नाहन, 28 अक्तूबर: मंगलवार को मंत्रिमंडल की बैठक में प्रदेश में तीन नए नगर निगम बनाने के साथ-साथ पांच नगर पंचायतों को बनाने का फैसला लिया गया है। लेकिन शिलाई को नगर परिषद बनाने का मामला ठंडे बस्ते में करीब चार साल से पड़ा हुआ है। बता दें कि इसको लेकर सर्वे भी हुआ था। अब संशय यह जाहिर किया जा रहा है कि सत्ता व विपक्ष नहीं चाहते कि शिलाई को नगर परिषद का दर्जा मिले। अब आपके जहन में लाजमी तौर पर यह सवाल उठ रहा होगा कि सत्ता व विपक्ष दोनों ही एक सुर मिला रहे हैं।
दरअसल, वोटों की राजनीति इस मसले पर हावी हो रही है। संभावना जताई जा रही है कि सत्ता व विपक्ष के नेता नहीं चाहते कि लोगों की वोटें पंचायतों से कटकर शिलाई में दर्ज की जाए। इससे राजनीतिक नुकसान हो सकता है। यही वजह हो सकती है कि शिलाई में रह रहे लोगों को विकास के मद्देनजर जागरूक भी नहीं किया जा रहा। अगर शिलाई की तरक्की की बात करें तो निश्चित तौर पर कस्बे के तौर पर पहचान मिलने की स्थिति में जनसंख्या के अनुपात में ही विकास मिलेगा। अब तक यहां पंचायत के रूप में ही योजनाएं मिलती रही हैं। शिलाई में उपमंडल की करीब एक दर्जन से भी अधिक पंचायतों के लोग बस चुके हैं।
एक रोचक बात यह भी है कि शिलाई में एसडीएम कार्यालय भी खुला हुआ है, जबकि डीएसपी का पद सृजित नहीं हुआ। दबी जुबान से लोग यह भी पूछ रहे हैं कि पंचायत स्तर पर एसडीएम का पद कैसे सृजित हुआ होगा। दीगर है कि अक्तूबर 2016 में शहरी विकास निदेशालय ने शिलाई को नगर परिषद बनाने के लिए जानकारी मांगी थी। उस समय राजस्व रिकाॅर्ड के मुताबिक शिलाई की आबादी 1 हजार 255 थी, जबकि सर्वे में आंकड़ा 12 हजार 777 था। एक्ट के मुताबिक 6,150 से 12,300 की आबादी के बीच नगर परिषद के 9 वार्ड बनाए जा सकते हैं। संभवतः राजनीतिज्ञ भी इस बात को बखूबी जानते हैं कि अगर शिलाई को नगर परिषद बना दिया जाता है तो एक्ट भी लागू होंगे। इससे लोगों की नाराजगी बढ़ेगी।
वास्तव में आबादी के अनुपात में ही मूलभूत सुविधाएं मिलती हैं। नगर परिषद न बनने का नतीजा यह हो रहा है कि शिलाई को अन्य शहरों की तुलना में विकास योजनाएं नहीं मिल पा रही। गौरतलब है कि चार साल पहले शिलाई के एसडीएम का तबादला हुआ था। उस समय यह बात सामने आई थी कि शिलाई की आबादी को लेकर सर्वे करने की वजह से ही नेता नाराज हो गए थे। इस समय ट्रांसगिरि में एकमात्र नगर पंचायत राजगढ़ है।