एमबीएम न्यूज़/नाहन
दक्षिण हिमाचल में लाखों श्रद्धालुओं के आस्था की प्रतीक चूड़धार चोटी की पवित्रता भंग हो रही है। यही नहीं, 20 फुट बर्फ के बीच प्राचीन मंदिर में रोजाना पूजा-अर्चना सुनिश्चित करने वाले ब्रह्मचारियों के साथ-साथ आश्रम के संचालकों को पर्यटकों की बदसलूकी का सामना भी करना पड़ रहा है। आलम यह भी हो चुका है कि चोटी पर ब्रहमचारी स्वामी वीरेंद्रानन्द व स्वामी कमलानंद जी को अध्यात्म का भी समय नहीं मिल रहा। यहां तक कि लोग आश्रम के दरवाजे तोड़ने पर भी उतारू हो रहे हैं।
हैरानी इस बात की भी है कि चोटी पर सुरक्षा के नाम पर महज एक पुलिसकर्मी की तैनाती है, जबकि यात्रा के दौरान अस्थाई पुलिस चौकी में सुरक्षा की पूरी व्यवस्था के अलावा रेस्क्यू का इंतजाम भी होना चाहिए। धार्मिक आस्था की बजाय चोटी को पर्यटन स्थल बना दिया गया है। हाल ही में भी दो युवक लापता हो गए थे, जिन्हें हेलीकॉप्टर से रेस्क्यू किया गया था। दरअसल चोटी पर लगभग 1200 श्रद्धालुओं के ठहरने की व्यवस्था है। इसमें 60-80 श्रद्धालु आश्रम में ठहर सकते हैं। लेकिन चोटी पर श्रद्धालुओं का सैलाब पहुंच रहा है। ऐसे में रात्रि ठहराव की जगह न मिलने पर श्रद्धालु आश्रम में मौजूद लोगों से बदतमीजी पर उतारू हो जाते हैं।
बताया जा रहा है कि इस बार चोटी पर रिकॉर्ड तोड़ श्रद्धालु उमड़े। सवाल इस बात पर उठता है कि प्रशासन क्यों आंखें मूंदे बैठा हुआ है। प्रश्न इस बात पर भी उठाया जा रहा है कि बेस कैंप से सीमित संख्या में श्रद्धालुओं को चढ़ाई की अनुमति क्यों नहीं दी जाती। जानकारों का कहना है कि अगर प्रशासन चोटी पर रात्रि ठहराव की उचित व्यवस्था नहीं कर सकता है तो कम से कम श्रद्धालुओं के प्रवेश को सीमित किया जाना बेहद ही लाजमी है।
उधर इस बात का अंदाजा खुद ही लगाया जा सकता है कि चोटी पर तीन से चार हजार लोग अगर एक दिन में पहुंचते हैं तो वहां सफाई का आलम क्या होगा। चोटी पर आश्रम की स्थापना समाधि ले चुके स्वामी श्यामानंद गुरु जी महाराज ने की थी। धीरे-धीरे आश्रम का विस्तार तो हुआ, लेकिन इसमें इतनी भी क्षमता नहीं है कि हजारों श्रद्धालुओं को ठहराया जाए। गनीमत इस बात की है कि चूड़ेश्वर सेवा समिति रात दिन श्रद्धालुओं को निशुल्क रात्रि ठहराव व भंडारे की व्यवस्था प्रदान करती है। अगर समिति अपने संसाधनों से व्यवस्था न करें तो चोटी पर अफरा-तफरी में इजाफा हो जाएगा।
प्रशासन के स्तर पर वीआईपी गेस्ट हाउस तो बना लिया गया है। लेकिन आम श्रद्धालुओं के लिए कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। बताया जा रहा है कि चोटी पर प्रदूषण की मार भी बढ़ती जा रही है। इस बात का अंदाजा भी खुद ही लगाया जा सकता है कि जब हर सप्ताह दस हजार के करीब श्रद्धालु चढ़ाई चढ़ेंगे तो आलम क्या होगा।
उधर पूछे जाने पर ब्रह्मचारी कमलानंद जी ने बताया कि चोटी पर श्रद्धालुओं की संख्या को नियंत्रित करना बेहद ही जरूरी है। उन्होंने माना कि कई मर्तबा श्रद्धालु रात्रि ठहराव के लिए दवाब बनाने लगते हैं। लेकिन आश्रम में सैकड़ों लोगों के लिए व्यवस्था कैसे की जा सकती है। उन्होंने कहा कि जो श्रद्धालु दशकों से चोटी पर उनके गुरु के समय से आ रहे हैं। उन्हें प्राथमिकता प्रदान की जाती है।
दरअसल अब आस्था की बजाए लोगों ने चोटी को ट्रैकिंग वह अपनी मौज-मस्ती के लिए इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। इस कारण अधिक समस्या हो रही है। हालांकि प्राचीन मंदिर सिरमौर का हिस्सा है। लेकिन इसका नियंत्रण शिमला प्रशासन के पास है। चंद सप्ताह पहले भी एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने इस बात का खुलासा किया था कि कैसे चोटी पर लोगों को खुले आसमान के नीचे रात बितानी पड़ रही है। बावजूद इसके लोग चूड़धार चोटी पर पहुंच रहे हैं।
हल्की सी बारिश की स्थिति में 11,900 फीट ऊंची चोटी पर तापमान में अचानक गिरावट आ जाती है। ऐसे में खुले आसमान के नीचे रहना भी श्रद्धालुओं के लिए बेहद ही जोखिमपूर्ण होता है। जानकारी यह भी है कि हाल ही में चौपाल के एसडीएम ने चोटी का जायजा लिया था। लेकिन तुरंत प्रभाव से चोटी पर चढ़ने वाले श्रद्धालुओं के पंजीकरण की आवश्यकता महसूस की जा रही है। चोटी पर चढ़ने के लिए मुख्य तौर पर सिरमौर के नौहराधार व शिमला के इलाके से चढ़ाई शुरू की जाती है।
इसके अलावा कुपवी के इलाके से भी स्थानीय लोग चोटी पर पहुंचते हैं। स्थानीय लोग तो हर परिस्थिति में खुद को ढाल लेते हैं। लेकिन बाहर से आने वाले हजारों श्रद्धालु के लिए समस्या पैदा हो रही है। दीगर है कि हिमाचल के अलावा अब हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड, चंडीगढ़ से भी श्रद्धालु आने लगे हैं। स्वामी कमलानंद जी का यह भी कहना है कि इस बार रिकॉर्ड तोड़ संख्या में लोग पहुंचे हैं। अभी यात्रा में वक्त है तब यह आंकड़ा ओर भी बढ़ सकता है।
उल्लेखनीय है कि 20 से 25 फुट तक हिमपात के दौरान ब्रह्मचारी ही चोटी पर रहकर शिरगुल महाराज के प्राचीन मंदिर में नियमित पूजा-अर्चना सुनिश्चित करते हैं। अब इन्हीं के साथ दुर्व्यवहार होने लगा है।