एमबीएम न्यूज/पांवटा साहिब
टूटती मानव संवेदनाएं अब और हावी होने लगी हैं। यहां तक की दूसरों का उपकार तो कोसों दूर की बात है, अपने ही बुजुर्गों का तिरस्कार कर देते हैं। ऐसी ही एक घटना शहर में सामने आई है। जब अपनों ने घर के बुजुर्ग का अंतिम संस्कार करने से इंकार कर दिया। फिर लावारिस लाशो के मसीहा के नाम से पहचान बना चुके हेमंत शर्मा व टीम ने अनजान होने के बावजूद बुजुर्ग के शव को अपना लिया। बकायदा हिन्दू रीति से अंतिम संस्कार किया।
12 जनवरी को किसान भवन के समीप एक बाबा जी का शव मिला था। स्थाई पता भी ट्रेस हो गया। आंखें मूंदने से पहले बाबा ने अपना नाम मनोहर व पिता का नाम मुलख राज गांव धामपुर नगीना बिजनौर उत्तर प्रदेश बता गए थे। इसके बाद परिवार को बाबा जी की मौत की सूचना दी गई, लेकिन परिवार ने अंतिम संस्कार करने से इंकार कर दिया। लिहाजा, हेमंत शर्मा नेे मंगलवार को बाबा का संस्कार विधिविधान से किया। अब तक हेमंत को लावारिस लाशो का मसीहा कहा जाता था, लेकिन इस बार एक बुजुर्ग का शव लावारिस नहीं था, लेकिन टूटती संवेदनाओं ने बुजुर्ग को लावारिस बना दिया।
उल्लेखनीय है कि चंद महीने पहले हेमंत शर्मा परिणय सूत्र में बंधे थे, लेकिन शादी के फेरे लेने से पहले ही लावारिस लाशो के अंतिम संस्कार के जुनून की बात न केवल जीवन संगिनी बन रही युवती के साथ साझा कर ली थी, बल्कि ससुराल पक्ष के हरेक सदस्य को अवगत करवा दिया था। शादी के फेरे लेने के चंद रोज बाद ही एक लावारिस शव का अंतिम संस्कार करवाने पहुंच गए थे।
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