शिमला (एमबीएम न्यूज़) : राजधानी शिमला में भवन निर्माण को लेकर एनजीटी के आदेशों से खफा विभिन्न स्वयंसेवी संगठनों ने आज यहां अधिवेशन कर आगामी रणनीति तैयार की। शिमला नागरिक सभा द्वारा आयोजित इस अधिवेशन में 36 संगठनों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इसके अलावा माकपा समर्थित पार्षदों व जिप सदस्यों ने भी हाजिरी भरी। एनजीटी के खिलाफ संघर्ष तेज करने के लिए सभी संगठनों और प्रतिनिधियों ने मिलकर शिमला जन संघर्ष समिति का गठन किया, जिसका गोबिंद चतरांटा को संयोजक चुना गया।
शिमला नागरिक सभा के अध्यक्ष विजेंद्र मेहरा ने कहा है कि एनजीटी का निर्णय शिमला शहर की जनता के ऊपर तानाशाही है। इस निर्णय को लेते वक्त नगर निगम व प्रदेश सरकार जैसी लोकतांत्रिक संस्थाओं तथा स्टेकहोल्डरों को विश्वास में नहीं लिया गया और न उनकी राय ली गई। इस ऑर्डर को लागू करवाने के लिए बनी मोनिटरिंग कमेटी के ज्यादातर सदस्य हिमाचल प्रदेश और शिमला से बाहर के हैं।
उन्होंने कहा है कि इस निर्णय के अनुसार घरेलू भवनों को नियमित करने के लिए 5 हजार रुपये प्रति वर्ग फुट व कमर्शियल भवनों को नियमित करने के लिए 10 हजार प्रति वर्ग फुट व पूरे भवन को रेगुलर करने के लिए 50 से 60 लाख रुपये देने होंगे। इतनी भारी राशि चुकाने के बजाए जनता को भवन छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
मेहरा ने कहा कि एनजीटी के निर्णय से स्मार्ट सिटी पर ही खतरा पैदा हो गया है। एनजीटी ने शहर के कोर एरिया में भवन निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया है। स्मार्ट सिटी के 1500 करोड़ रुपये की राशि भी कोर एरिया में लगना प्रस्तावित है। अतः इस निर्णय के चलते यह राशि शिमला शहर में खर्च नहीं हो पाएगी।उन्होंने कहा है कि इस निर्णय के कारण शिमला प्लानिंग एरिया के अंतर्गत आने वाली इर्द गिर्द की दर्जनों पंचायतों के बाशिंदों को भी भारी नुकसान उठाना होगा।
उन्होंने प्रदेश सरकार से मांग की है कि इस निर्णय के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए। उन्होंने प्रदेश सरकार से अपील की है कि यह निर्णय देश की संसद से पारित वनाधिकार अधिनियम का भी खुला उल्लंघन है अतः इसके खिलाफ केंद्र सरकार का हस्तक्षेप सुनिश्चित किया जाए।