शिमला (शैलेंद्र कालरा): रिमोट क्षेत्र में मासूम बेटियां किन विकट परिस्थितियों में शिक्षा ग्रहण करती हैं, इसका उदाहरण सामने आया है। मामला सुन्दरनगर उपमंडल की निहारी तहसील के कथाची से जुड़ा हुआ है। आप शायद यकीन न करें, लेकिन हकीकत यह है कि नन्हीं बेटियों में स्कूल जाने का गजब जज्बा है। दो से तीन घंटे पैदल तो चलती ही हैं। साथ ही गुरबत की वजह से खाद के कट्टों (Bags) से बने स्कूल बस्तों का इस्तेमाल करती हैं।

एमबीएम न्यूज नेटवर्क को प्राथमिक पाठशाला कथाची में पढ़ रही नन्हीं बेटियों की तस्वीरें मिली हैं। साफ नजर आ रहा है कि खाद के बैग को सील कर स्कूल का बस्ता बनाया गया है। इस मामले में नन्हीं बेटियों के स्कूल जाने के जज्बे को तो सलाम किया जाना चाहिए, लेकिन सरकार की कई योजनाओं पर करारा तमाचा भी है।

सबसे अहम सवाल यह उठता है कि सरकार की वो योजनाएं कहां हैं, जिनमें गरीब बच्चों को पाठन सामग्री व अन्य सुविधाएं देने के वायदे किए जाते हैं। एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने जब इस इलाके की कुछ ओर जानकारी जुटाई तो पता चला कि निहारी से कथाची तक सडक़ का निर्माण प्रस्तावित था। लेकिन मामूली अड़चन ने इसे रोक रखा है।
बहरहाल यह तय है कि इस दुर्गम इलाके में सरकारी सहूलियतें नदारद हैं। जिंदगी बेहद जटिल है। यह भी तय है कि खाद के कट्टों से बने स्कूल बस्तों की तस्वीरें भी दुर्लभ ही होंगी। पहाड़ी प्रदेश में शायद ही इस बात की कल्पना की जाती होगी कि आज भी नन्हीं बेटियां इस तरह के जज्बे को लेकर स्कूल पहुंचती हैं।