शैलेंद्र कालरा /शिमला
कोटखाई के महासू के रहने वाले धर्माईक दंपत्ति की इंसानियत सुनकर आप आश्चर्यचकित होकर रह जाएंगे। दंपत्ति की संस्था को अगर आज उत्तर भारत में मानव सेवा करने में नंबर-1 कहा जाए तो किसी को कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए। 10 साल में सेब के बगीचे की तकरीबन 5 करोड़ रुपए की कमाई को मानव सेवा पर भी खर्च कर चुके हैं। दंपत्ति ने धन नहीं बल्कि तन -मन भी मानवता को समर्पित किया है।
राजधानी से कोटखाई के बीच चार वाहनों (4*4) हर वक्त हाईवे पर निशुल्क सेवा को तैयार रहते हैं। यही नहीं, मानव सेवा संस्थान कोटखाई की चेयरपर्सन निर्मला धर्माईक खुद दो से तीन फुट बर्फ के बीच ड्राईविंग कर विपदा में फंसे लोगों को अस्पताल या उनके ठिकानों तक पहुंचा देती है। यही नहीं, जब सरकारी तंत्र फेल हो जाता है तो यही वाहन आपातकालीन स्थिति में रोगी वाहन के रूप में भी इस्तेमाल हो जाते हैं। 2008 में बलवीर सिंह व निर्मला धर्माईक दंपत्ति ने मानव सेवा का बीड़ा उठाने का निर्णय लिया था। हर साल 40 से 50 लाख रुपए की आमदनी बगीचे से होती है। महज तीन से चार लाख परिवार के यापन के लिए रखकर शेष राशि सेवा पर खर्च देते हैं।
मानव सेवा ही नहीं, बल्कि यह दंपत्ति बेमिसाल तरीके से बेजुबानों व असहायों की मदद करने में भी पीछे नहीं रहता है। घायल पशुओं-पक्षियों का उपचार करवाना, लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार, गरीब बेटियों की पढ़ाई का खर्च व अवरुद्ध सडक़ों को बहाल करने इत्यादि ऐसे कार्य हैं, जो इस संस्थान को एक जबरदस्त पहचान देते हैं। आप यह जानकर भी हैरान हो जाएंगे कि हर साल सेब की तय आमदनी की गारंटी नहीं होती, लिहाजा कई बार उधार भी लेना पड़ता है। इस वक्त दंपत्ति पर 60 से 70 लाख की देनदारी भी है।
एक मोटे अनुमान के मुताबिक 10 सालों में संस्था द्वारा करीब एक हजार से अधिक सडक़ हादसों के घायलों को न केवल अस्पतालों में पहुंचाया गया, बल्कि सही उपचार भी सुनिश्चित किया गया। जहां तक सरकार के नशे के खिलाफ मुहिम का सवाल है तो चेयरपर्सन निर्मला धर्माईक कीटनाशक दवाओं के स्प्रे से भांग के पौधों को नष्ट करने में भी माहिर है। ऐसा नहीं कि दंपत्ति मानवता के कार्यों के लिए धन का इस्तेमाल करते हुए लेबर से कार्य करवाता हो। ढांक से घायलों को निकालना हो या फिर लावारिस लाश को खड्ड से बाहर निकालकर पहुंचाना हो, इन सब कार्यों में पति-पत्नी संकोच नहीं करते हैं। अब दंपत्ति को यह महसूस होने लगा है कि संस्थान को अपने बूते नहीं चलाया जा सकता।
लावारिस शव को खड्ड से निकालते बलवीर सिंह
https://youtu.be/MGVZyOzARSo
2011 में पंजीकृत करवाने के बाद अब पहली बार संस्थान ने दानियों से सेवा का आग्रह भी किया है। सनद रहे कि अपर शिमला में दंपत्ति के इस भाव से हरेक घर का बच्चा-बच्चा वाकिफ है। दंपत्ति की इस कोशिश में अब कई हाथ भी जुडऩा शुरू हो गए हैं। संस्था के सदस्य व पदाधिकारी भी सेवाभाव के तहत अपने वाहनों को निशुल्क मुहैया करवाने में संकोच नहीं करते हैं। आलम यह भी है कि आपदा की स्थिति मेें इलाके के लोग पुलिस प्रशासन व 108 से पहले संस्था को सूचित करते हैं।
सनद रहे कि हाल ही में छैला हादसे में भी संस्थान ने जबरदस्त रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया था। इस हादसे में शिक्षा मंत्री के छोटे भाई समेत चार की मौत हो गई थी। घायलों को आईजीएमसी तक समय रहते ही संस्थान के सदस्यों ने पहुंचाया। अन्यथा मृतकों की संख्या बढ़ भी सकती थी। इस रेस्क्यू ऑपरेशन का नेतृत्व खुद संस्थापक बलवीर सिंह धर्माईक ने किया था। यहां तक की एक हाथ से ड्राईविंग कर रहे थे, तो दूसरे हाथ से फोन पर पुलिस से इम्दाद मांग रहे थे।
क्या बोला दंपत्ति…
एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने पाया कि ऐसी शख्सियतों को निश्चित ही पाठकों के समक्ष लाना चाहिए, जो इस तरह से मानवता का कार्य कर रहे हैं। लिहाजा संस्थापक बलवीर धर्माईक से लंबी बातचीत हुई। उनका कहना था कि 2008 में मानव सेवा करने का विचार मन में कौंधा था, तब से रात-दिन जुटे हुए हैं। उन्होंने कहा कि सेब के बगीचे से जो भी आमदनी होती है, उसे नेक कार्यों पर खर्च करने के लिए एक क्षण भी नहीं गंवाया जाता। उन्होंने कहा कि सडक़ के किनारे चाहे कोई जरूरतमंद इंसान मिले या असहाय बेजुबान, उसकी सेवा को परम धरम मानते हैं। उनका कहना था कि संस्था को करीब दो दर्जन एजेंसियां सम्मानित कर चुकी हैं। इसमें पुलिस व प्रशासन भी शामिल हैं। धर्माइक ने कहा कि संस्था यह नहीं देखती है कि जरूरतमंद अमीर है या गरीब। केवल एक ही लक्ष्य होता है कि उसे निशुल्क सेवा मिल जाए।
मरीज को अपने वाहन से अस्पतालों पहुंचाती निर्मला
सब कुछ सेवा पर खर्च देंगे तो अपने लिए…
बातचीत के दौरान बलवीर सिंह धर्माईक से एक सवाल पूछा गया। उनसे पूछा गया कि आप जब अपनी पूरी कमाई सेवा पर ही खर्च देंगे तो अपने लिए क्या बचेगा। आप उनका जवाब सुनकर हैरान हो जाएंगे। धर्माइक ने कहा कि परिवार में पति-पत्नी के अलावा एक बेटा है, जो जमा एक में पढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि साल भर का राशन 50 हजार का आता है। 50 हजार रुपए के अन्य खर्चे हो सकते हैं। इसके अलावा घूमने व अन्य पर 2 लाख रुपए मान लीजिए तो अधिकतम खर्चा तीन लाख सालाना ही होता है।
कैसे होता है लाखों का खर्च…
रेस्क्यू ऑपरेशन पर संस्थान का बड़ा बजट खर्च होता है। पैट्रोल व डीजल के अलावा चालकों का वेतन देना होता है। इसके अलावा सडक़ हादसे के घायलों को निशुल्क दवाएं भी उपलब्ध करवाने में कोई संकोच नहीं किया जाता। साथ-साथ ही टीम के सदस्यों के रहने व ठहरने की व्यवस्था भी होती है। समाज में उत्पीडि़त महिलाओं व बेटियों को निशुल्क कानूनी मदद भी उपलब्ध करवाई जाती है। इसके अलावा वन्यप्राणियों व बेसहारा पशुओं को रेस्क्यू करने के बाद दवाओं पर भी खर्चा होता है।
संस्थान के कार्यालय को नियमित तौर पर चलाने पर भी एक राशि खर्च की जाती है। ऑडिट में बकायदा हरेक हैड के खर्चे को दर्शाया जाता है। चंद रोज पहले ही संस्थान ने लोगों से इस कार्य को आगे चलाए रखने के लिए मदद मांगी तो दंपत्ति की खुशी का ठिकाना नहीं रहा, क्योंकि 35 से 40 हजार रुपए की राशि दान स्वरूप प्राप्त हुई।