एमबीएम न्यूज/शिलाई
यूं तो जुडवा बच्चे होना कोई बड़ी बात नहीं है। आए दिन कहीं न कहीं ऐसे मामले सामने आते हैं। लेकिन तब यह खास पल बन जाता है जब किसी अस्पताल में पहली बार जुडवा बच्चों की किलकारी गूंजी हो और वह भी उस अस्पताल में जहां न गायनी व चाईल्ड़ स्पैशलिस्ट हों। जी, हां सिविल अस्पताल शिलाई में पहली बार जुड़वा बच्चों के जन्म से उत्सव का माहौल है। इतना ही नहीं सुविधाओं के अभाव के बावजूद यहां जुडवा बच्चों ने जन्म लिया है। जानकारी अनुसार बुटियना निवासी 27 वर्षीय गर्भवती महिला को पेट में तीव्र दर्द उठने पर शिलाई अस्पताल लाया गया जहां चिकित्सकों ने जांच में पाया कि महिला के पेट में जुड़वा बच्चे है।
अस्पताल में संसाधनों और विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी को देखते हुए ड्यूटी पर तैनात चिकित्सक को प्रसव करवाने और महिला को अन्य बड़े अस्पताल में रैफर करने में से कोई एक विकल्प चुनना था। मगर मरीज को रैफर करने के बाद समय पर 150 किलोमीटर दूर हायर सेंटर पहुंचाना मुमकिन नहीं था। जिसको देखते हुए डा. पियूष तिवारी ने शिलाई अस्पताल में ही महिला का प्रसव करवाने का फैसला लिया।
प्रसव के दौरान स्थिति तब और भी गंभीर हो गई, जब एक बच्चे के जन्म के बाद देखा कि महिला के पेट में दूसरा बच्चा उल्टा है। बावजूद उसके चिकित्सक ने बिना सर्जरी के ही शिलाई अस्पताल में महिला का सफल प्रसव करवाया। बच्चों की मां एक साथ जन्मे अपने 2 बेटों को देखकर बहुत खुश थी। प्राप्त जानकारी के अनुसार इससे पहले शिलाई अस्पताल में कभी जुड़वा बच्चों ने जन्म नहीं लिया है। इसलिए शिलाई अस्पताल के चिकित्सा अधिकारी डा. पियूष तिवारी और उनके सहयोगी चिकित्सक डा. शीतल शर्मा की हर तरफ प्रशंसा हो रही है। शिलाई अस्पताल में बिना सर्जरी के जुड़वा बच्चों के जन्म की सुचना मिलने के बाद से स्थानीय लोग हैरान है, क्योंकि ऐसी परिस्थिति में बिना गायनी विशेषज्ञ और बिना चाइल्ड स्पैशलिस्ट और बिना सर्जरी किए सफल प्रसव करवाना लगभग असंभव माना जाता है और जब पेट में बच्चा उल्टा हो तो सर्जरी के बिना प्रसव करवाना बेहद ही जटिल कार्य माना जाता है।
स्थानीय निवासी ज्ञान सिंह, अशोक कुमार, रोहित, मीरा देवी, कमलेश, अश्वनी शर्मा आदि ने बताया कि यहां पर प्रसव पीड़ा के बहुत देर बाद गर्भवती महिलाएं अस्पताल पहुंचती है और कुछ तो घर में ही बच्चों को जन्म दे देती है। जुड़वा बच्चों की मां को भी काफी देर से अस्पताल पहुंचाया गया था। अस्पताल न लाकर अगर महिला का घर में ही स्थानीय दाई से प्रसव करवाते तो तीनों की जान जा सकती थी। लोगों ने मांग की है कि शिलाई अस्पताल का दर्जा तो सरकार ने बढ़ा दिया है अब संसाधनों की पूर्ति और गायनी और चाइल्ड स्पैशलिस्ट की तैनाती भी होनी चाहिए क्योंकि आपातकाल की स्थिति में मरीज को हायर सेंटर तक पहुंचाना जान पर भारी पड़ जाता है। लोगों ने डा. पियूष तिवारी और डा. शीतल शर्मा की कार्य कुशलता की जमकर प्रशंसा की।
उधर, शिलाई अस्पताल के चिकित्सा अधिकारी डा. पियूष ने कहा की डा. शीतल शर्मा और अस्पताल स्टाफ के सहयोग से यह संभव हो पाया है। चूंकि महिला को प्रसव पीड़ा के बहुत देर बाद अस्पताल लाया गया था, इसलिए उन्हें हायर सेंटर रैफर करना 3 जिन्दगियों के लिए खतरा था। उन्होंने सभी लोगों से आग्रह किया कि गर्भवती महिलाओं को तय तिथि से एक दिन पूर्व अस्पताल लाए और घर में ही महिलाओं का प्रसव न करवाएं, क्योंकि सरकार ने जच्चा और बच्चा दोनों के लिए अनेको योजनाएं चलाई हुई है। इसलिए सरकारी अस्पताल में नि:शुल्क प्रसव करवाकर इन सभी जनकल्याणकारी सेवाओं का लाभ उठाएं।