हमीरपुर (एमबीएम न्यूज़): जिला विस क्षेत्र के अधीन आने वाले तलाशी गांव की अजीब कहानी हैं। इस गांव के बच्चों को स्कूल पहुंचने के लिए तीन कि.मी का सुनसान एवं जंगलनुमा रास्ता तय करना पड़ता है। जब से कोटखाई गुडिय़ा प्रकरण हुआ है तब से इस गांव के अभिभावक भय के साए में गुजर बसर कर रहे है। स्कूल से बच्चें जब तक घर नहीं पहुंचते तब तक अभिभावकों को चैन नहीं मिलती। गांव की इस दांस्ता से सरकार व विभाग कोसों दूर है।
कोटखाई गुडिय़ा प्रकरण के बाद सरकार ने शिक्षा विभाग से सभी उन स्कूलों का विवरण मांगा जहां पर बच्चों को पहुंचने से पहले जंगल का रास्ता तय करना पड़ता है। अजीब है कि इस सूची में तलाशी गांव शामिल नहीं है। जिला विस के अंतिम क्षेत्र से जुटे इस गांव की कई पीढिय़ा इसी सफर में गुजर गई। तलाशी खुर्द व तलाशी कलां दो गांव है। इन गांवों में परिवारों की समस्या 70 आंकी गई है। 70 परिवारों में 35 विद्यार्थी है। इस गांव के लिए शिक्षा की शुरूआत घर द्वार पर है।
गांव मे एक प्राईमरी स्कूल खुल गया है। लेकिन यहां पर पांचवी कक्षा तक की सुविधा ही मिल सकी है। छठी कक्षा में विद्यार्थियों को सीसे स्कूल झगडयाणी में प्रवेश लेना पड़ता है। बस, इसी प्रवेश के बाद विद्यार्थियों का हर दिन छह किमी का सफर पक्का हो जाता है। गांव से स्कूल की दूरी करीब तीन कि.मी है। अब इस तीन कि.मी के सफर पर ध्यान दे तो एक कि.मी जंगली रास्ता, इतना ही शुक्र खड्ड का सफर और इतना ही सफर एंकात रास्ते का है।
गांव के विद्यार्थी ही नहीं बल्कि हर वर्ग के लोगों को यह सफर मजबूरी में तय करना पड़ता है। इसी सफर के चक्कर में पीढिय़ा बदलती जा रही है। लेकिन सड़क की सुविधा नहीं मिल सकी है। समस्या तब विकराल हो जाती है जब गांव में गर्भवती महिला या मरीज को अस्पताल पहुंचाना हो। ऐसे में गांव के लोगों को आज भी पालकी में मरीज सड़क तक पहुंचाने पड़ते है। आधुनिक चकाचौंध से देश विकसित हो रहा है। लेकिन तलाशी गांव इस सारी चका चौंध से कोसो दूर है। यहां के लोगों की 12 महीने हर दिन पैदल सफर करना मजबूरी बन गई है।
ग्रामीणों ने अब इस मसले पर गंभीरता ले ली है। चुनावों के दौरान इस गांव के लोग राजनेताओं को सड़क असुविधा पर घेरने का मन बना लिया है। क्योंकि इस गांव की बेटी जब तक स्कूल से घर नहीं पहुंचती तब तक मां-बाप चैन की साँस नही ले सकते। जितने भी गांव सड़क से महरूम है इनके लिए सड़क का प्रारूप विभाग ने तैयार किया है। इन्हें मंजूरी के लिए आगे भेजा गया है। इस गांव के लिए भी कोई न कोई प्लान बना होगा तथा इसकी पड़ताल भी की जाएगी।
गांव को सड़क से जोडऩे के लिए पांच वर्ष पहले पंचायत स्तर पर प्रयास शुरू हुए। लोक निर्माण विभाग की टीमें भी मौके पर पहुंची। जमीन का सर्वे हुआ। अधिकतर जमीन वन विभाग की निकली। इस जमीन पर करीब 90 पेड़ सड़क के लिए काटे जाना तय किए गए। फोरेस्ट लैंड व पेड़ कटान के लिए मामला सरकार के समक्ष पेश किया गया। उसके बाद फाइल वापिस नहीं लौटी। बस यही जवाब पंचायत को मिला कि मंजूरी के लिए मामला केंद्र को भेजा गया है।