शिमला, 09 नवंबर : शिमला शहरी सीट पर इस बार समीकरण काफी बदले हैं। भाजपा के दबदबे वाली सीट पर कैबिनेट मंत्री सुरेश भारद्वाज को यहां से कुसुम्पटी शिफ्ट कर भाजपा ने संजय सूद को चुनाव मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने हरीश जनार्था को उम्मीदवार बनाया है। भाजपा के प्रत्याशी संजय सूद ने टिकट मिलते ही उस समय सुर्खियां बटोरी थी जब उन्हें” चाय वाला” करार दिया गया। बाद में चाय वाले की सम्पति करोड़ो में पाई गई।
वहीं, माकपा के युवा तुर्क टिकेंद्र सिंह पंवर मुकाबले को त्रिकोणीय बना रहे हैं। कांग्रेस प्रत्याशी हरीश जनार्था एक बार कांग्रेस तो एक बार निर्दलीय मुकाबले में नजदीकी अंतर से चुनाव हारे हैं। इस सीट पर 15 सालो से भाजपा का कब्जा रहा है। प्रदेश सरकार में मंत्री रहे सुरेश भारद्वाज ने 2007, 2012 व 2017 के विधानसभा चुनाव में कमल खिलाया है। साथ ही जीत की हैट्रिक भी बनाई। चुनावी इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो यहां से गैर कांग्रेसी विधायक ज्यादा जीते हैं।
इस बार कांग्रेस को जीत मिलने की पूरी उम्मीद है। मगर माकपा के टिकेंद्र पंवर कांग्रेस के वोटों में सेंध लगाकर नुकसान पहुंचा सकते हैं। वहीं, भाजपा का शिमला शहर में कैडर वोट तगड़ा है। इसके चलते कांग्रेस को दो-दो चुनौतियों से निपटना पड़ रहा है।
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हिमाचल की राजधानी में अपर शिमला के वोटर्स का खासा प्रभाव हैं। अपर शिमला के मतदाता हमेशा से डिसाइडिंग फैक्टर रहे हैं। चूंकि,सुरेश भारद्वाज का ताल्लुक रोहडू से है, इस वजह से उन्हें शहरी वोटों के अलावा अपर बेल्ट के वोटर्स से अच्छा-खासा समर्थन मिलता रहा।
इस दफा इस वोट बैंक पर हरीश जनार्था नजर गड़ाए बैठे हैं। वहीं, लेबर क्लास व जनवादी संगठनों का वोट बैंक हमेशा से माकपा उम्मीदवार के पाले में जाता है। ऐसे में भाजपा के उम्मीदवार संजय सूद को भी इन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
क्या है शिमला शहरी का चुनावी इतिहास.…
शिमला शहर में दौलतराम चौहान 1967 से 1982 तक लगातार 15 साल भारतीय जनसंघ, जनता पार्टी व भाजपा के टिकटों पर विधायक रहे। हिमाचल निर्माता डाॅ. परमार जैसी शख्सियत भी कांग्रेस के उम्मीदवार को नहीं जिता पाई। 1985 में पहली बार कांग्रेस के टिकट पर हरभजन सिंह भज्जी विधायक बने। मगर 1990 में भाजपा के सुरेश भारद्वाज चुनाव जीते। 1993 में पहली बार माकपा नेता राकेश सिंघा ने दोनों प्रमुख दलों के नेताओं को धूल चटाते हुए लाल परचम लहराया। 1996 में कांग्रेस ने पूर्व मेयर रहे आदर्श कुमार सूद को चुनाव में उतारा और वह विजयी रहे। 1998 में जुब्बल कोटखाई से ताल्लुक रखने वाले नरेंद्र बरागटा बीजेपी के टिकट पर विधायक बने।
2003 में फिर से कांग्रेस के हरभजन सिंह भज्जी विधायक बनने में कामयाब हुए। मगर 2007 से 2017 तक सुरेश भारद्वाज यहां से लगातार तीन चुना जीते। कुल मिलाकर कांग्रेस यहां से मात्र तीन बार चुनाव जीतने में सफल हुई। वहीं, एक बार माकपा उम्मीदवार भी जीता।
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आंकड़ों में विधानसभा क्षेत्र...
वर्ष 1998 में इस सीट पर भाजपा के नरेंद्र बरागटा 47.25 प्रतिशत मत लेकर विजयी रहे। कांग्रेस के हरभजन सिंह भज्जी को 38.91 प्रतिशत मत ही हासिल हुए। 2003 में भज्जी ने कांग्रेस के टिकट पर 38.15 प्रतिशत मत हासिल कर जीत हासिल की। माकपा उम्मीदवार संजय चौहान 31.47 प्रतिशत मत लेकर दूसरे व भाजपा के गणेश दत्त 29.36 प्रतिशत वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहे। चुनाव में भाजपा व सीपीएम के उम्मीदवार के बीच मतों का तगड़ा ध्रुवीकरण हुआ, जिससे बाजी कांग्रेस के हाथ लग गई।
2007 में भाजपा के सुरेश भारद्वाज 38.39 प्रतिशत मत हासिल कर विजयी हुए। माकपा के संजय चौहान दोबारा 30.40 मत हासिल कर दूसरे स्थान पर रहे। 2012 में फिर बाजी सुरेश भारद्वाज ने मारी। नजदीकी मुकाबले में उन्होंने कांग्रेस के हरीश जनार्था को मात्र 628 मतों से पराजित किया। भारद्वाज को 35.59 प्रतिशत व हरीश जनार्था को 33.66 प्रतिशत मत हासिल हुए।
2017 में दोबारा दोनों परंपरागत उम्मीदवारों का मुकाबला हुआ, जिसमें भारद्वाज ने 43.24 प्रतिशत वोट हासिल कर जीत की हैट्रिक लगाई। वहीं, कांग्रेस के हरीश जनार्था निर्दलीय रूप से 37.37 प्रतिशत मत हासिल कर दूसरे स्थान पर रहे।
सबल व निर्बल पक्ष…
संजय सूद शिमला शहर में पहली बार चुनावी मैदान में उतरे हैं। काफी मिलनसार व बाजार में काफी लोकप्रिय हैं। सूद बिरादरी का शिमला शहर में अच्छा-खासा वोट बैंक है। मगर अपर शिमला के लोगों में वो अपनी कितनी पकड़ बना पाएंगे, यह भविष्य के गर्भ में है। नया होना भी उनके लिए थोड़ा चुनौती भरा है। वहीं, कांग्रेस के हरीश जनार्था अपर शिमला के वोटरों में अच्छी पकड़ रखते हैं। बाजार में उनको संजय सूद के कारण चुनौती का सामना करना पड़ेगा। वहीं, मिलनसारिता के मामले में वह संजय सूद से थोड़ा कम आंके जाते हैं। वहीं, माकपा के टिकेंद्र पंवर शहर में पूर्व डिप्टी मेयर रह चुके हैं। संघर्षशील युवा की छवि है। इलिट क्लास के वोटरों में ज्यादा पकड़ नहीं है। थोड़े आक्रामक स्वभाव के हैं।
ये है मतदातओं का आंकड़ा…
16 अगस्त 2022 तक शिमला शहरी क्षेत्र में 47,845 मतदाता दर्ज हुए। इसमें 22,802 महिला मतदाता हैं, जबकि 25,043 पुरुष मतदाता हैं। चूंकि इस बार मतदाताओं को दर्ज करने की प्रक्रिया निरंतर रखी गई है, लिहाजा इस आंकड़े में बढ़ोतरी भी हो सकती है।
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शिमला में भाजपा का चाय वाला प्रत्याशी करोड़पति
भाजपा ने शिमला शहर में भाजपा का चाय वाला प्रत्याशी करोड़पति है। दरअसल भाजपा ने ओल्ड बस स्टैंड में चाय की दुकान करने वाले संजय सूद को प्रत्याशी बनाया है। संजय सूद चाय वाले के नाम से भाजपा में सुर्खियां वटोर रहे हैं। रोचक बात यह है कि नामांकन के दौरान चुनाव आयोग को दिए हलफनामे मेें उन्होंने अपनी संपत्ति 2.70 करोड़ रुपए दिखाई है। इसमें एक करोड़ की चल और 1.70 करोड़ की अचल संपत्तिहै। हलफनामे के मुताबिक संजय सूद की चल संपत्ति में उनके पास 53.94 लाख, पत्नी के पास 45.75 लाख और बच्चे के पास 1.55 लाख जमा हैं। संजय सूद के पास 40 हजार और पत्नी के पास 15 लाख के जेवर हैं।
अलावा उनके पास एक मारुति कार है। वहीं उनकी पत्नी के पास 13 लाख की लग्जरी कार है। संजय सूद के चार बैंक खातों में चार लाख से अधिक राशि जमा है। नामांकन के दौरान उनके पास 1.1 लाख और पत्नी के पास डेढ़ लाख रुपये थे। संजय सूद की अचलसंपत्तिमें रामपुर में 25 लाख की कृषि भूमि, खलीनी में साढ़े सात लाख की गैर कृषि भूमि के अलावा डेढ़ करोड़ का रिहायशी भवन है। उनकी पत्नी की अचल संपत्ति25 लाख है। संजय सूद ने वर्ष 1986 में बीए की है।
कांग्रेस के प्रत्याशी हरीश जनार्था 4.66 करोड़ के मालिक
कांग्रेस प्रत्याशी व शिमला नगर निगम के पूर्व उपमहापौर हरीश जनार्था भी करोड़पति उम्मीदवारों की लिस्ट में आते हैं। चुनावी हल्फनामे पर नजर डालें तो उनका परिवार 4.66 करोड़ की संपति का मालिक है। इनमें 2.36 करोड़ की चल और 2.30 करोड़ की अचल संपति है। हरीश जनार्था के पास तीन गाड़ियां, एक जीप और एक बुलेट है। उनकी पत्नी के पास भी एक कार है। हरीश जनार्था के पास साढ़े सात लाख और पत्नी के पास 10 लाख के जेवर हैं। उनके नाम 2.21 करोड़ और पत्नी के लरम 15.15 लाख की चल संपति है। हरीश जनार्था के नाम कृषि भूमि नहीं है। हालांकि उनकी 60 लाख की गैर कृषि भूमि है। उनका चंड़ीगढ़ में एक फलैट है, जिसकी कीमत 50 लाख है। हरीश जनार्था पर 30 लाख की देनदारियां भी हैं। उन्होंने वर्ष 1986 में पंजाब विवि से बीए की है।
माकपा प्रत्याशी टिकेंद्र पंवर के पास 4.34 करोड़ की संपत्ति
माकपा प्रत्याशी व शिमला नगर निगम के पूर्व डिप्टी मेयर टिकेंद्र पंवर 4.34 करोड़ की संपत्ति के मालिक हैं। उनकी 34.85 करोड़ की चल एवं 4 करोड़ की अचल संपत्ति है। नामांकन के दौरान चुनाव आयोग को दिए हलफनामे में उन्होंने यह जानकारी दी है। टिकेंद्र पंवर की चल संपति में दो सेविंग बैंक खाते और आठ एफडीआर में पैसे जमा हैं। अचल संपति में उनके नाम दो करोड़ की कृषि भूमि और पत्नी के नाम दो करोड़ का रिहायशी भवन है। 51 वर्षीय टिकेंद्र पंवर ने वर्ष 1992 में हिमाचल विवि से बीए की है। इसके अलावा उन्होंने सिंगापुर से अर्बन स्टडीज में डिप्लोमा भी किया है।
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मुद्दे…
विधानसभा क्षेत्र में जहां तक मुद्दों का सवाल है तो ये हलका हिमाचल की राजधानी की जद में ही है। शहरीकरण तेजी से बढा है। राजधानी की ट्रैफिक व्यवस्था धीरे-धीरे विकराल रूप लेती जा रही है। हालांकि, रोपवे के सब्जबाग तो दिखाए गए, लेकिन बात अलग-अलग कारणों से अड़ी रही। अवैध निर्माण को लेकर भी अंकुश नहीं लग पा रहा।
हालांकि, टूरिज्म वैसे का वैसा ही है, लेकिन पर्यटकों के लिए कुछ खास नया नहीं हो पाया। सड़कों के किनारे अवैध वाहनों की पार्किंग भी परेशानी का सबब है। वैसे तो शिमला में माइग्रेशन का सिलसिला बहुत पहले शुरू हो गया था, लेकिन पिछले कुछ सालों में इसमें भी तेजी से बढ़ोतरी हुई है, जबकि नगर निगम की सुविधाएं पुराने ढर्रे पर ही चल रही हैं।
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एक पक्ष यह भी रहा है कि 2011 की जनगणना के आंकड़ों की बजाए मौजूदा समय में आबादी का सर्वेक्षण करवाकर योजनाओं को बनाया जाना चाहिए। दरअसल, माइग्रेशन में होता ये है कि अन्य इलाकों से लोग रहना तो शुरू कर देते हैं, लेकिन उनकी आबादी पैतृक इलाके में ही दर्ज होती है। शहरों में मूलभूत सुविधाओं की योजनाएं आबादी के आंकड़ों पर बनती हैं, जबकि हकीकत में धरातल पर जनगणना का आंकड़ा डबल होता है।