पावंटा साहिब (एमबीएम न्यूज़): पहाडी राज्य हिमाचल प्रदेश में कई गांवों का अस्तित्व खतरे में पड गया है। ऐसा ही एक गांव शिलाई क्षेत्र के अंतर्गत भितरकुई
है। लगभग 30 घरों वाले भितरकुई गांव में अब सिर्फ 2 से 3 परिवार रह गए हैं। गांव में पहुँच कर लगता है मानो दुश्मन ने देश की सीमा पर हमला कर दिया जिसके बाद रातो -रात गांव खाली करवा लिया गया हो।
असल में यहां गांव जैसा अब कुछ नहीं बचा है। घर, खेत खलियान, सब उजडते जा रहे हैं। रास्ते सुनसान हो गए हैं। स्कूल मात्र भवन बनकर रह गया है। न घरों में रहने वाले लोग यहां है न खेतों को जोतने वाले किसान। यहां कुछ बचा है तो टूटते उजडते घर और अपने मालिकों का कभी न खत्म होने वाला इंतजार करते यह ताले। मूलभूत सुविधाओं की कमी के चलते परिवार पलायन कर गए हैं तो स्कूल में पढने को बच्चे भी नहीं बचे। कभी क्षेत्र के सबसे खुशहाल गांव की बदहाली पर आंसु बहाने के लिए यहां कुछ मुठ्ठी भर लोग ही बचे हैं। जो आज भी सरकार की नजरे इनायत को तरस रहे हैं। इस गांव में कभी 35-36 खुशहाल परिवार निवास करते थे और इसे अनाज का कटोरा कहा जाता था, लेकिन यहां महज 2-3 परिवार और उजाड खेत ही शेष बचे हैं। यह कहानी सिर्फ भितरकुइ गांव की नहीं है। पलायन का कारण एक ही है, सरकारी अनदेखी के चलते मूलभूत सुविधाओं की कमी। किसी भी क्षेत्र में विकास के लिए राजनीतिक और प्रशासनिक इच्छा
शक्ति की दरकार होती है। लेकिन गांव- गांव तक विकास करने वाली सरकारों के नुमाइंदे या अधिकारी कभी भी इस गांव तक नहीं पहुंचे तो विकास कैसे पहुंचेगा। भितरकुई में बचे कुछ लोग आज भी अपने पुरूषार्थ और कुदरत के रहमों-करम पर गुजरबसर कर रहे है। शहर और दुनिया की खबर सार से दूर इस ग्राम का सरकार और व्यवस्था नाम की चीज से आज भी दूर दूर तक वास्ता नहीं है। कभी यहां के खेत सोना उगलते थे लेकिन अब इनको जोतने वाला इक्का-दुक्का परिवार ही यहां बचे हैं।