एमबीएम न्यूज़ / हमीरपुर
माता टौणी देवी के दरबार में आज बड़े मेले का आयोजन हो रहा है। चौहान वंश की कुल देवी के दर पर गेहूं की फसल का चढ़ावा चढऩे के साथ-साथ मां की पूजा अर्चना होगी। मेला अस्पताल चौक से लेकर ऊहल चौक तक हर बार सजता है। इस बार मेले के अधिक बढऩे के आसार है। क्येांकि बाजार में मार्ग बिल्कुल खुला हो चुका है।

जलेबी, पकौडे, चने-टिक्की, समोसे के साथ-साथ अन्य सामान की दुकाने सजाने के लिए इस बार खुली जगह उपलब्ध रहेगी। दूसरी तरफ मंदिर कमेटी ने श्रद्वाुलओं के लिए तमाम सुविधाएं जुटा ली है। मंदिर कमेटी के सदस्यों ने मंदिर में पूजा-अर्चना की विशेष व्यवस्था की है। कमेटी की तरफ से मंदिर के मुख्य द्वारा पर छबील भी लगेगी।
इसके लिए स्थानीय लोग सेवा के तौर पर वहां मौजूद रहेगे। यहां बता दें कि चौहान वंश की कुल देवी माता टौणी देंवी के मन्दिर आज से लगभग 300 वर्प पूर्व जव दिल्ली पर मुगलों का अधिपत्य हो गया। उन्होने राजपूतों की माँ-बहनों पर अत्याचार करना प्रारम्भ कर दिया। राजपूतों का जनेउ उतारकर धर्म परिवर्तन करवाने लगे तो चौहान वंश के बारह भाईयों ने इन पहाडी दुर्गम क्षेत्र मे शरण ली। ताकि अपने धर्म व परिजनों की रक्षा कर सकें। इस दौरान उनकी इकलौती बहन भी उनके साथ यहां पहुंच गई।
बताया जाता है कि उनकी बहन सुनने में असमर्थ थी। यहां पहुंचकर परिवार के मुखिया ने बाकर कुनाह व पुंगु खडड के केन्द्र पर भवन की योजना बनाई। मगर जिस स्थान पर डेरा जमाने की योजना बनी वहां पर खून की धारा निकलने लगी। इस पर कुल पुरोहित से मश्वरा लिया गया। उन्होने इसके लिए घर की कुवारीं कन्या को दोषी बताया। राजाओं की पत्नियां लड़की से नाराज रहनी लगी। बार-बार मिलने वाली यातनाओं से तंग आ चुकी लड़की ने टौणी देवी में तपस्या पर बैठने का मन बनाया।
अपनी तपस्या में लीन हो गई। बताया जाता है कि आषाढ मास के 10 प्रविप्टे को लड़की यहां पर अंतर्ध्यान हो गई। भाइयों को जब इस बात का पता चला तो वह बहुत दुखी हुए। उन्होंने इस पर प्रायश्चित करते हुए अपनी बहन की याद में यहां पर छोटे मंदिर की स्थापना कर दी। तब से लेकर आज तक इस मंदिर में हर वर्ष मेले का आयोजन होता है। बूढ़े बुजुर्गों का मानना है कि टौणी देवी जगह का नाम भी इसी माता की देन है।
यहां की पहचान माता मंदिर ही माना जाता है। मां के जयकारो के लिए हर वर्ष दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, जम्मू व हिमाचल के कोने-कोने से लोग यहां पहुंचते है। आज इस मंदिर को पर्यटन की नजर से भी विकास मिला है। यहां पर रात को ठहरने की व्यवस्था के साथ-साथ अन्य तमाम सुविधाए उपलब्ध है।