संगड़ाह(एमबीएम न्यूज़): किसानों को खेती छोड़ने पर मजबूर करने वाले क्षेत्र के उत्पाती बंदरों को पकड़कर इनकी नसबंदी करवाई जाने की प्रक्रिया तेज की गई है। अब तक कुल 35 बंदरों के ऑपरेशन करवाए जा चुके हैं। शनिवार को जहां 35 बंदरों को नसबंदी के लिए मंकी स्टेरलाइजेशन केंद्र पांवटा साहिब भेजा जा चुका था, वहीं अन्य उत्पाती बंदरों को पकड़े जाने के लिए आस-पास के गांव में जाल बिछाए जाने की प्रक्रिया जारी है।
विभाग द्वारा आगरा से बुलाई गई बंदर पकड़ने के विशेषज्ञों की टीम द्वारा गत 25 नवंबर से संगड़ाह व आसपास के गांव मे बंदर पकड़ने के लिए पिंजरे अथवा जाल बिछाए जा रहे है तथा शनिवार तक कुल 37 बंदर पकड़े जा चुके हैं। उपमंडल संगड़ाह मे बंदरों के आतंक का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि, जुलाई व अगस्त 2007 मे इनसे परेशान इलाके के किसानों ने ज्ञान विज्ञान समिति व खेती बचाओ समिति नामक संगठनो के सहयोग से क्षेत्र मे ऑपरेशन कलिंग चलाकर 420 के करीब बंदरों को ठिकाने लगा दिया था।
इसी क्षेत्र से संबंध रखने वाले किसान सभा जिला इकाई के अध्यक्ष रमेश वर्मा ने कहा कि, सरकार व विभाग नसबंदी के नाम पर पिछले कुछ अरसे से महज चंद बंदरों को पकड़कर किसानों को शांत करने का प्रयास कर रही है, जबकि यह बंदरों के आतंक को कम करने का कोई स्थाई समाधान नहीं है। किसान सभा अध्यक्ष ने वर्ष 2007 मे मेनका गांधी के संगठन द्वारा आपरेशन कलिंग रूकवाए जाने को किसान विरोधी कदम करार देते हुए बंदर मारने की मुहिम रोके जाने की कड़ी निंदा की।
उन्होंने कहा कि, प्रदेश के कांग्रेस व भाजपा नेताओं को केवल चुनाव के दौरान बंदरों के आतंक की याद आती है, जबकि सत्ता मिलते ही वह इस मुद्दे को भूल जाते हैं। बंदरों द्वारा क्षेत्र मे बच्चों पर हमले से दहशत भी पैदा की जा रही है। तीन माह पूर्व आदर्श जमा दो विद्यालय संगड़ाह के एक छात्र को उसके गांव मोहतू मे बंदरों ने हमला कर घायल कर दिया था तथा वन विभाग द्वारा अब तक पीड़ित छात्र को आवेदन के बावजूद अब तक मुआवजा नही दिया गया। नसबंदी से क्षेत्र मे बंदरों की संख्या कम होने की उम्मीद है।
वन विभाग द्वारा पकड़े गए कुल 37 मे से दो बंदरों की सप्ताह भर उन्हें खुले आसमान के नीचे बंद पिंजरों मे रखे जाने के दौरान मौत होने पर स्वयंसेवी संगठन सारा ने कड़ी आपत्ति जताई। संस्था के पदाधिकारियों ने यहां जारी बयान में कहा कि वन विभाग व बंदर पकड़ने आई टीम की लापरवाही से दो बंदर मारे गए हैं। उन्होंने कहा कि फॉरेस्ट चौकी संगड़ाह के बाहर जिस जगह पर पकड़े गए बंदरों के पिंजरे रखे जा रहे हैं, वहां रात को तापमान शून्य डिग्री के आस-पास होता है तथा दिन मे भी ज्यादा देर धूप नहीं लगती।
संस्था के मुख्य सचिव बीएम शर्मा ने कहा कि, हालांकि वह बंदरों की नसबंदी के खिलाफ नहीं है, मगर पकड़े गए बंदरों को पिंजरे मे दर्दनाक मौत का वह कड़ा विरोध करते हैं। वन विभाग के डिप्टी रेंजर संगड़ाह राजेंद्र तोमर ने कहा की, टीम द्वारा पकड़े गए 37 में से केवल दो बंदरों की आपस मे लड़ने से मौत हुई है। उन्होंने कहा कि, संगड़ाह मे जिस फारेस्ट चौकी अथवा हट के बाहर बंदर रखे गए हैं, उसी हट के अंदर इन्हें पकड़ने वाली टीम भी रहती है।
उन्होंने कहा कि, बंदर पकड़ने वालों को पिंजरे मे मौजूद बंदरों को ठंड से बचाने तथा इनके खाने पीने की उचित व्यवस्था के निर्देश दिए हैं। डिप्टी रेंजर ने कहा कि बंदर मरने का कारण अलग-अलग खेमों के दो बंदरों का पिंजरे के अंदर आपस में लड़ना रहा है।