मंडी : एक वो दौर था, जब राजा अपना शौक पूरा करने के लिए कुछ भी कर देते थे और एक आज का दौर है, जब जरूरतों को पूरा करने के लिए भी वर्षों लग जाते हैं। बात 1877 से पहले की है, जब मंडी रियासत के राजा विजय सेन हुआ करते थे। देश पर अंग्रेजों की हकुमत थी।
जार्ज पंचम ने दिल्ली में एक समारोह का आयोजन किया, जिसमें देश भर की रियासतों के राजाओं को बुलाया गया। रियासत के राजा विजय सेन भी इसमें शामिल होने दिल्ली गए। समारोह के दौरान वहां पर जार्ज पंचम ने कार को लेकर प्रतियोगिता करवाई। प्रतियोगिता के अनुसार घोड़ों और कार के बीच रेस लगवाई गई। राजा विजय सेन के घोड़े ने कार को पछाड़ते हुए जीत हासिल की। ऐसे में जार्ज पंचम ने शर्त अनुसार राजा विजय सेन को कार ईनाम में दे दी। लेकिन कार को मंडी लाना संभव नहीं था। अगर ले भी आते तो यहां पर उसे चलाना कहां था, क्योंकि उस दौर में सड़कों और पुलों की कोई व्यवस्था नहीं होती थी। राजा विजय सेन ने ब्रिटिश हकुमत से मंडी शहर को जोड़ने के लिए मुझे बनाने का आग्रह किया।
राजा के आग्रह को स्वीकार करते हुए मुझे बनाने का वादा लिया । राजा ने इसके लिए एक लाख रूपए भी अदा किए। 1877 में मैं बनकर तैयार हो गया। मुझे इंग्लैंड में बने विक्टोरिया पुल का प्रतिरूप बताया जाता है। यही कारण है कि इसे ब्रिटिश हकूमत ने मुझे भी विक्टोरिया पुल का नाम दिया, जबकि मंडी रियासत ने विजय केसरी का नाम दिया था। राजा ने ईनाम में जीती कार को दिल्ली में खुलवाकर, पुर्जे-पुर्जे अलग करवाकर मंडी पहुंचाया और फिर यहां पर उसकी सवारी का आनंद मेरा इस्तेमाल कर उठाया।
ब्रिटिश हकुमत के जिन इंजीनियरों ने मेरा निर्माण किया था, उन्होंने 100 साल उम्र बताई थी, लेकिन 141 वर्ष बीत जाने के बाद भी मैंने तब तक रिटायरमेंट नहीं ली, जब तक छोटा भाई जिम्मेदारी उठाने नहीं आया। आपको बताता हूं कि मैंने वैसे ही शान से खड़े होने का प्रयास किया है, जैसा शुरुआती दौर में था। वैसे तो मुझे 41 वर्ष पहले भारमुक्त हो जाना चाहिए था, लेकिन इंतजार कर रहा था कि कब छोटा भाई जिम्मेदारी संभालेगा। तीन साल पहले बेहद ख़ुशी हुई थी जब छोटे भाई की जिम्मेदारी संभालने की खबर मिली थी। मैंने शहर को करीब से महसूस किया है, ब्यास नदी से गहरा रिश्ता बना पाया हूं। आज रिटायरमेंट पर उन इंजीनियर्स की याद भी आ रही है, जिनकी बदौलत वजूद में आया था।
क्या कहते है इतिहासकार मेरे बारे में…
इतिहासकार कृष्ण कुमार नूतन बताते हैं कि विक्टोरिया पुल बनने के बाद मंडी रियासत की राजधानी को नई पहचान मिली। हालांकि पुल छोटी गाडि़यों के लिए बनाया गया था, लेकिन एक दौर ऐसा भी आया जब इस पुल से रोजाना भारी भरकम ट्रक और बसें गुजारी गई। जब तक भ्यूली पुल नहीं बना था, पठानकोट जाने वाले सभी वाहनों के लिए इसी पुल का इस्तेमाल किया जाता था।
अब आगे ..
आज के बाद (8 -12 -2019 ) वाहनों के गुजारने का क्रम बंद हो जाएगा। सिर्फ पैदल चलने वालों के लिए रिटायरमेंट बाद भी सेवाएं देता रहूंगा।
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