मंडी (वी कुमार): शहीदों के नाम पर जो घोषणाएं होती हैं, वो सिर्फ घोषणाएं ही बनकर रह जाती हैं। प्रदेश भर में शहीदों के नाम पर की गई घोषणाओं के कई जीते जागते उदाहरण देखने को मिल जाएंगे। एक ऐसा ही उदाहरण जिला के जोगिंद्रनगर उपमंडल में भी देखने को मिल रहा है। यहां शहीद के नाम पर मात्र 1100 मी. की सड़क को 13 वर्ष बीत जाने के बाद भी नहीं बनाया जा सका है।
वर्ष 2004 में मात्र 22 वर्ष की आयु में शहादत का जाम पीने वाले शहीद जगमोहन ठाकुर को शासन और प्रशासन भूला चुका है। शहीद जगमोहन ठाकुर का घर जिला के जोगिंद्रनगर उपमंडल के लोअर बसाही गांव में है। जब जगमोहन की शहादत हुई थी तो नेताओं से लेकर प्रशासनिक अधिकारियों का घर पर जमावड़ा लग गया था। चक्का से लोअर बसाही गांव तक शहीद के नाम पर 1100 मी. सड़क बनाने का ऐलान हुआ।
1100 मी. में से मात्र 300मी. सड़क का निर्माण ही हो पाया और बोर्ड लगाकर उस पर लिख दिया गया कि यह शहीद मार्ग है। इसके बाद न तो शासन ने इस तरफ ध्यान दिया और न प्रशासन ने। 300 मी. तक बनाई गई सड़क भी आज बदहाली के आंसू बहा रही है। सड़क पर वाहन चलाना तो दूर अगर आप पैदल चल पड़े तो वो भी बड़ी बात होगी। ग्रामीणों में इस बात को लेकर रोष है कि शहीद के नाम पर जो घोषणा की गई थी उसे 13 वर्ष बीत जाने के बाद भी पूरा नहीं किया जा सका है।
ग्रामीणों ने इस सड़क की बदहाली को लेकर हर जगह गुहार लगाई। जिला प्रशासन और राज्य सरकार को तो छोड़ ही दीजिए, मामला दिल्ली दरबार तक पहुंचाया गया, लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। लोअर बसाही गांव में एक हजार से अधिक की आबादी रहती है और उन्हें इस सड़क का लाभ मिलना था लेकिन आज दिन तक यह लाभ नहीं मिल पाया है।
शहीद जगमोहन ठाकुर अपने घर का इकलौता चिराग था। इस चिराग के बुझ जाने के बाद अब घर पर सिर्फ बूढ़ी मां ही शेष रह गई है। अपने बेटे की यादों के सहारे जैसे-तैसे जिंदगी कट रही है लेकिन सड़क न बन पाने का मलाल दिल और जुबां पर है। शहीद की मां शांति देवी का कहना है कि सड़क बनकर पक्की हो जाए और सभी को इसकी सुविधा मिले यही उनकी इच्छा है।
हैरानी होती है यह जानकर कि जब शहीद के नाम पर कोई काम करना ही नहीं था तो सिर्फ एक बोर्ड लटकाकर खानापूर्ति क्यों की गई। क्या शासन और प्रशासन की नजरों में शहीदों के प्रति कोई मान-सम्मान नहीं। शहीदों की शहादत को ऐसे ही भूलाया जाता रहा तो यह भावी पीढ़ी के लिए सही संदेश नहीं होगा।