नाहन (शैलेंद्र कालरा): राज्य सरकार की कौशल विकास भत्ता योजना में ऑटो डेबिट के खेल का हैरतअंगेज मामला सामने आया है। इसके मुताबिक जैसे ही हर महीने सरकार द्वारा छात्रों के खाते में 1000 रुपए की राशि डाली जाती है, चंद मिनटों में ही यह राशि उन प्रशिक्षण केंद्रों के मालिकों के खाते में ट्रांसफर हो जाती है, जहां छात्र प्रशिक्षण ले रहे हैं।
हालांकि इस तरह की प्रैक्टिस तमाम केंद्र नहीं कर रहे हैं, लेकिन श्रम व रोजगार विभाग बेबसी से इस खेल को देख रहा है। सूत्रों के मुताबिक दाखिलों के वक्त छात्रों से एक फार्म पर हस्ताक्षर ले लिए जाते हैं। इसमें छात्रों से ऑटो डेबिट पर सहमति ले ली जाती है। सवाल इस बात पर भी है कि बैंकों द्वारा इस तरह की अनुमति क्यों दी जाती है।
एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने जब इस खेल की पड़ताल शुरू की तो पता चला कि एजी कार्यालय शिमला से एक टीम ने केंद्रों में दबिश दी थी। इसके बाद 47 प्रशिक्षण केंद्रों की मान्यता को रद्द कर दिया गया, अब 52 केंद्र ही कौशल विकास भत्ते की योजना को संचालित कर रहे हैं। मजेदार बात यह है कि पिछले दो दिनों से खुद श्रम व रोजगार विभाग के मंत्री मुकेश अग्रिहोत्री सिरमौर में ही थे। लेकिन इस खेल के बारे में अनभिज्ञ रहे।
जुटाई जानकारी के मुताबिक 2016-17 में सिरमौर को कौशल विकास भत्ता योजना के तहत साढ़े 6 करोड़ रुपए का बजट मिला था। संभवत: गड़बडिय़ों के कारण इस वित्तीय वर्ष का बजट घटाकर 5 करोड़ कर दिया गया है।
सब कुछ लुटा कर होश में आएंगे तो क्या..
अगर यह मान लिया जाए कि विभाग होश में आ गया है तो यह बात सटीक बैठेगी कि सबकुछ लुटा कर होश में आए तो क्या, क्योंकि मोटी रकम ऐेंठने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई करने की स्थिति में विभाग शायद ही होगा। अंदरखाते ऑटो डेबिट से जेबें भर रहे केंद्रों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज करवाने की मांग भी हो रही है, ताकि सरकारी धन की रिकवरी हो सके। सूत्रों का यह भी कहना है कि केंद्रों में फर्जी तरीके से भी पंजीकरण हुआ है। उच्च स्तरीय जांच के बाद ही सब कुछ सामने आ सकता है। इस वक्त सिरमौर में कौशल विकास भत्ते के अंतर्गत 18,954 छात्रों को पंजीकृत किया गया है, जो प्रशिक्षण हासिल कर रहे हैं।
आज तक क्यों नहीं खुली पोल..
दरअसल केंद्रों में गरीब वर्ग के छात्रों को दाखिला दिया जाता है, जो पहले ही डरे व सहमे हुए होते हैं। कई छात्रों के खाते केंद्रों द्वारा ही खुलवाए जाते हैं। इसी दौरान ऑटो डेबिट की औपचारिकताओं को भी पूरा कर लिया जाता है। चूंकि छात्रों को पढ़ाई की एवज में कोई फीस नहीं चुकानी होती, लिहाजा खामोश रहना ही बेहतर समझते हैं। छात्रों को यही बताया जाता है कि उनकी फीस की एवज में 1000 रुपए प्रतिमाह ले लिए गए हैं। जानकारों ने एमबीएम न्यूज नेटवर्क को यह भी बताया कि आईटी के कोर्स करवाने के लिए कई केंद्र कम फीस लेने को भी तैयार हैं, क्योंकि उन्हें एक साथ ही सैंकड़ों दाखिले मिल सकते हैं।
इंफ्रास्ट्रक्चर भी नहीं..
मजेदार बात यह भी है कि कई केंद्रों में इंफ्रास्ट्रक्चर ही नहीं था। लेकिन सैंकड़ों छात्रों को पंजीकृत कर लिया गया। बहरहाल सवाल यही उठेगा कि क्या लाखों रुपए का सरकारी धन हड़प चुके कथित केंद्रों से रिकवरी का प्रावधान किया जाएगा या नहीं।
क्या कह रहे हैं अधिकारी..
ऑटो डेबिट के खेल पर जिला रोजगार अधिकारी बलवंत वर्मा से सीधा सवाल पूछा गया। इसके जवाब में वर्मा ने कहा कि इस बारे सुनने को मिलता है, लेकिन शिकायत नहीं मिली। कोई शिकायत न मिलने के कारण कार्रवाई नहीं हो पाई है। उन्होंने कहा कि आईटी से जुड़े केंद्रों में इस तरह की आशंका अधिक रही है। बेहद ईमानदारी से वर्मा ने इस बात को भी स्वीकार किया कि एजी की टीम ने जिला के तमाम केंद्रों का निरीक्षण किया था। इसी के बाद मापदंड पूरे न करने वाले 47 केंद्रों की मान्यता को रद्द कर दिया गया है।