विशेष संवाददाता/शिमला
बंजार बस हादसे के बाद से राज्य सरकार की स्थिति एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई वाली हो गई है। अगर ओवरलोडिंग पर सहमति दी जाती है तो सरकार को किरकिरी का सामना करना पडे़गा। वहीं दूसरी तरफ यातायात सुविधा न मिलने से प्रदेश के कई हिस्सों में छात्रों को आंदोलन पर विवश होना पड़ रहा है। दरअसल हिमाचल पथ परिवहन निगम द्वारा कई वर्गों को निशुल्क यात्रा की सुविधा दी जाती है। इसमें बड़ा हिस्सा छात्रों का ही है।
इसके अलावा पुलिस, मान्यता प्राप्त पत्रकार व दिव्यांग इत्यादि भी हैं। यह भी बड़ी वजह है कि निगम की बसों पर बोझ बढ़ा है। सवाल उठता है कि जब जयराम सरकार ने सत्ता संभालते ही निजी बस ऑपरेटर्स को 25 फीसदी तक किराया बढ़ाकर बड़ी सौगात दी थी तो सरकार क्यों इस बात पर विचार नहीं करती कि निशुल्क सेवा में कुछ हिस्सेदारी निजी बस ऑपरेटर्स की भी होनी चाहिए। एचआरटीसी को जहां परिवहन सुविधा को लेकर आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है, वहीं निजी बस ऑपरेटर्स सुविधाजनक स्थिति में हैं।
निजी बसों में सफर करने वाले केवल वही यात्री होते हैं, जिन्हें किराया चुकाना होता है, जबकि निगम की बसों में निशुल्क यात्रियों की भरमार होती है। हालांकि निशुल्क यात्रा पर निगम को ग्रांट भी मिलती है, लेकिन जानकार बताते हैं कि इसकी भी लंबी उधारी चलती है। निजी बसों में निशुल्क यात्रा की सुविधा सरकार के लिए आसान नहीं है, क्योंकि इस पर निजी बस ऑपरेटर्स बवाल मचा सकते हैं। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि भविष्य में जारी किए जाने वाले परमिट में सरकार निजी बसों को निशुल्क यात्रा के लिए बाध्य कर सकती है।
कमाल की बात यह भी है कि सरकार के अधिकारी यह तो कह रहे हैं कि सीटों की क्षमता के मुताबिक 25 फीसदी यात्राी अधिक बिठाने के मौखिक आदेश दिए गए हैं, लेकिन कई सप्ताह बीत जाने के बावजूद इसको लेकर अधिसूचना जारी नहीं हो पा रही। लिहाजा, असमंजस बना हुआ है।