श्री रेणुका जी (शैलेंद्र कालरा) : जंगल के राजा निशू की मौत के बाद लॉयन्स सफारी विरान हो गई। पांच हैक्टेयर में फैले सिंह विहार में अब कुछ करने को नहीं बचा था। लिहाजा केंद्रीय चिडिय़ाघर प्राधिकरण (सीजेडए) के विशेषज्ञ डॉ. अशोक मल्होत्रा ने सलाह दी कि शेरों के घर में आकर्षक तितलियों की कई प्रजातियां हो सकती हैं। इसके बाद वन्यप्राणी विभाग हरकत में आया।
बगैर बजट के सिंह विहार में पांच हैक्टेयर में से एक हैक्टेयर को तितलियों की प्रजातियों की शोध के लिए चिन्हित किया गया। स्थाई तौर पर एक कर्मचारी को नियुक्त कर दिया गया। 19 जून को शुरू हुए इस शोध में अब तक इस इलाके में तितलियों की 55 प्रजातियों के मौजूद होने का पता चल चुका है। उम्मीद की जा रही है कि कुछ ओर प्रजातियां भी क्षेत्र में पाई जा सकती हैं। हालांकि बरसात के दौरान तितलियों का मरना भी शुरू हो जाता है। मामूली सा पानी भी पंखों पर लगने पर प्रकृति की यह आकर्षक देन दम तोड़ देती है।
विशेषज्ञों की मानें तो इस वक्त प्रजनन भी होता है। जन्म के चंद महीनों बाद ही प्रजाति को पहचाना जा सकता है। अब विभाग तितलियों के पसंदीदा आहार के पौधे भी इस क्षेत्र में लगाने का सैद्धांतिक फैसला कर चुका है। इसके अलावा कोशिश की जा रही है कि शैड का निर्माण भी किया जाए, ताकि बारिश के वक्त तितलियों के रहने का सुरक्षित घर हो सके। 80 के दशक में सिंबलवाड़ा सेंचुरी जो अब नेशनल पार्क का दर्जा हासिल कर चुकी है, में भी तितलियों पर शोध हुआ था।
बताया जाता है कि सिंबलवाड़ा नेशनल पार्क को भी बटरफ्लाई संरक्षण क्षेत्र बनाने की कवायद चल रही है। रेणुका जी वाइल्ड लाइफ के आरओ रामकुमार वर्मा ने बताया कि शोध में अब तक यह पता चला है कि वैटलैंड में 55 प्रजातियां मौजूद हैं। उन्होंने इस बात को भी स्वीकार किया कि बिना बजट के ही इस कार्य को किया जा रहा है।
कैसे किया जाता है तितलियों को आकर्षित?
तितलियों की प्रजातियों को पहचानने के लिए भी एक रोचक तरीका है। इलाके में कुछ आर्टिफिशियल फूल भी लगाए जाते हैं, जिन पर चीनी व संतरे के घोल का छिडक़ाव किया जाता है। केले का मसलकर भी फूलों के ऊपर लगाया जाता है। इसके बाद तितलियां आकर्षित होती है, तो उन्हें कैमरे में कैद कर बाद में उसकी प्रजाति का पता लगाया जाता है।
परागण में भी अहम भूमिका
हिमाचल के सेब उत्पादन बाहुल्य क्षेत्रों में मधुमक्खियों व तितलियों का परागण में अहम भूमिका रहती है। शोध बताते हैं कि बागवानों को परागण में काफी दिक्कतें झेलनी पड़ती हैं क्योंकि मधुमक्खियों व तितलियां की संख्या तेजी से घट रही है। इन मायनों को लेकर भी राज्य में तितलियों व मधुमक्खियों का संरक्षण काफी अहम है।