नाहन : हार कर जीतने वाले को बाजीगर कहा जाता है। ये बात धारटीधार क्षेत्र की अमिशा ने साबित कर दिखाई है। राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला बिरला की छात्रा अमिशा शर्मा को रोजाना ही स्कूल आने के लिए 6 किलोमीटर पैदल न चलना पड़ता साथ ही स्कूल से लौटकर घर के कामकाज में हाथ न बंटाना होता तो वो लाजमी तौर पर स्कूल शिक्षा बोर्ड की मेरिट सूचि में सिरमौर होती। इन परिस्थितियों के बावजूद सामान्य परिवार की बेटी मात्र तीन अंको की कमी की वजह से मैरिट में स्थान पाने से चूक गई।
प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड द्वारा जारी की गई, 10वीं कक्षा की मैरिट सूची में अमिशा बेशक ही 3 अंकों से चूक गई हो, लेकिन बेटी के हौंसले बुलंद है। अमिशा ने 700 में से 679 अंक प्राप्त किए हैं। सुविधाओं के अभाव के चलते भी अमिशा की इस उपलब्धि पर स्कूल स्टाफ गदगद है तो अभिभावकों का भी सीना चौड़ा हुआ है। दरअसल एमबीएम न्यूज़ नेटवर्क ने बुधवार को शंभूवाला की होनहार बेटी तपस्या की दास्ताँ को उजागर किया था, इसके बाद ही अमिशा की सफलता भी सामने आई।
बातचीत के दौरान अमिशा ने बताया कि स्कूल के जाने के समय में तो बस उपलब्ध हो जाती थी, लेकिन छुट्टी के दौरान कोई बस नहीं मिलती थी, ऐसे में भाई-बहन व अन्य सहपाठियों के साथ प्रतिदिन 6 किलोमीटर का पैदल सफर तय कर घर लौटना पड़ता था। इसके बाद प्रतिदिन अपने खेत के अलावा घर के काम में माता-पिता के साथ हाथ भी बंटाती थी और शाम को पढ़ाई करती थी। अमिशा का कहना है कि उन्होंने कोई ट्यूशन नहीं ली, केवल स्कूल में शिक्षकों द्वारा करवाई गई पढ़ाई को ही रिवाईज करती थी। बेटी का यह भी कहना था कि मेरिट में न आने का दुःख तो है मगर कोई मलाल भी नहीं है क्योंकि आगे भी कई मौके है।
क्या कहते हैं माता-पिता व शिक्षक…
स्कूल के शिक्षक किशोरी लाल का कहना है कि अमिशा पढ़ाई में दिलचस्पी रखती है। स्कूल से जो भी काम दिया जाता था उसे गंभीरता से लेती है। अमिशा के पिता कुलदीप चंद व माता रेणु बाला ने बताया कि अमिशा पढ़ाई के साथ-साथ घर में उनका हाथ बंटाती है। उन्होंने बताया कि उनके पिता की छोटी दुकान है और वह स्वयं सिलाई अध्यापिका हैं, ऐसे में घर व खेत के काम को सभी मिलकर करते हैं। इसके बावजूद भी अमिशा पढ़ाई से कभी जी नहीं चुराती। उन्होंने कहा कि अब बेटियां भी समाज में अपने माता-पिता का नाम रोशन कर रही हैं, साथ ही अपने पांव पर खड़ा होकर दिखा रही हैं।