रिकांगपिओ (जीता सिंह नेगी) : एक अगस्त से किन्नर कैलाश यात्रा शुरू हो रही है। यह यात्रा 11 अगस्त तक चलेगी। करीब 24 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित किन्नर केैलाश के दर्शन करने के लिए कई श्रद्धालु आते है।
एसडीएम कल्पा मेजर डा अवनिंद्र कुमार शर्मा ने बताया कि किन्नर कैलाश यात्रा मार्ग में यात्रियों के लिए इस बार पेयजल की व्यवस्था की जा रही है और यात्रियों की सुरक्षा व स्वास्थ्य सुविधाओं का भी पुख्ता प्रबंध जारी है। श्रद्वालु पोलीथीन का प्रयोग न करे, इसके लिए उन्हे जगरूक किया जाएगा व बैस कैंप पर हिदायत बैनर भी लगाएं जाएंगे । वन मंडलाधिकारी ऐजंल चौहन ने कहा कि इस वर्ष इको टूरिज्म के तहत विभाग की ओर से गणेश पार्क में सराय का निमार्ण किया है जंहा यात्रियो को रहने की पूरी सुविधा होगी । उन्होने कहा कि किन्नर कैलाश पर बहुमूल्य जड़ी -बूटी, बहमकमल, धु्रव आदि को श्रद्वालु नुकसान न पहुंचाए इसके लिए भी उन्हे हिदायत दी जाएगी।
किन्नर कैलाश यात्रा कमेटी की और से पवारी नामक स्थान पर लगंर की व्यवस्था की गई है। कमेटी अध्यक्ष विपल कांत ने कहा कि हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी कमेटी ने लगंर की व्यवस्था की है। शिव भक्तो को पूरा खाना दिया जाएगा। उन्होने कहा कि श्रद्वालुओ को रास्ते के लिए पैक खाना की व्यवस्था भी की है ताकि रास्ते में भूख लगने पर खाना खाया जा सके।
किन्नर कैलाश दिन में सात बार रंग बदलता है, जिस कारण कैलाश दर्शन के लिए जिला में सैकडों शिव भक्त व पर्यटक आते है। सदियों पुरानी हिंदु व बौद्व अनुयायियों के आस्था का केंद्र किन्नर कैलाश आज के आधुनिक युग में भी उसी सदियों पुरानी परंपरा के अनुरूप आस्था का केंद्र बना हुआ है। शिव की तपोस्थली देवभूमि किन्नौर के बौद्व लोगों और हिंदु भक्तों का आस्था का केंद्र किन्नर कैलाश समुद्र तल से 24 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। बताते है कि किन्नर कैलाश स्थित शिवलिंग की ऊंचाई चालीस फिट और चौड़ाई 16 फिट है। हर वर्ष सैकड़ों शिव भक्त किन्नर कैलाश दर्शन के लिए जुलाई व अगस्त माह में भारी जंगल व दुगर्म मार्ग से हो कर किन्नर कैलाश पहुंचते है। इस आस्था के यात्रा के दौरान शिव भक्त प्रकृति की मनोहारी दृश्य का नेत्रपान करते हुए निरंतर अपने लक्ष्य की ओर बढते है।
किन्नर कैलाश की यात्रा शुरू करने के लिए भक्तो को जिला मुख्यालय से करीब सात किलो मीटर दूर राष्ट्रीय उच्च मार्ग-5 स्थित पोवारी से तंगालिगं गांव से हो कर जाना पडता है। इस रमणीक सफर के लिए भक्तो को अपने साथ खाने-पीने का सामान तथा पीने का पानी तंगालिग गांव से ही साथ लेना होगा, क्योकि इस सफर के बीच में कही भी पानी नही मिलता है। इस यात्रा के दौरान एक रात बीच में गुफा नामक स्थान पर ठहरना पडता है और अगली प्रात वहां से चल कर शिव भक्त गणेश पार्क स्थल ,पर्वती कुंड पहुंचते है, जहां पहुच कर भक्तजन ऐसा अनुभव करते है कि मानों धरती पर स्वर्ग की सैर कर रहे हो। इस पार्वती कुंड के आसपास प्रकृति के रंग बिरंगे फूल व औषधीय फूल और भगवान शिव के सबसे प्रिय फूल ब्रहम कमल से भरा हुआ है। इस स्थान पर पहुंच कर शिव भक्त यात्रा की सारी थकान मिट जाती है।
गणेश पार्क से करीब पांच सौ मीटर की दूरी पर पार्वती कुंड है, और इस कुंड के बारे जनमानस की मान्यता है कि कुंड में सच्ची श्रद्वा से सिक्का लगा दिया जाए तो मन की मुराद पूरी होती है जिस कारण हर वर्ष बहुत से प्रेमी पार्वती कुंड में सिक्का डालकर मुराद मांगते है। भक्त इस कुंड में पवित्र स्नान करने के बाद करीब 24 घंटे की कठिन राह पार कर किन्नर कैलाश स्थित शिवलिंग के दर्शन करने पहुंचते है। किन्नर कैलाश की प्रकृति की मनोहरी दृष्य देख कर भक्त जन यात्रा की थकान क्षण भर में भूल जाते है। लम्बी यात्रा के बाद कुछ समय प्रकृति के मनोहरी गोद में सूकुन के साथ बिताने के बाद शिवभक्त वापस आते है।
कुछ भक्त जहां किन्नर कैलाश के दर्शन के लिए जाते है बही बहुत से भक्त किन्नर कैलाश परिक्रमा करने जाते है। भक्तजन कुन्नौ-चारंग पहुंचने पर वहां स्थित सदियों पुराने बौद्व मंदिर में पूजा अर्चना के बाद आगे का सफर शुरू करते है। कठिन व प्रकृति के मनोहर दृश्य को निहारते हुए भक्त लालंती पहुंच जाते है वहां पर रात्रि विश्राम के बाद सबसे खतरनाक सफर शुरू होता है। इस रास्ते में कई हिमखंड को भी पार करना पडता है। जैसे – जैसे पहाडियों के निकट पहुंचते है भक्तों को सांस लेना मुश्किल होता है लेकिन आस्था का जूूनूुन व प्रकृति के अनुपम दृष्य को देख भक्त कठिनाईयों को भूल कर शाम को छितकुल पहुंचते है और वहां पहुंच कर छितकुल के कुल देवी की पूजा अर्चना के बाद किन्नर कैलाश की परिक्रमा समाप्त करते है।