शिमला, 22 जुलाई : भाजपा (BJP) ने हिमाचल प्रदेश (Himachal Pardesh) संगठन की कमान दलित चेहरे सुरेश कश्यप को दी है। शिमला सुरक्षित सीट से लोकसभा सांसद सुरेश कश्यप(49) को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के फैसले को चौंकाने वाला भी माना जा रहा है। वजह कि उनका नाम इस रेस में था ही नहीं। पार्टी ने नए चेहरे पर दांव खेलकर कई समीकरणों को साधने की कोशिश की है। मई में पीपीई किट (PPE Scam) घोटाले से नाम जुड़ने के कारण राजीव बिंदल (Dr Rajeev Bindal) के इस्तीफे के बाद से प्रदेश अध्यक्ष का पद खाली चल रहा था। सांसद को आज पार्टी के फैसले की जब जानकारी मिली तो उस समय वो नाहन में अपने निजी आवास पर थे।
सौम्य व मिलनसार स्वभाव के अलावा ऐसा दुर्लभ ही देखने को मिलता है, जब विधायक 16 साल 3 महीने तक एयरफोर्स में देश सेवा करने के बाद राजनीति में आया हो। साथ ही उच्चशिक्षा हासिल करने के क्षेत्र में भी पीछे न हो। इन शब्दों की कसौटी पर 23 मार्च 1971 को पच्छाद के पपलाहा गांव में जन्में सुरेश कश्यप खरा उतरते हैं। परिवार की सादगी व उच्चशिक्षा ही वजह है कि बीजेपी का आलाकमान शिमला संसदीय सीट से सुरेश कश्यप को टिकट मिला।
अब राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा (JP Nadda) ने बुधवार को गृह प्रदेश हिमाचल में प्रदेश संगठन की बागडोर सांसद सुरेश कश्यप(MP Suresh Kashyap) की सौंपी है। सुरेश कश्यप वर्ष 1988 से 2004 तक इंडियन एयरफोर्स(Indian Air force) को भी सेवाएं दे चुके हैं। रिटायरमेंट के बाद उन्होंने भाजपा से जुड़कर राजनीति शुरू की।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि सुरेश कश्यप को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के पीछे भाजपा की प्रमुख रणनीति दलितों में पैठ बनाने की है। हिमाचल प्रदेश, देश के उन राज्यों में शुमार है, जहां राष्ट्रीय औसत से ज्यादा दलितों की आबादी है। हिमाचल (Himachal) में 25.2 प्रतिशत दलित रहते हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव (Assembly election 2022) से पहले दलित चेहरे के हाथ में संगठन की बागडोर सौंपने से पार्टी को दलितों को साधने में आसानी होगी। हिमाचल में कई सीटों पर दलित वोट बैंक निर्णायक है।
सांसद सुरेश कश्यप को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के पीछे और भी कई कारण हैं। उन पर राज्य में किसी गुट का ठप्पा नहीं लगा है। उनकी पहचान जमीनी नेता की रही है। वह पढ़े-लिखे भी हैं। 2004 में एयर फोर्स से एसएनसीओ के पद से रिटायर होने के बाद सुरेश कश्यप ने लोक प्रशासन में एमए और टूरिज्म में डिप्लोमा की शिक्षा हासिल की थी। नए चेहरे को अध्यक्ष बनाकर पार्टी ने काडर को यह संदेश देने की कोशिश की है कि संगठन में मेहनत करने पर उन्हें उचित समय आने पर बड़ा पद मिल सकता है।
सांसद सुरेश कश्यप ने क्षेत्र पंचायत सदस्य(बीडीसी) से राजनीति की शुरुआत कर आज प्रदेश अध्यक्ष का मुकाम हासिल किया। वर्ष 2005 में वह पच्छाद बीडीसी (Pachhad BDC) के बजगा वार्ड से सदस्य बने। फिर 2006 में भाजपा के एससी मोर्चा के जिला अध्यक्ष बने। इस बीच भाजपा ने वर्ष 2007 में पहली बार उन्हें विधानसभा का चुनाव लड़ाया था। हालांकि हार गए थे। पार्टी ने 2009 में प्रमोशन देकर उन्हें भाजपा एससी मोर्चा का प्रदेश महासचिव बना दिया। आगे वह एससी मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष भी बने।
2012 में दूसरी बार वह पच्छाद विधानसभा सीट से जीत गए। तब उन्होंने इस सीट पर सात बार के कांग्रेस विधायक जीआर मुसाफिर (GR Mussafir) को हराकर सबको चौंका दिया था। 2017 के विधानसभा चुनाव में लगातार दूसरी बार वह जीते। फिर पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें शिमला(Shimla) की सुरक्षित सीट से उतारा तो सांसद बने। अब पार्टी ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बना दिया है। 10 मई 1997 को रजनी कश्यप से परिणय सूत्र में बंधे सुरेश कश्यप एक बेटे के पिता हैं, जो बीटेक की पढ़ाई कर रहा है।
पार्टी में सुरेश कश्यप का कद इस कारण भी बढ़ा, क्योंकि कांग्रेस के अभेद किले में सेंध लगाने में सफल रहे थे। पच्छाद बीजेपी मंडल के अध्यक्ष रहने के दौरान भी सुरेश कश्यप ने पार्टी संगठन को खूब मजबूती प्रदान करवाने में सफलता हासिल की। यह भी कारण रहा कि कांग्रेस के गढ़ में बीजेपी इस वक्त पूरी तरह से सशक्त है। शिमला संसदीय सीट पर करीब सवा तीन लाख मतों से जीत हासिल कर अब सुरेश कश्यप ने देश की संसद का सफर शुरू किया।
क्या है शिक्षा…
पच्छाद से दो मर्तबा विधायक बन चुके सुरेश कश्यप ने लोक प्रशासन में एमफिल की है। यानि पीएचडी से एक कदम पीछे हैं। अंग्रेजी व टूरिज्म स्टडी में पोस्ट ग्रैजुएशन भी की है। इसके अलावा लोक संपर्क व संचार प्रबंधन में डिप्लोमा भी हासिल है। यही नहीं, बीएड की डिग्री भी हासिल की हुई है। भारतीय वायुसेना में 22 अप्रैल 1988 को अपनी सेवाएं शुरू की थी। 16 साल 3 महीने की सेवा के बाद सीनियर नॉन कमीशंड ऑफिसर (एसएनसीओ) के पद से रिटायर हुए।