नाहन : क्या आप यकीन करेंगे, सिरमौर के पांवटा साहिब विकास खंड में एक पंचायत ऐसी है, जहां छात्र अगर स्कूल चले जाएं तो 15 दिन तक वापस नहीं लौटते हैं। यदि आना हो तो मजबूरन 60 किलोमीटर बस के सफर के बाद 11 किलोमीटर खतरनाक जंगलों का रास्ता पैदल तय करना पडे़गा। जी हां, धारटीधार में छछेती पंचायत के क्यारी व डांडुआ दो ऐसे गांव हैं, जो हर रोज उफनती गिरी नदी का सामना करने के लिए मजबूर रहते हैं।
आपको शायद यह भी अविश्वसनीय लगे, लेकिन हकीकत है कि चंद रोज पहले जान हथेली पर रखकर इन दो गांवों के कुछ लोगों ने गिरी नदी के किनारे पैदल चलने के लिए रास्ता बनाने का साहस जुटाया। 30 मीटर रास्ता बना ही था कि बारिश शुरू हो गई। काम अधूरा छोड़ना पड़ा। जान जोखिम में डालकर 30 मीटर रास्ता भी भूस्खलन की भेंट चढ़ गया।
एमबीएम न्यूज नेटवर्क को ग्रामीणों ने संपर्क साधा तो कई चौंकाने वाले खुलासे ओर भी किए। इसके मुताबिक गांव में अगर कोई बीमार पड़ जाता है तो इसे कुदरत का सबसे बड़ा अभिशाप माना जाता है, क्योंकि घने जंगल से 11 किलोमीटर गुजरना पड़ता है। ददाहू से सतौन वाया नाडी तक सड़क तक सड़क का निर्माण होना था। 20 साल पहले खाली अछौण तक ही इसका निर्माण हुआ। अब लगभग 5 किलोमीटर का निर्माण अधर में लटका है। ग्रामीण कहते हैं कि सड़क के साथ-साथ फुटब्रिज का निर्माण हो जाए तो नरकीय जीवन से बाहर निकल सकते हैं। करीब 60 छात्रों के अलावा दो दर्जन से अधिक ऐसे कर्मचारी भी हैं, जिन्हें सतौन, पांवटा साहिब व राजबन नौकरी के सिलसिले में जाना पड़ता है।
चौंकाने वाली बात यह भी सामने आई कि गांव के बच्चे अगर नदी पार कर स्कूलों में पहुंच जाते हैं तो नदी का जलस्तर बढ़ने की सूरत में उन्हें वहीं कई दिनों तक लोगों के घरों में आश्रय लेना पड़ता है। जलस्तर बढ़ने की सूरत में कई दिनों तक स्कूल नहीं जा पाते। इन परिस्थितियों को लेकर गांव के शिक्षित वर्ग ने निशुल्क कोचिंग कक्षाओं की व्यवस्था भी की है। कई दिनों तक स्कूल न जाने वाले बच्चों को पढ़ाया जाता है।
हैरान कर देने वाली बात यह है कि हिमाचल सरकार ग्लोबल इंवेस्टर मीट व हेलीटैक्सी शुरू करने की योजनाएं बना रही हैं, लेकिन शायद अब तक यह नहीं देखा जा रहा है कि धरातल पर प्रदेश के कई हिस्सों की हालत क्या है।