सुभाष कुमार गौतम/मनाली
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिला के देवता करोडों नहीं अरबों रुपये की संपत्ति के मालिक है। इस बात को प्रशासन ने राज रखने की पूरी कोशिश की है। मगर राज का पता आपको अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरे में आए देवताओं को देखकर लग जाएगा। कुल्लू दशहरा में आए देवताओं की मूर्तियों पर सोने की मोहरे व छतर जडित है। एक देवता के पास सोने का रथ है। उनके खान-पान व पूजा का सामान भी सोने या चांदी का ही है। इतना ही नहीं जिस पालकी में देवताओं को बिठाया जाता है उसकी छडियां भी चांदी से जडित है। इनता ही नहीं इन देवताओं के नाम पर कई बीघों के हिसाब से अपनी भूमि भी है। जिस पर लगे सेब के बगीचे इनकी आमदन व रहन-सहन को और बढाते है।
सेब को बेच कर व अन्य साधनों से भारी आमदनी होती है। जिसका कुछ हिस्सा देवालयों पर खर्च किया जाता है। कुल्लू के देवताओं की संपत्ति का जिक्र ना करने के लिए प्रशासन ने पुजारियों व कारकूनों को सलाह दी है। हर साल संपत्ति में भारी इजाफा होता है। जिस कारण देवताओं के कारकुनों को किसी काम को करने के लिए परेशान नहीं होना पड़ता। मलाणा के देवता जामलू देवता की संपत्ति का कोई अंदाजा ही नहीं है। बताया जाता है कि जब भी कोई कारज होता है तो इसे देवता की आज्ञा से देवता के कारकून खजाने से एक मुट्ठी धन निकाल कर लाते हैं। उसी में सारा कारज निपटाया जाता है। इस एक मुट्ठी धन में सोना, चांदी व कीमती बेशुमार चीजें कुछ भी हो सकता है।
यही रहस्य है कि कारकुनों को बताया जाता है, ताकि देवताओं के साथ दशहरे में आने वाली संपत्ति महफूज रहे। क्योंकि आज कुल्लू के रघुनाथ मंदिर की मुर्ती की बाजार कीमत करोडों रूपये है। जिसको एक बार चोरी कर लिया गया था। लेकिन प्रशासन ने मूर्ति को चुराने वालों को पकड़ लिया था। आज लाखों की भीड़ में कुल्लू दशहरे में लोग आते है। अपने देवताओं के दर्शन के बाद चढ़ावा चढाते है, जो लाखों में होता है। जिस कारण इन देवताओं की संपत्ति में हर साल इजाफा हो रहा है।
यह लोगों और कारकुनों की अटूट श्रद्धा है। जो अपने देवताओं के खजाने की सुरक्षा और देवताओं पर अटूट विश्वास बनाए हुए है। जीवन का निर्णय अपने आराध्य देव पर छोड़ दिया जाता है। चाहे वो धन व सुख की प्राप्ति है। कोई बडी आपदा सब इनके खुश होने या होने करने पर निर्भर करता है। लोग हमेशा अपने देवताओं से सुख-शांति की कामना करते है।