सोलन : परवाणू-सोलन फोरलेन का निर्माण कार्य पूरा होने को है। यात्रियों का सफर आरामदायक होगा, साथ ही फोरलेन 936 मीटर लंबी सुरंग में वाहन चलाना रोमांच से कम नहीं होगा। टनल बनने से सोलन-चंडीगढ़ का सफर सात किलोमीटर कम हो जाएगा। करीब 100 करोड़ रूपए की लागत से बनकर तैयार हो चुकी समलेच-कुमारहट्टी टनल में हर प्रकार की सुविधा है, जिससे यात्रियों का सफर सुखद होगा।
आस्ट्रेलियन तकनीक से बनी टनल में ऑक्सीज़न, लाइटें और अग्निरोधक यंत्र की सुविधा मिलेगी। सुरंग को पूरी तरह वाटर प्रूफ बनाया गया है। भीतर किसी भी तरह की हरकत पर नजर रखने के लिए सीसीटीवी कैमरे लगे हैं। खास बात है कि टनल से आने जाने के लिए दोनों तरफ फुटपाथ बना हुआ है। इससे लोग आसानी से टनल से आ जा सकते हैं। अप्रिय घटना की सूरत में कुमारहट्टी की तरफ वाले छोर पर कंट्रोल रूम बनाया गया है। टनल को बनने में 3 साल लगे।
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बड़ोग की पहाडिय़ों में 117 साल बाद बनी दूसरी टनल…
बड़ोग की पहाड़ी में टनल बनने का इतिहास अपने आप में काफी रोचक है। अंग्रेजी हुकूमत के समय कालका-शिमला रेलवे लाइन बनी तो कुमारहट्टी से सोलन तक रेलवे लाइन जोड़ने में काफी दिक्कत आ रही थी। तब पहाड़ी के दोनों छोर को जोडऩे के लिए टनल निकालने की योजना बनाई गई। इसका काम इंजीनियर बड़ोग को दिया गया। इंजीनियर बड़ोग ने दोनों छोर से टनल बनाने का कार्य किया, लेकिन अंत में दोनों छोर नहीं मिल पाए। इस पर अंग्रेजी हुकूमत ने इंजीनियर बड़ोग पर एक रूपए का जुर्माना लगाया। इस अपमान से आहत इंजीनियर बड़ोग ने खुद को गोली मार कर आत्महत्या कर ली थी। हालांकि बाद में नए सिरे से सर्वे कर दूसरी जगह टनल बनाई गई। जिसकी लंबाई करीब 1100 मीटर है। इससे इंजीनियर बड़ोग का नाम दिया गया और स्टेशन का नाम बड़ोग ही रखा गया। यह टनल 1903 में यानी 117 साल पहले बनाई गई थी।
दोनो में यह है अंतर ….
हालांकि दोनों टनल एक ही पहाड़ी पर बनी है। बावजूद इसके इसमें कई तरह के अंतर है। नई टनल काफी खुली और वातानुकूलित है। इसमें दोनों तरफ पैदल चलने के लिए फुटपाथ बनाया गया है। नई टनल पूरी तरह से वाटर प्रूफ है। वहीं पुरानी टनल में पानी रिसता रहता है। नई टनल में लाइट का इंतजाम है। वही पुरानी रेल टनल अंधेरे में डूबी हुई है। पुरानी रेल टनल हजारो मजदूरों द्वारा हाथों के द्वारा बनाई गई थी, जिसमें कई मजदूरों की जाने भी गई थी। नई टनल का नई तकनीक व मशीनो द्वारा निर्माण किया गया है, जिसको बनाने में मात्र 3 साल का समय लगा है।