उपयोग करके खुरमानी की गिरी का तेल निकाल रहे हैं। हालांकि तेल की खराब गुणवत्ता और उपभोक्ताओं के बीच पोषण प्रोफ़ाइल की जानकारी का आभाव के कारण किसानों को अपने उत्पाद से उचित लाभ नहीं मिल रहा है।
विश्वविद्यालयके कुलपति डॉ परविंदर कौशल और विभाग के वैज्ञानिकों की उपस्थिति में अनुसंधान निदेशक डॉ जेएन शर्मा द्वारा एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए। इस अवसर पर डॉ परविंदर कौशल ने विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों को उद्योग की कुछ समस्याओं से निपटने के लिए प्रौद्योगिकी विकसित करने और प्रगतिशील उद्यमियों को इस शोध को उपलब्ध कराने के लिए बधाई दी। डॉ कौशल ने कहा कि तकनीकी विशेषज्ञता के अलावाए उद्यम स्थापित करने के लिए विश्वविद्यालय इन कंपनियों की मदद करेंगे। तीनों कंपनियां अपने उत्पाद लेबल पर विश्वविद्यालय प्रौद्योगिकी का नाम लिखेगें।