मंडी/ विरेंद्र भारद्वाज
कुछ परिवारों में ऐसी रंजिशें हो जाती हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती जाती हैं। परिवारों की भावी पीढ़ियों में इन रंजिशों को लेकर ऐसी मानसिकता हो जाती है कि पूर्वजों के समय की दुश्मनी को अपना बना बैठते हैं। कुछ ऐसा ही इन दिनों मंडी की राजनीति में भी देखने को मिल रहा है। बात हो रही है पंडित सुखराम और कौल सिंह ठाकुर के परिवारों की। इन दो परिवारों के बीच राजनैतिक तौर पर जो दुश्मनी है वह पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती हुई नजर आ रही है।
1993 में नहीं दिया था सुखराम का साथ
कौल सिंह ठाकुर पर आरोप लगता रहा है कि इन्होंने पंडित सुखराम का साथ न देकर उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने से रोक दिया था। वैसे यह बात 1993 की है, जब मंडी जिला से कांग्रेस ने 9 सीटें जीती थी और एक सीट निर्दलीय के खाते में गई थी। उस वक्त सुखराम का मुख्यमंत्री (Sukhram) बनना लगभग तय था। लेकिन कहा यह भी जाता है कि सुखराम ने जिला के तीन नेताओं को एक ही विभाग का लालच देकर अपनी तरफ करने की कोशिश की थी जिसके कारण ही उन्हें इनके विरोध को झेलना पड़ा और सीएम बनते-बनते रह गए थे। उसके बाद से ही सुखराम और कौल सिंह ठाकुर के बीच 36 का आंकड़ा हो गया और यह एक दूसरे के राजनैतिक दुश्मन बन बैठे।
आश्रय निभा रहे पुरानी रंजिश को
सुखराम तो सक्रिय राजनीति से दूर हो गए हैं लेकिन कौल सिंह ठाकुर अभी भी सक्रिय राजनीति में बरकरार हैं। लेकिन कौल सिंह ठाकुर को टक्कर देने के लिए अब सुखराम का पोता आश्रय शर्मा पूरी तरह से फ्रंट फुट (Front foot) पर आकर खड़ा हो गया। यह परिवार नहीं चाहता कि मंडी से कांग्रेस का कोई नेता उभर कर सामने आए, क्योंकि ऐसा होने से भविष्य में इन्हीं को खतरा होगा। कौल सिंह ठाकुर इस वक्त हिमाचल प्रदेश कांग्रेस की कमान संभालना चाहते हैं और उसके लिए उन्होंने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। लेकिन कौल सिंह को इसके लिए उनके अपने गृह जिला के नेताओं का ही साथ नहीं मिल पा रहा है। आश्रय शर्मा ने अपना दादा की पुरानी रंजिश को निभाने का मन बना लिया है और कौल सिंह ठाकुर की राह में रोड़ा बन गए हैं।
दोनों परिवारों में खिंच गई हैं तलवारें
एक तरफ कौल सिंह ठाकुर (kaul singh thakur)दोबारा हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद की तरफ अपने कदम बढ़ा रहे हैं और दूसरी तरफ आश्रय शर्मा (Aashray sharma) उन्हें पीछे धकेलने में लगे हुए हैं। कौल सिंह ठाकुर भी दिल्ली तक अपनी पहुंच रखते हैं और आश्रय शर्मा भी। ऐसे में राजनैतिक रूप से एक-दूसरे को पीछे धकेलने में दोनों ही नेता एढ़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। इसके साथ ही आश्रय ने जिला में संगठन को ही अपने कब्जे में लेने की कवायद शुरू कर दी है। दूसरी तरफ कौल सिंह ठाकुर की बेटी चंपा ठाकुर (Champa thakur) ने भी सदर में अपनी अपनी अच्छी पैंठ बना ली है। ऐसे में रंजिश और ज्यादा बढ़ गई है क्योंकि दोनों परिवारों ने फिर से तलवारें खिंच ली हैं, ऐसे में आने वाले समय में इस पुरानी रंजिश का नया स्वरूप सभी को प्रत्यक्ष रूप से देखने को मिलेगा।
लोकसभा चुनावों में हुआ समझौता टूटा
इन दोनों परिवारों के बीच 2019 में हुए लोकसभा चुनावों के दौरान समझौता हो गया था। सुखराम और कौल सिंह ठाकुर ने आपस में बैठकर सभी पुरानी बातों को भुलाकर नई शुरूआत करने का निर्णय लिया था। लेकिन लोकसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद अब जो हालात पैदा हुए उसमें यह समझौता पूरी तरह से धाराशाई हो गया है और फिर से इन परिवारों के बीच राजनैतिक युद्ध शुरू हो गया है।