सुभाष कुमार गौतम /कुल्लू
हिमाचल में जब कल्लू दशहरा यानी देवताओं का महाकुंभ शुरू होता है तो कुल्लू स्वर्ग की तरह सजाया जाता है। आराध्य देव रधुनाथ जी दशहरा के शुरू होने से समाप्त होने तक यही विराजमान रहते है। इस महाकुंभ का आगाज राज परिवार की पूजा अर्चना के बाद ही होता है। क्योंकि श्रापित राजा जगत सिंह ने अयोध्या से रघुनाथ के आने के बाद अपना राजपाठ अराध्य देव रघुनाथ जी को ही सौंप दिया था। परिवार इनकी सेवा में लीन हो गया था। इनका प्रांगण भजन, गीत व आरतियों से गूंजता रहता है।
पहले कुछ देवता अपने आराध्य देव से मिलने आते है। मेले के समापन समारोह से एक दिन पहले कुल्लू महाकुंभ में आए सभी देवता अपने आराध्य देव से मिलने आते है। यह दृश्य स्वर्ग की किसी कल्पना से कम नहीं होता। लाखों लोग इस मिलन को देखने के लिए हाथ जोड कर देवताओं के सामने नतमस्तक हो जाते है। इन लम्हों को कवर करने के लिए हिमाचल ही नहीं विदेशों के मीडिया कर्मी उपस्थित रहते है। अपने आराध्य देवता से मिलने के बाद यह सभी देवता यहां के राज परिवार से आशीर्वाद लेने जाते है। उनके पास नतमस्तक हो जाते है।
आजकल कुल्लू राज परिवार के स्दस्य ठाकुर महेश्वर सिह है, जो एक राजा की तरह अपने दरबार में बैठे होते है और पूरा परिवार भी साथ होता है। देवता बारी-बारी आते है। सारा माहौल ढोल-नगाडों, रणसींगों व अन्य वाद्य यंत्रों से गूंज उठता है। मानों स्वर्ग यहीं उतर आया है। आपको बता दें कि आज पूरे देश में पशु बलि बंद है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में कुल्लू के राजा को कुल्लू दशहरा में पर्दे में पशुबलि देने की इजाज़त दी है। क्योंकि जब तक बलि ना दी जाए तब तक कुल्लू दशहरा संपन्न नहीं होता। इस दशहरे को शुभारंभ करते हुए हिमाचल के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा था कि पशु बलि जरूरी नहीं, कोई देवता किसी की जिंदगी नहीं लेता है। जीवन देता है।
जब हम किसी को जिंदगी दे नहीं सकते तो किसी का जीवन छीन भी नहीं सकते। लेकिन राज परिवार के मुखिया महेंद्र सिंह ठाकुर का कहना है कि भगवान रघुनाथ जी का इस पशुबलि से कुछ लेना देना नहीं क्योंकि वो तो विष्णु स्वरूप है। पशुबलि की प्रथा सदियों पुरानी है। इस बलि को देने का मुख्य मकसद यह है कि कुल्लू की यह देव भूमि प्राकृतिक आपदाओं से बची रहे। यहाँ के लोगों का जीवन सुख-शांति व धन-धन्य से भरपूर हो। आज यह महाकुंभ समाप्त हो रहा है। उसके बाद एक साल बाद कुल्लू के देवता अपने आराध्य देव रघुनाथ यानी श्री रामचंद्र जी से मिलने अगले साल फिर आएंगे।
इसी आशा के साथ आज सभी देवता अपने-अपने देवालयों की ओर प्रस्थान करेंगें। इसी उम्मीद के साथ की आने वाला साल सुखमय हो और अगले साल फिर इस स्वर्ग देव नगरी कुल्लू में फिर से देवताओं के महाकुंभ का आयोजन हो। इसके लिए राज परिवार और कुल्लू प्रशासन इन देवताओं को हसंते-हंसते नजराने के साथ विदा करता है। धन्यवाद करते है कि कुल्लु में हुए इस महाकुंभ में उनका निमंत्रण स्वीकार करके उन पर आपार कृपा की है। इस तरह की दया आने वाले समय में भी बनाए रखें। इस तरह इस महाकुंभ अलविदा किया जाता है।