राजगढ (एमबीएम न्यूज) : प्रधानमंत्री द्वारा आरंभ किए जाने वाले ‘डीडी किसान’ चैनल के लिए बनाए जा रहे ‘फोक-स्टार’ के तहत ‘‘माटी के लाल’’ पर बनने वाले 52 धारावाहिक के लिए राजगढ़ के 6 वर्षीय सार्थक का चयन हुआ है। इस चयन से जहां सार्थक के मां-बाप खुशी से फूले नहीं समा रहे हैं वहीं अन्य संबंधी, नन्हें मित्र एवं राजगढ़ के कलाकार भी स्वयं को गौर्वान्वित महसूस कर रहे हैं। यह चयन पिछले दिनों शिमला के होली-डे-होम में मुंबई की साईं बाबा टेलीफिल्मस द्वारा आयोजित किया गया था जिसमें प्रदेश के लगभग सौ प्रतिभागियों ने भाग ले कर अपनी कला का प्रदर्शन कर उक्त धारावाहिक में स्थान प्राप्त करने की कोशिश की थी। सार्थक के पिता अमरसिंह ने बताया कि यह ऑडिशन दो राउंड में पूरी की गई जिसमें सार्थक को पहले ही राउंड में चुन लिया गया जबकि दूसरे राउंड में 19 कलाकारों का चयन किया गया।
उन्होंने बताया कि सार्थक ने तीन गीत गाए जिसमें पहला अति विलंबित में गाया गया ‘मामटिया‘ का पहाड़ी गीत, सामान्य दादरा में गाया गया ‘म्हारे बिशुए जाणा’ का दूसरा गीत तथा ‘मेरे कोनों रा झूमका’ केहरवा 16 मात्रा में गाया गया तीसरा गीत शामिल था। सार्थक ने इन गीतों पर स्वयं ढोलक बजा कर चयनकर्ताओं को दांतों तले अंगुली दबाने पर मजबूर कर दिया। उसकी इस विलक्षण प्रतिभा को देखते हुए सार्थक को चयन-प्रमुख संगीत निदेशक हितेश प्रसाद ने उसके प्रथम प्रयास में ही सिलेक्ट कर दिया। प्रशिक्षण के लिए चयनित कलाकारों को मुंबई बुलाया जाएगा जहां उक्त धारावाहिक की शूटिंग की जाएगी। ज्ञात रहे सार्थक को पहला मंच ‘‘पीच वैली गुरूकुल स्कूल राजगढ़’’ में आयोजित वार्षिक पारितोषिक वितरण समारोह में मिला था जहां उन्होंने अपनी कला का भरपूर प्रदर्शन कर वाहवाही लूटी थी। इस उपलब्धि का श्रेय, जहां पिता अमरसिंह, सार्थक के गुरू राष्ट्रपति अवार्ड ठाकुर जियालाल को देते हैं वहीं स्कूल के चेयरमेन एवं संस्थापक सतीश ठाकुर एवं स्थानीय पत्रकारों को भी देते हैं।
सार्थक की माता आशा देवी जो कि मंडियाघाट स्कूल में एचटी के पद पर आसीन हैं, ने बताया कि सार्थक ने अपने पांव पर खड़ा होना सीखा ही था कि अपनी कला का आभास करवाना भी आरंभ कर दिया। जब वह खाने को छोड़ कर प्लेट को बजाने में लग जाता, दरवाजे पर खड़े हो कर दरवाजे में ताल देना आरंभ कर देता, कटोरियों को जलतरंग की तरह चम्मच से बजाता, कहीं पर ढोलक, तबला देख कर उस को बजाने में जुट जाता। शादी-ब्याह के दौरान बजंतरियों के पास बैठ कर उनके हावभाव को देखता रहता और तब तक नहीं उठता जब तक बजाना बंद नहीं हो जाता।
पिता अमर सिंह ने जो कि पीडब्ल्युडी में वरिष्ठ सहायक पर पदासीन हैं, उसका वाद्ययंत्र मोह देख कर घर में ढोलक-तबला मंगा कर उसे दे दिया। उसके बाद तो जैसे उसकी कला में पंख लग गए और ताल एवं मात्राओं का ज्ञान अर्जित करना शुरू कर दिया। तीन साल तक सार्थक ने पहाड़ी तालों का भरपूर ज्ञान प्राप्त कर लिया था। पिता अमरसिंह स्वयं बहुत अच्छे क्लेरनेट एवं बांसुरी वादक हैं तथा तालों का ज्ञान रखते हैं। सार्थक के चाचा धर्मपाल भी शहनाईवादक हैं। इन दोनों केे सहयोग से सार्थक ने प्राथमिक ज्ञान प्राप्त कर कला के क्षेत्र में ऐसा पदार्पण किया कि यदि सार्थक को गूगल-ब्वाय कहा जाए तो कोई दो-राय नहीं होगी।