एमबीएम न्यूज/नाहन
सिरमौर की जमीन पर कई ऐसे राज दफन हैं, जो हैरान कर देने वाले तो हैं ही, साथ ही ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण भी हैं। राज ऐसे जब खुल जाए तो हर कोई हिल जाता है। औद्योगिक क्षेत्र की पहचान रखने वाले “कालाअंब” का नाम अभी तक राज ही था। एमबीएम न्यूज ने इस राज का आज खुलासा किया है, जिसमें एक महाबली योद्धा की कहानी सामने आई है। जिसके नाम पर ही कालाअंब पड़ा था। यह योद्धा था “काले खान”, जिससे डरता था सिरमौर की जमीन पर कदम रखने वाला दुश्मन।
काले खान की बहादुरी व शक्ति को देखते हुए सिरमौर के राजा ने 18वीं सदी में इस महाबली को सिरमौर के द्वार पर तैनात किया था। जहां से रियासत का दुश्मन सिरमौर में कदम नहीं रख सकता था। काले खान लंबा तगड़ा योद्धा था, जो अकेले ही एक साथ कईयों पर भारी पड़ता था। बताते हैं कि पहले सिरमौर रियासत सिरमौरी ताल में थी। उसके बाद नाहन में बसी। काले खान की ड्यूटी पहले सिरमौरी ताल क्षेत्र के एक गांव में होती थी। रियासत बदलने के बाद काले खान भी राज परिवार के साथ नाहन आया।
सिरमौर के महाराजा ने काले खान की बहादुरी, युद्ध कौशल को देखते हुए सिरमौर के बॉर्डर की रक्षा के लिए उसे मारकंडा के जंगल में भेजा, जो आज कालाअंब में है। काले खान ने लंबे समय तक यहां अपनी सेवाएं दी।
एक अन्य जानकारी के अनुसार सिरमौर के महाराजा जब भी शिकार पर जाते थे तो काले खान को भी अपने साथ ले जाते थे, क्योंकि शिकार में काले खान के सामने कोई नहीं टिकता था।
ऐसे पड़ा हैं कालाअंब नाम….
कालाअंब जो अब एक औद्योगिक क्षेत्र बन गया है पहले एक जंगल हुआ करता था। मारकंडा नदी सिरमौर रियासत को अन्य रियासतों से अलग करती थी, इसी कारण यह सिरमौर का बॉर्डर बना था। सिरमौर के महाराजा ने काले खान को उक्त बॉर्डर की जिम्मेदारी दी थी। इस जिम्मेदारी को काले खान ने बखूबी निभाया। बहरहाल काले खान के नाम से इस क्षेत्र को कालेवाला कहा जाने लगा। यह नाम आगे बढ़ते- बढ़ते कालाआम हो गया। एक कारण यह भी था कि इस क्षेत्र में आम के कई पेड़ होते थे। इसी वजह से इसे कालाआम कहा जाने लगा । इसमें एक बात यह रहती है कि काले वाला जहां आम के पेड़ हैं या कहने में लंबा होता था इसलिए इसे कालाआम कहा जाने लगा। रियासत काल में उक्त क्षेत्र का कोई नाम नहीं होता था, लिहाजा काले खान के नाम से ही इसे एक नया नाम मिला। वर्तमान में यह स्थान कालाअंब के नाम से परिचित है । काले खान की कई पीढ़ियां यहां पर रहती आ रही हैं। त्रिलोकपुर पंचायत के पूर्व प्रधान साधुद्दीन भी काले खान के वंशज हैं।
क्या कहते हैं साधुद्दीन अपने बुजुर्ग काले खान के बारे में….
साधुद्दीन से जब इस बारे पूछा गया तो उन्होंने बताया कि वह अपने बहादुर बुजुर्ग की कहानी अपने बुजुर्गों से बचपन से सुनते आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि हमें गर्व है कि हम ऐसे महा योद्धा के वंशज हैं और हम उनकी विरासत को बनाए रखने के लिए हर एक अच्छा काम करते जाएंगे। बता दे कि साधुद्दीन अपने क्षेत्र में जब प्रधान थे तो उन्होंने पंचायत का कोई भी लड़ाई झगड़ा कोर्ट या पुलिस चौकी में नहीं जाने दिया। उन्होंने सभी केस अपने क्षेत्र में ही निपटाए। उधर साधुद्दीन के पुत्र इकबाल खान का भी क्षेत्र और राजनीति में एक अच्छा रुतबा है।
कालाअंब के बारे में यह भी थी गलत भ्रांति….
कालाअंब के बारे में एक गलत भ्रांति काफी समय से चली आ रही थी, जिसका खुलासा भी आज हो गया है। वह भ्रांति थी कि कालाअंब नाम इसलिए पड़ा था कि एक आम के पेड़ के नीचे अपराध करने वालों को फांसी दी जाती थी। लेकिन यह पूरी तरह से गलत है। रियासत में फांसी नाहन स्थित जेल स्थान पर ही दी जाती थी। रियासत के शाही परिवार से संबंध रखने वाले व सिरमौर के इतिहास के जानकार कंवर अजय बहादुर सिंह ने बताया कि कालाअंब में कोई फांसी नहीं दी जाती थी। कालाअंब का नाम काले खान के नाम पर ही कालाअंब पड़ा था।
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