सोलन, 31 जुलाई : अक्सर आप यह सुनते रहे होंगे कि बेटी है अनमोल। लेकिन ऐसा काफी कम ही सामने आता है, जब किशोर अवस्था में ही एक बेटी अपने पिता के एक नहीं, बल्कि तीन सपनों को साकार करने में शिद्दत से डटी हो। शहर के नामी हलवाई व्यवसायी विवेक सूद “लोटी” का करीब तीन महीने पहले उस समय निधन हो गया, जब वो माॅर्निंग वाॅक पर निकले थे। किशोर अवस्था में अक्सर ही हरेक बेटा-बेटी कुदरती स्वभाव में नटखट होते हैं। अक्सर ही विवेक अपनी बेटी को कहा करते थे कि उनका बेटा दुकान पर नहीं बैठेगा। दूसरी बात, बेटी को काॅस्मेटालाॅजी में कैरियर बनाते देखना चाहते थे। वो ये भी चाहते थे कि खानदानी कारोबार भी चलता रहे।
कला संकाय से 91% अंकों से जमा दो की परीक्षा उत्तीर्ण करने वाली रिवयांशी आज अपने पिता के इन तीनों सपनों को साकार करने में जुटी हुई है। वो अपने 12 साल के भाई को दुकान पर नहीं आने देती। खुद भी काॅस्मेटालाॅजी में कैरियर बनाने की तैयारी कर रही है। सवाल पूछा गया कि दुकान कौन संभालेगा तो तपाक से रिवयांशी ने बताया कि पिता के निधन को तीन महीने ही हुए हैं। लिहाजा, वो खुद भी अपनी मां के साथ इस कार्य को संभाल रही है। अभी यह फैसला नहीं ले पाई है कि जमा दो के बाद ही काॅस्मेटालाॅजी में प्रशिक्षण शुरू कर दे या फिर तीन साल बाद ग्रैजुएशन के बाद इसे किया जा सकता है। रिवयांशी का यह भी कहना था कि कुछ समय बाद मां भी दुकान को संभालने में सक्षम हो जाएगी।
दुकान की स्पेशलाइजेशन के बारे में बताती हैं कि परदादा चेतराम सूद ने आजादी से पहले दुकान को शुरू किया था। इसे दादा मदन लाल सूद ने आगे बढ़ाया, फिर उनके पिता ने भी इसी व्यवसाय को नई दिशा देने की कोशिश की। चौथी पीढ़ी में खुद इस कार्य को संभाला है। स्वीट शाॅप में अन्य मिठाईयों की वर्कशाॅप को रिवयांशी छोटे से ही समय में ही संभालने में माहिर हो गई है। ग्राहकों व वर्कशॉप कर्मियों से हंसमुख स्वभाव अपनी पूंजी में शुमार करती है। रोजाना, 8 घंटे हलवाई की दुकान को संभालने में माहिर हो चुकी है। एक सवाल के जवाब में रिवयांशी ने बताया कि उनकी दुकान की खासियत बेसन की बर्फी है, जिसकी गुणवत्ता को वो हर कीमत पर बरकरार रखना चाहती है, क्योंकि यह विरासत तीन पीढ़ियों से चल रही है। शुरू-शुरू में जब एक हलवाई की दुकान में एक किशोर लड़की को ग्राहकों ने देखा तो हर किसी का माथा ठनकता था, लेकिन अब धीरे-धीरे यह नियमित प्रक्रिया में शामिल हो गया है।
बातचीत में रिवयांशी ने साफ तौर पर कहा कि अचानक ही पिता के निधन के सदमे से परिवार टूट गया, मगर हिम्मत नहीं हारी। कुल मिलाकर इतना जरूर है कि एक होनहार बेटी के हौंसले व ऊर्जा से सोलन में एक परिवार का खानदानी व्यवसाय जारी है। दीगर यह भी है कि आज का युवा अपने खानदानी व्यवसाय को जारी रखने में शर्म महसूस करता है। इसी वजह से जीवन में भटकना भी पड़ता है, लिहाजा रिवयांशी उन लोगों के लिए भी प्रेरणा है, जो अपना खानदानी व्यवसाय जारी नहीं रखना चाहते।