नाहन (रेणु कश्यप): जीवन की रेलमपेल में हर कोई पैसा कमाने के पीछे दौड़ रहा है। लेकिन 60 साल के गंगाधर के दिल से कोई पूछे तो सिहर उठे बगैर नहीं रह पाएगा। कुछ साल पहले केदारनाथ त्रासदी में पलक झपकते ही परिवार को खो दिया। वहां रहने का औचित्य नहीं बना तो भगवान परशुराम जन्मस्थली को अपना घर बना लिया। चाट-टिक्की बेचकर 60 साल के गंगाधर जो कमाते हैं, वो मानव सेवा पर ही खर्च कर देते हैं।
रविवार को अस्पताल में रक्तदान शिविर का आयोजन हुआ। रेहड़ी को अस्पताल परिसर में पहुंचा दिया, ताकि हरेक रक्तदाता को निशुल्क ही चाट व टिक्की खिला सकें। आरोग्य सेवा समिति द्वारा आयोजित इस शिविर में गंगाधर यह सुनश्चित करने में लगे हुए थे कि कोई भी टिक्की-चाट खाए बगैर न जाए। बतौर मुख्यातिथि पहुंचे शुगलू ग्रुप ऑफ कंपनी के एलडी शर्मा ने गंगाधर की रेहड़ी पर खड़े होकर टिक्की खाई तो अल्ट्रा मैराथन धावक सुनील ने भी गंगाधर के हाथों की टिक्की का स्वाद चखा।
गंगाधर का कहना था कि जीवन क्षण भंगुर है। उनका कहना था कि केदारनाथ त्रासदी के चंद दिनों बाद ही उत्तराखंड में अपना घर छोडक़र यहां आ गए थे। तब से मानव सेवा के लिए जो बन पड़ता है, करते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि ऐसी परिस्थितियों में इंसान किसी नशे का आदी भी हो सकता है। लेकिन नहीं, गंगाधर ने मानव सेवा का रास्ता चुना।
गरीब राहगीरों व भिखारियों को निशुल्क टिक्की खिलाने में रत्ती भर भी संकोच नहीं करते हैं। उनका कहना यह भी है कि बेशक ही अपना परिवार खो दिया था, लेकिन आज राहगीर व भिखारियों से लेकर हर कोई इनके परिवार का सदस्य है।