नीना गौतम / कुल्लू
देश को आजाद हुए सात दशक बीत चुके है, लेकिन देवभूमि कुल्लू के कई गांवों के लोगों को अभी तक आजादी के मायने ही मालूम नहीं है। आजादी क्या होती है और देश कब आजाद हुआ इसकी झलक पाने से कोसों दूर कई गांवों के लोग हैं। आजादी महसूस भी कैसे होगी जब तक सरकार की नजर-ए-इनायत ही इन गांवों में न पड़ी हो। उपमंडल बंजार की ग्राम पंचायत चकुरठा व कोटला की चोटी पर स्थित गांव पढ़ारणी के लोग आज भी आदिवासी वाला जीवन जी रहे हैं।
सैंज या बालीचौकी से पीठ पर बोझा ढोते-ढोते कई पीढिय़ां समाप्त हो चुकी हैं लेकिन अब गांव के भविष्य की पीठ पर भी बोझा ही है। हैरानी तो तब सामने आती है जब गांव में कोई बीमार हो गया या फिर कठिन भूगोलिक स्थिति में पहाड़ी पर पांव फिसल जाए तो ईलाज करने के बजाए यहां के लोग दुनिया छोडऩा बेहतर समझते हैं। फिर भी पीड़ा असहनीय हो तो बीमार व्यक्ति को काठ पर उठाकर अस्पताल लाना पड़ता है। ऐसी ही घटना मंगलवार को घटी। पालकी में मरीज को ले जाते लोग
गांव के अलग-अलग कोने में तीन लोगों के पांव फिसलने से किसी की टांगे टूटी तो किसी को शरीर के अन्य भागों में फैक्चर आए। लेकिन गांव के लोगों के पास इन मरीजों को काठ की पालकी में उठाकर अस्पताल लाने के अलावा कोई भी चारा नहीं था। हम यूं कहें कि दुनिया के लोग आज चांद पर पहुंच गए हैं लेकिन पढ़ारणी गांव के लोगों का जीवन काठ पर है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। अभी तक गांव में सड़क सुविधा नहीं पहुंच पाई है। जिस कारण कई लोग बिना ईलाज के बेमौत मारे जाते हैं। इसके अलावा भी जीवन बेहद कठिन है।
हैरानी इस बात की भी है कि पढ़ारणी गांव की दोनों दिशाओं में सड़कें पहुंच गई है लेकिन यहां तक सड़क पहुंचाने की कोशिश किसी भी राजनेता ने नहीं की। ग्रामीण लोगों ने बताया कि पूर्व मंत्री कर्ण सिंह ने गांव तक सड़क पहुंचाने के हर संभव प्रयास किए। सड़क मंजूर की जा चुकी है और निर्माण कार्य का ठेका भी दिया जा चुका है। लेकिन नई सरकार आते ही ठेकेदार ने भी निर्माण का काम बंद कर दिया है। जिस कारण अब गांव के लोगों की उम्मीदों पर फिर पानी फिर गया है और आशाओं की किरणे जो जगी थी वे भी धुंधली होने लगी है।
सरकार की नजर-ए-इनायत इस गांव पर होगी तो यह गांव दोनों तरफ से सड़क से जुड़ सकता है। भुईंका पुल कोटला सड़क से लिंक रोड़ दल्याड़ा गांव तक पहुंचता है लेकिन यहां से आगे पढ़ारणी गांव को सड़क पहुंचाना तो दूर गांव दल्याड़ा तक आए मार्ग की देख रेख न होने से यह भी शुरूआती प्वाईंट पर खराब चला हुआ है। सरकार व विभाग इस मार्ग को बहाल रखने में भी नाकामयाब रहा है जबकि इस मार्ग में मात्र दो कलवर्ट ही लगने हैं।
यदि यह मार्ग भी बहाल होता तो पढ़ारणी गांव के लोगों की दूरी थोड़ी कम होनी थी। जबकि दूसरी ओर पलदी घाटी से भी पढ़ारणी गांव सड़क मार्ग पहुंच सकता है। लेकिन अभी तक कोई भी प्रयास नहीं हुए हैं। जिस कारण गांव के लोग नारकीय जीवन जीने को विवश है। बहरहाल गांव के लोगों ने स्थानीय विधायक व प्रदेश की नई सरकार से मांग की है कि इस गांव को शीघ्र सड़क से जोड़ा जाए और वे भी आजादी का मजा सात दशकों बाद ले सके।
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