शैलेंद्र कालरा/ शिमला
राजधानी में 34 साल पहले एक शिशु ने जन्म लिया। हेल्दी बेटा होने पर परिवार को बधाईयां मिली। धीरे-धीरे शिशु बड़ा होने लगता है। फिर बच्चे को करीब पांच साल की उम्र में यह अहसास होने लगता है कि उसकी स्वयं की बाहरी संरचना तो पुरुष की है, मगर भीतरी अहसास एक महिला का है। पुरुष व महिला के बीच के अंदरूनी द्वंद की पीड़ा 30 साल तक सही। फिर इस गहरी पीड़ा से चार साल पहले उबरने का फैसला ले लिया। इसकी वजह ‘सत्यमेव जयते’ टीवी शो था। इसी में सन्नी (परिवर्तित नाम) ने एक ट्रांसगर्ल की दास्तां को अपने से जुड़ा पाया था।
इसी दौरान सन्नी (आज की सानिया) ने अपनी पहचान ट्रांसगर्ल के रूप में सामने लाने का निर्णय लिया। हौंसला उस वक्त बुलंद हो गया, जब मां व भाई ने साथ देने के लिए हर कदम पर सहयोग का वादा किया। यह दास्तां शिमला के डीएवी स्कूल में 12वीं कक्षा तक पढ़ी सानिया सूद के जीवन की सच्चाई है। जीवन में उच्चशिक्षा प्राप्त करने के बाद सानिया ने कई नामी संस्थानों में एक युवक के प्रोफाइल के साथ नौकरी भी की। अपने ट्रांसगर्ल होने की बात को छिपाना मजबूरी थी। चार साल पहले सानिया ने अपनी पहचान खुलकर सामने लाने का फैसला ले लिया।
17 साल पहले शिमला छोडक़र बैंगलुरु में अपना घर बना लिया, क्योंकि होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई के बाद यहां नौकरी के तो साधन उपलब्ध थे, साथ ही लोगों की सोच भी थोड़ी शिमला की तुलना में हटकर थी। 2008 में बैंगलुरू की डिलक्स मीडिया कंपनी में कार्य शुरू किया। यहां बतौर उप शीर्षक संपादक के तौर पर कार्य शुरू किया। 2015 में परिवार व करीबी शादी का दबाव बनाने लगे तो उस समय तनाव की स्थिति भी आ गई थी। लेकिन आज सानिया ने अपनीे एक नई पहचान बना ली है।
हाल ही में मिस ट्रांसगर्ल इंडिया में प्रथम उप विजेता बनने का गौरव हासिल किया तो अपनी पहचान भी सार्वजनिक करने से कोई गुरेज नहीं किया। मुंबई में आयोजित इस प्रतियोगिता में 19 ट्रांसगल्र्स फाइनल में पहुंची थी, लेकिन एकमात्र सानिया का ही परिवार था, जो अपने बेटे नहीं, बल्कि बेटी का उत्साह बढ़ाने के लिए पहुंचा था।
दिसंबर 2017…
आखिर दिसंबर 2017 वो वक्त था, जब सन्नी ने सेक्स रि-असाइनमेंट सर्जरी के लिए बैंकॉक जाने का फैसला ले लिया। हालांकि इस वक्त तक सन्नी के पिता संसार में नहीं रहे थे, लेकिन भाई व मां ने हर कदम पर साथ देेने का फैसला कर लिया था। सर्जरी से पहले करीब अढ़ाई साल तक हार्मोन्स को लेकर ट्रीटमेंट चला। जनवरी 2018 में ही सर्जरी मुकम्मल हुई है। सनद रहे कि संसार में कुछ शिशु ऐसे भी पैदा होते हैं, जिनका लिंग पुरुष का होता है पर दिमाग, भावनाएं व विचार एक स्त्री की तरह होते हैं। इसी तरह कुछ लड़कियां ऐसी होती है जिनके योनि व स्तन तो होते हैं, लेकिन विचार व भावनाएं पुरुष की होती हैं। इसी पीड़ा को सन्नी ने 30 साल तक झेला है।
क्या बोली…
बचपन से ही साथियों के उत्पीडऩ का शिकार होना पड़ता था। स्कूल में भी इक्का-दुक्का दोस्त ही थे, आज भी ऐसा ही है। अपने गृहनगर से निकल कर बड़े शहर में जाना आसान नहीं था। बीपीओ कंपनी में लडक़ों की यूनिफार्म में काम करना पीड़ादायक पल थे, जो कई बार एक बुरे सपने की तरह लगता था। लिंग परिवर्तन का विचार भी विचलित करता था, क्योंकि यह परिवार के लिए समाज में अपमानजनक हो सकता था। लिंग परिवर्तन के फैसले के बाद अपनी कंपनी के तमाम सहयोगियों व कर्मचारियों को एक लंबी ई-मेल लिखकर इस बात से अवगत करवाया था कि वो असल में ट्रांसगर्ल है।
2015 में जब शादी का दबाव आया तो दुनिया छोड़ देने तक का विचार भी दिमाग में कौंधा। सत्यमेव जयते ने जीवन में बदलाव लाया। परिवार को भी यह टीवी शो दिखाया। एक बार जब परिवार का समर्थन मिल गया तो किसी की परवाह नहीं की। जब सर्जरी से पहले नौकरी छोड़ी थी तो मासिक आमदनी एक लाख के आसपास थी। भाई व मां भी बैंकॉक में सर्जरी के दौरान मौजूद रहे। केवल इस बात का दुख होता है कि ट्रांसगर्ल को शिक्षित नहीं किया जाता। जब मिस ट्रांसगर्ल इंडिया में हिस्सा लेने का मौका मिला तो यह भी पाया कि अधिकतर ट्रांसगर्ल शिक्षित नहीं हैं। मैं अपने परिवार की भी शुक्रगुजार हूं, जिन्होंने मुझे उच्चशिक्षा दिलवाने में भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी।