शिमला, 10 नवंबर: हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस में डाॅ. कर्नल धनीराम शांडिल एक वरिष्ठ वयोवृद्ध नेता के तौर पर पहचान रखते हैं। 2017 के चुनाव में वो भाजपा की लहर होने के बावजूद भी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत गए थे, लेकिन इस चुनाव का नतीजा बेहद ही रोचक था। वो अपने दामाद से चुनाव हार जाते, अगर सीपीएम के प्रत्याशी अजय भट्टी 3 प्रतिशत वोट न लेते। नोटा के 656 वोट भी भाजपा को पड़ जाते तो कांग्रेस प्रत्याशी की जीत मात्र 15 मतों से होती।
निर्दलीय प्रत्याशी शशिकांत चौहान ने 389 वोट प्राप्त किए। 2017 का विधानसभा चुनाव इस बात का मजबूत प्रमाण है कि एक-एक वोट बेशकीमती होता है। निर्दलीय प्रत्याशी के वोट भी अगर भाजपा जुटाती तो हार का अंतर 282 का होता।
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2017 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी कर्नल धनीराम शांडिल को 26,200 मत प्राप्त हुए थे, जबकि भाजपा के राजेश कश्यप ने 25,529 मत हासिल किए। सीपीएम के अजय भट्टी को 1632 वोट डले थे। नोटा का बटन 656 मतदाताओं ने दबाया।
वहीं, निर्दलीय प्रत्याशी शशिकांत को 389 वोट पड़े थे। 2012 में कांग्रेस प्रत्याशी धनीराम शांडिल का ग्राफ 49.97 पर था, जबकि भाजपा का ग्राफ 40.75 प्रतिशत पर था। अहम बात ये थी कि 2012 की तुलना में 2017 में कांग्रेस के ग्राफ में मामूली गिरावट आई, जबकि भाजपा के ग्राफ में 6.17 प्रतिशत का इजाफा हुआ। इससे जाहिर होता है कि भाजपा को प्रत्याशी के बदलने से फायदा मिला था। ये अलग बात है कि भाजपा सीट नहीं जीत सकी थी।
2012 में कांग्रेस व भाजपा के खिलाफ 9.28 प्रतिशत मतदान हुआ था। 2017 में आंकड़ा 4.92 प्रतिशत का था। यानि औसतन मान लिया जाए तो 5 प्रतिशत के आसपास मतदाता भाजपा व कांग्रेस के खिलाफ वोट डालते हंै। 10 साल के चुनावी नतीजों को आधार माना जाए तो इस बार भी मुकाबला कांटे का हो सकता है।
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देखना ये भी है कि आम आदमी पार्टी की प्रत्याशी अंजू राठौर क्या कर पाती है। यदि कांग्रेस-भाजपा के खिलाफ इस बार भी 5 से 10 प्रतिशत के बीच मतदान हुआ तो हार-जीत का आंकड़ा बेहद ही नजदीकी होगा।
पुनर्सीमांकन के बाद ये विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गया। इसके बाद भाजपा नेता डाॅ. राजीव बिंदल को नाहन जाना पड़ा। 2012 में भाजपा ने कुमारी शीला को मैदान में उतारा था। 2017 में भाजपा ने टिकट बदल कर राजेश कश्यप को दिया था।
नाटकीय घटनाक्रम…
विधानसभा क्षेत्र ने 2000 में एक नाटकीय घटनाक्रम भी देखा है। तत्कालीन भाजपा नेता महेंद्र सोफत की याचिका पर कांग्रेस की विधायक चुनी गई मेजर कृष्णा मोहिनी का चुनाव रद्द हुआ था। भाजपा ने उप चुनाव में महेंद्र सोफत की बजाय डाॅ. राजीव बिंदल को मैदान में उतारा था। इस चुनाव में डाॅ. राजीव बिंदल ने 15,042 मत प्राप्त किए। जबकि कांग्रेस की मेजर कृष्णा मोहिनी को 11,505 वोट मिले थे। निर्दलीय प्रत्याशी नेतर सिंह ने 11059 वोट लेकर कांग्रेस का खेल बिगाड़ दिया था। 2003 व 2007 में डाॅ. राजीव बिंदल ने चुनाव जीता।
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मतदाताओं का आंकड़ा….
सोलन विधानसभा क्षेत्र में 86,333 मतदाता हैं। यदि यह मान लिया जाए कि 80 से 82 फीसदी के बीच मतदान होता है तो मतों की संख्या 70 हजार के आसपास रह सकती है। 86,333 में पुरुष मतदाताओं की संख्या 44,401 है, जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 41,929 है। थर्ड जेंडर के तीन मतदाता हैं। अगर भाजपा व कांग्रेस के प्रत्याशी 25-25 हजार वोट लेते हैं तो 20 हजार के करीब ऐसे वोटर होंगे, जो जीत-हार का फैसला करेंगे। इसमें ये भी नजर आ रहा है कि 3 से 4 हजार मतदाता दोनों ही राजनीतिक दलों के खिलाफ मत का इस्तेमाल कर सकते हैं।
मोदी भी आए तो प्रियंका भी….
हिमाचल प्रदेश में प्रियंका गांधी की पहली रैली सोलन में हुई। पार्टी के प्रत्याशी कर्नल धनीराम शांडिल का दिल्ली दरबार में एक अच्छा रसूख है। कांग्रेस ने कर्नल धनीराम शांडिल को घोषणा पत्र कमेटी का चेयरमैन भी बनाया था। उधर, देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फोकस पहले दक्षिण हिमाचल में नहीं था, लेकिन चुनाव के प्रचार के दूसरे चरण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सोलन में प्रचार किया। इस दौरान मोदी के साथ मंच पर शिमला, सोलन व सिरमौर के पार्टी प्रत्याशी मौजूद थे। देखना ये होगा कि सोलन निर्वाचन क्षेत्र के मतदाता प्रधानमंत्री से प्रभावित हुए या फिर सोनिया गांधी की बात दिल जीत गई।
मुद्दे….
पिछले कुछ अरसे से सोलन शहर में लाॅ एंड ऑर्डर की व्यवस्था पर सवाल उठे हैं। ट्रैफिक व्यवस्था की भी हालत संतोषजनक नहीं है। अश्वनी खड्ड से सप्लाई रुके तो पेयजल संकट गहरा जाता है। निर्वाचन क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में टमाटर व सब्जियां नगदी फसलें हैं। टमाटर पर आधारित उद्योग लगे तो किसानों की आर्थिकी को भी सहारा मिल सकता है। टमाटर के दाम शुरुआत में तो आसमान छूते है, लेकिन धीरे-धीरे इतनी गिरावट आती है कि किसान को खर्चा निकालना मुश्किल हो जाता है।
फोरलेन के निर्माण का मुद्दा भी निर्वाचन वासियों को परेशानी खड़ी करता रहता है। बार-बार निर्माण की गुणवत्ता पर सवाल उठते हैं, लेकिन राजनीतिज्ञों द्वारा खामोशी ही साधे रहती है।
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उम्मीदवारों की संपत्ति
सोलन से भाजपा प्रत्याशी राजेश कश्यप (59) आइजीएमसी के डॉक्टर रहे हैं। उनका परिवार करोड़ों की संपत्ति का मालिक है। चुनावी हलफनामे के अनुसार राजेश कश्यप के परिवार के पास 4.55 करोड़ की संपत्ति है। इसमें 1.38 करोड़ की चल और 3.17 करोड़ की अचल संपत्ति है। डॉक्टर राजेश कश्यप की अपनी 69.33 लाख और पत्नी की 57.48 लाख की चल संपत्ति है। जबकि दोनों बच्चों के नाम क्रमशः 5.38 लाख और 5.82 लाख हैं। डॉक्टर राजेश कश्यप के नाम दो लग्ज़री गाड़ियां हैं। इसके अलावा उनके पास 24 लाख के जेवर हैं। अचल संपत्ति में उनका शिमला में दो और पंचकूला में एक रिहायशी भवन है। उन पर 15.40 लाख और पत्नी पर 12.66 लाख की देनदारियां हैं। डॉक्टर राजेश कश्यप ने वर्ष 2001 में आइजीएमसी से मेडीसिन में एमडी की है।
सोलन के चुनावी अखाड़े में उतरे कांग्रेस विधायक धनीराम शांडिल सबसे बुजुर्ग प्रत्याशी हैं। वह 82 वर्ष के हैं। चुनाव आयोग को दिये हलफनामे में उन्होंने अपनी संपत्ति 4.12 करोड़ दिखाई है। इसमें 1.76 करोड़ चल और 2.36 करोड़ अचल संपत्ति है। उनके पास 2 लग्ज़री गाड़ियां हैं। अचल संपत्ति में उनकी कंडाघाट में दो और शिमला के समरहिल में एक रिहायशी भवन है। धनीराम शांडिल पर 49.44 लाख की देनदारियां हैं। उन्होंने राजनीति विज्ञान में पीएचडी की है।
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50 साल में मिश्रित परिणाम….
विधानसभा क्षेत्र की खासियत ये है कि यहां मतदाताओं ने मिश्रित परिणाम दिए हैं। 1972 के बाद 11 चुनावों में कांग्रेस ने इस सीट को पांच मर्तबा जीता। जबकि भाजपा के खाते में ये सीट चार बार रही। 1977 में कांग्रेस विरोधी लहर में जेएनपी के प्रत्याशी गौरी शंकर ने चुनाव जीता था। 1972 में निर्दलीय प्रत्याशी कृष्ण दत्त को सफलता हासिल हुई थी।
50 साल पहले 1972 में इस सीट पर कांग्रेस का मुकाबला आजाद उम्मीदवार कृष्ण दत्त से ही हुआ था। हालांकि, भारतीय जनसंघ ने भी प्रत्याशी को उतारा था, लेकिन प्रत्याशी इतवारी लाल को कांग्रेस के 48 प्रतिशत की तुलना में 8.16 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे।
सबल व निर्बल पक्ष….
कांग्रेस प्रत्याशी कर्नल धनीराम शांडिल का निर्बल पक्ष उम्रदराज होना है। 80 पार होने की वजह से दिक्कत रहती है। 2017 के चुनाव में भी हारते-हारते बाल-बाल बचे थे। सबल पक्ष ये है कि ताउम्र निर्विवादित राजनीति की है। शालीन व ईमानदार राजनीतिज्ञ के तौर पर पहचान होती है।
भाजपा प्रत्याशी राजेश कश्यप का निर्बल पक्ष ये है कि वो लगातार लोगों के बीच में नजर नहीं आए। ससुर के सामने पहले भी चुनाव लड़ चुके हैं। सबल पक्ष ये है कि 2017 में जीत के काफी करीब थे। हार का अंतर मात्र 671 मतों का था। यदि भाजपा-कांग्रेस के खिलाफ पड़ने वाले मतों से कुछ हिस्सा ले पाए तो ससुर को हैट्रिक बनाने से रोक सकते हैं।