नीना गौतम / कुल्लू
सैंज घाटी की फाटी कनौन के आराध्य देव ब्रम्हा ऋषि व देवी भगवती का ऐतिहासिक हूम पर्व कनौन में धूमधाम से मनाया गया। इस हूम पर्व में देव परंपरा की अनूठी मिसाल देखने को मिली। हूम काहिके में देव हारियानों द्वारा 70 फुट लंबी मशाल को जलाकर गांव की परिक्रमा की गई।
मान्यता यह है कि देवी भगवती इस दिन ज्वाला रूप धारण कर हजारों श्रद्धालुओं को दर्शन देती है। यह लकड़ी की मशाल देवी भगवती के ज्वाला रूप का जीता जागता सबूत है। मान्यता यह है कि इस दिन जो इस ज्वाला रूप की मशाल के दर्शन करते है। उनकी महामाई मनोकामना पूर्ण करती हैं और भूत प्रेत व बुरी आत्माओं से प्रभावित स्त्री-पुरूष इस ज्वाला रूपी मशाल को देखने मात्र से ही स्वस्थ हो जाते है।
मान्यता है कि माता भगवती व बंशीरा, पांचवीर, खोड़ू देवता अपने क्षेत्र की रक्षा के लिए व प्राकृतिक आपदा को टालने के लिए हर वर्ष आषाढ़ महीने में हूम पर्व का आयोजन करते है। गौर है कि मंगलवार शाम को देवता ब्रम्हा लक्ष्मी के रथों को पूरे लाव लश्कर के साथ देहुरी में भगवती के मंदिर में पहुंचाया गया।
वहां देव परंपरा का निर्वाह करते हुए देवी-देवताओं के गुर ने देव खेल का आयोजन किया। तत्पश्चात देव आज्ञा के अनुसार 70 फुट लंबी मशाल को जलाकर गांव की परिक्रमा शुरू की और उस मशाल को कंधे पर उठाकर कनौन में स्थित देवता ब्रम्हा के मंदिर तक पहुंचाया।
कनौन पहुंचते ही श्रद्धालुओं नेे माता की जयकार घोष के साथ मशाल का स्वागत किया और जलती मशाल के आगे देवी भगवती के गुर और उसके अंग-संग चलने वाले देवता बंशीरा, खोड़ू, पांचवीर, जाहल, देवता के गुरों ने देव नृत्य किया।
अश्लील गालियों का हुआ खूब आदान-प्रदान
कनौन में हूम पर्व के दौरान जहां लोगों ने 70 फुट लंबी मशाल देखकर अचंभित हुए वहीं, इस पर्व में अश्लील गालियों को सुनकर लोग हैरान रह गए। यह अश्लील गालियां गांव के बीचों-बीच दी जाती हैं। लेकिन जैसे ही मशाल को कनौन गांव की तरफ लाया जाता है।
इसी दौरान गांव से एक किलोमीटर दूर पहुँचते ही नाले में देव हारियानों द्वारा अश्लील गालियों का आदान-प्रदान किया जाता है और यह नाला पार करते ही अश्लील गालियां बंद कर दी जाती हैं। देवता के कारदार भीमी राम ने बताया कि बुरी आत्माओं व भूत-प्रेत से निजात पाने के लिए अश्लील गालियां दी जाती हैं।
नियाही गांव के देव कारिंदों के मंदिर पहुंचते ही शुरू होता है हूम पर्व 5 किलोमीटर की दूरी पैदल तय कर नियाही गांव के देव कारिंदे जैसे ही मंदिर पहुंचते हैं तो देवता की शक्ति आते ही इस मशाल को मंदिर में जले दीवे के साथ जलाया जाता है और फिर सैंकड़ों लोग इस मशाल को कंधो पर उठाकर मंदिर की परिक्रमा करते हैं। इस जलती मशाल के आगे देवी भगवती के गुर और उसके अंग-संग चलने वाले देवता बंशीरा, खोड़ू, पांचवीर के गुर इत्यादि देव नृत्य करते हैं।
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