उमेश ललित/धर्मपुर(मंडी)
दिन भर बसों में हिचकोले खाते और धूल फांकने वाले चालक-परिचालकों को धर्मपुर के रेस्ट रूम में फर्श पर गत्ते बिछाकर सोना पड़ता है। सिर पर तपती टिन और धूल भरे फर्श पर कैसे यह ड्राइवर कंडक्टर रात गुजारते होंगे यह अंदाजा बखूबी लगाया जा सकता है। इस रेस्ट रूम में सुविधा के नाम पर केवल चार हार्ड बेड पड़े हैं। बिजली,पानी,शौचालय और वाशरूम की कोई सुविधा नहीं। रात को रुकने वाले चालक परिचालक भारी गर्मी में फर्श पर गत्ते बिछाकर सोने को मजबूर हैं।
स्थानीय विधायक एवं काबीना मंत्री ठाकुर महेंद्र सिंह के सतत प्रयासों से प्रदेश के मुख्यमंत्री ने भले ही धर्मपुर को परिवहन डिपो के रूप में बड़ी सौगात दी हो,लेकिन उसके अनुरूप सुविधाओं का टोटा दिन भर मेहनत करने वाले चालक-परिचालकों को खल रहा है। काबिले जिक्र है कि इस डिपो के अंतर्गत करीब 63 रुट संचालित होते हैं,जिनमें तकरीबन 53 रुट लोकल हैं। इस सेवा में 36 ड्राइवर कंडक्टर जुटे हैं,जबकि 12 लंबी दूरी की बसों से रात को अड्डे पर पहुंचते हैं।
24 अप्रैल को मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर द्वारा घोषित परिवहन डिपो धर्मपुर में सुविधाओं का जबरदस्त अभाव है। रात को ठहरने वाले ड्राइवर कंडक्टर गैरेज में जाकर सोते हैं,जहां उनके साथ सर्पदंश जैसी कोई जानलेवा दुर्घटना हो सकती है। इनके लिए बने शौचालय और वाशरूमों में ताले लटके हुए हैं। रेस्ट रूम की वायरिंग जल चुकी है। बेड,गद्दे और कुर्सियां नहीं हैं। जो बेड उपलब्ध थे,उन्हें संधोल भेज दिया गया है जबकि कुर्सियां सरकाघाट भेज दी गई हैं।
हैरत की बात यह है कि स्टॉफ की सुविधा के लिए किसी दानी सज्जन द्वारा दिया गया वाटर कूलर तक प्रबंधन ठीक नहीं करा पाया जो दो सालों से सूखा पड़ा है। बिजली-पानी और सोने की व्यवस्था न होने के कारण चालक-परिचालक आंखों में ही रात निकालने को मजबूर हैं। आराम न करने की स्थिति में अगले रोज उनके साथ कोई बड़ा हादसा होने और बेगुनाह सवारियों की जान जाने का भी अंदेशा है।
जानकार बताते हैं कि जब से परिवहन ऑथोरिटी ने अपनी फेब्रिकेशन बंद कर बनी बनाई बसें खरीदना शुरू की हैं तब से यात्री और चालक-परिचालक परेशान हैं। दीगर बात यह है कि पहले बस की प्रत्येक सीट के पीछे लोहे की एक फेब्रिकेटेड रॉड लगाई जाती थी जिस को पकड़ कर अथवा सिर टिका कर यात्री लंबी दूरी का सफर सुगमतापूर्वक करते थे,लेकिन अब प्लास्टिक के छोटे छोटे हैंडल लगाकर इन बसों को आरामदेह न बनाकर और अधिक असुविधाजनक बना दिया गया जिससे सवारियों एक दूसरे पर गिरती पड़ती सफर करने को मजबूर हैं।
3 दिसंबर 2005 को केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय द्वारा शुरू की गई जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण योजना के अंतर्गत आई बसें दस-बारह किलोमीटर के लिए तो ठीक है,लेकिन लंबी दूरी के लिए उचित नहीं कही जा सकती क्योंकि आरामदेह न होने के कारण जो यात्री एक बार इन पर लंबा सफर तय करता है पुनः नहीं बैठता और परिवहन विभाग को कोसना भी नहीं भूलता। मजेदार बात यह है कि निगम इन्हें रात्रि ठहराव वाले रूटों पर भेज तो देता है परंतु इसके चालक-परिचालक धूल और गंदगी भरे फर्श पर बिस्तर बिछा कर सोने को मजबूर हैं।
“धर्मपुर बस डिपो में सुविधाओं की कमी के संदर्भ में बस अड्डा प्रबंधन एवं विकास प्राधिकरण को विस्तृत आकलन भेज दिया गया है।उम्मीद है कि इसी वित्त वर्ष में धन प्रावधान कर दिया जाएगा।”
नरेंद्र शर्मा, कार्यकारी रीजनल मैनेजर,पथ परिवहन डिपो धर्मपुर