संगड़ाह:महिला दिवस पर समाज में बेहतरीन कार्य करने वाली महिलाओं से जुड़ी खबरें सामने आती हैं,लेकिन हरिपुरधार के गैहल से ताल्लुक रखने वाली 42 वर्षीय सुशीला ठाकुर के बुलंद हौंसले की बात कभी सामने नहीं आई। वास्तव में यह बात सही लगी कि सुशीला ठाकुर बुलंद हौंसलों से सरोबार है,क्योंकि उन्होंने जो जिम्मेदारी संभाल रखी है,वह किसी प्रेरणा से कम नहीं है। कुशल शिक्षिका के साथ-साथ एक सफल ट्रांसपोर्टर बनी हैं।
पति सुरजन ठाकुर ने दस बसों से मीनू कोच का परिचालन किया था,लेकिन दुर्भाग्यवश एक कार दुर्घटना में 2003 में उनकी मृत्यु हो गई। उनके मरणोपरांत सुशीला ठाकुर ने न केवल अपने पति की विरासत को संभाला,बल्कि आज अपने बसों के बेड़े को 22-30 तक पहुंचा दिया है। मीनू कोच बस सेवा आज प्रदेश के कई हिस्सों में बखूबी संचालित हो रही है,जो ट्रांसपोर्ट क्षेत्र में नाम कमा चुकी है।
कमाल की बात यह है कि एक महिला होने के नाते लगभग 50-70 के स्टाफ की जिम्मेदारी भी संभालती है,जो एक अच्छा ट्रांसपोर्टर ही कर सकता है। अहम बात यह है कि शिक्षिका के साथ-साथ ट्रांसपोर्टर की जिम्मेदारी तो निभा ही रही हैं,साथ ही तीन बच्चों की भी परवरिश भी बेहतरीन तरीके से कर रही हैं। एक बेटी बायोटेक की पढ़ाई कर रही है,जबकि दूसरी बेटी इंग्लिश ऑनर्स कर चुकी है। बेटा उच्च शिक्षा हासिल कर रहा है। परिवार शिमला में सेटल है। कुल मिलाकर समाज में महिलाओं के लिए बुलंद हौंसलों की मिसाल बनी हैं,जिनकी प्रशंसा बनती हैं। सुशीला ठाकुर ने कहा कि पति से विरासत में मिले व्यवसाय को सँभालने का चैलेंज मिला था,स्टाफ की मदद से सँभालने में सफल हुई। उनका कहना था कि यात्रियों को बेहतर सुविधाएं मिले इसके लिए कोशिश करती है।
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