एमबीएम न्यूज/नाहन
सैनधार की नहरस्वार पंचायत के मदरिया जंगल में गद्दी समुदाय की टोली को रत्ती भर भी विश्वास नहीं था कि पशुपालन विभाग की टीम घने जंगल में पैदल चलकर घोड़ी की शल्य चिकित्सा के लिए आएगी। लिहाजा, दो दिन से लगातार घोड़ी के पेट में मर चुके बच्चे को निकालने की कोशिश में घरेलू तरीके से लगे रहे।
इस कोशिश में बच्चादानी से बच्चे का सिर बाहर आ गया। इसके बाद टोली के हाथ-पांव फूल गए। फिर एक चांस लेने का फैसला किया गया। जैसे-तैसे बागथन में तैनात पशु फार्मासिस्ट संजीव शर्मा से संपर्क हो गया। बगैर विलंब पशु चिकित्सक मयंक गौतम व पशु परिचारक श्रवण कुमार को लेकर चल पडे़। चूंकि इलाके में पानी भी नहीं था, लिहाजा पानी भी साथ उठाया। करीब चार घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद घोड़ी के मरे हुए बच्चे को बच्चादानी से बाहर निकाल लिया गया।
इस तरह की शल्य चिकित्सा अमूमन जंगल में संभव नहीं होती है, क्योंकि इससे जानवर में संक्रमण का भी खतरा रहता है, लेकिन सूझबूझ से पशुपालन विभाग की टीम ने शल्य चिकित्सा को संभव कर दिखाया। फार्मासिस्ट संजीव शर्मा के मुताबिक 18 किलोमीटर के सफर के बाद दो किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई तय करने के बाद मौके पर टीम पहुंची थी। उन्होंने कहा कि घोड़ी मालिक को सफल शल्य चिकित्सा से राहत मिली है।