एमबीएम न्यूज़ /शिमला
लोकसभा चुनाव से पहले हिमाचल कांग्रेस के दो शीर्ष नेताओं पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह और पीसीसी चीफ सुखविंद्र सिंह सुक्खू के बीच टकराव बढ़ता जा रहा है। इन दोनों के बीच जुबानी जंग तेज हो गई है। इस बार सुक्खू ने वीरभद्र सिंह पर जोरदार हमला बोला है। पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह की विधायक राजेंद्र राणा के चंडीगढ़ स्थित घर पर की गई बयानबाजी का प्रदेश कांग्रेस ने कड़ा संज्ञान लिया है। सुखविंद्र सुक्खू ने शनिवार को एक बयान में कहा कि अगर वीरभद्र सिंह ने कांग्रेस विधायक राजेंद्र राणा के चंडीगढ़ स्थित आवास पर पार्टी हाईकमान के विरुद्ध कोई टिप्पणी की होगी, तो इसे अनुशासनहीनता माना जाएगा और इस मसले पर वह खुद वीरभद्र सिंह से मुलाकात करेंगे।
सुक्खू का कहना है कि वीरभद्र सिंह को ऐसा नहीं बोलना चाहिए। चूंकि, कोई भी व्यक्ति राजनीति में बड़ा नहीं होता, बल्कि पार्टी सर्वोपरि होती है। वीरभद्र सिंह को छह बार पार्टी ने ही सीएम बनाया। सातवीं बार भी बीते चुनाव में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने वीरभद्र सिंह को मंच से सीएम उम्मीदवार घोषित किया था। अगर चुनाव हार जाएं तो दोष पार्टी हाईकमान और दूसरों पर मढ़ना व जीत जाएं तो उनकी वजह से जीते, राजनीति में यह प्रथा गलत है। हार-जीत एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इसमें किसी पर दोषारोपण नहीं होना चाहिए। हारने के बाद टिकट आवंटन को गलत ठहराना भी उचित नहीं है। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस मजबूत है, उस पर अपना एकाधिकार जमाए रखने के लिए वीरभद्र सिंह अक्सर मीडिया में भ्रामक बयानबाजी करते हैं। वह खुद को बड़ा साबित करने और बाकि नेता पार्टी में कुछ भी नहीं हैं, इसमें लगे हुए हैं। दूसरों पर अपनी गलतियों का दोष मढ़ना भी पूर्व सीएम की पुरानी आदत है। बीते छह महीने से अकेले वही बयानबाजी कर रहे हैं, बाकि 99 फीसदी कांग्रेस प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को हराने के लिए एकजुट है। पार्टी धरातल तक मजबूत है, लेकिन अगर वीरभद्र सिंह इसी तरह बयानबाजी करते रहे तो जरूर कमजोर होगी।
वीरभद्र सिंह को यह नहीं भूलना चाहिए कि वह भी इसी पार्टी के मनोनीत अध्यक्ष रहे हैं। इसी पार्टी ने सांसद बनाया, और केंद्र की यूपीए सरकार में मंत्री भी रहे। वीरभद्र सिंह को हाईकमान के बारे में सार्वजनिक तौर पर टिप्पणी करना शोभा नहीं देता। उन्हें याद रखना चाहिए कि वह सीएम रहते कभी सरकार को रिपीट नहीं कर पाए। उनका व्यक्ति विशेष व राहुल गांधी जी की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाना भी अनुचित है। वीरभद्र सिंह ने बीते चुनाव में 68 में से 56 टिकटें वीरभद्र सिंह ने ही बांटी थी। उनमें से कितने उम्मीदवार जीतकर आए। वीरभद्र सिंह ने सीएम रहते 2014 के लोकसभा चुनाव का टिकट वितरण किया।
मंडी संसदीय क्षेत्र से प्रतिभा सिंह और अन्य उम्मीदवार चुनाव हारे, क्या उनकी पत्नी भी गलत टिकट आवंटन के कारण हारी। क्या सरकार के आधे से ज्यादा मंत्री भी गलत टिकट वितरण की वजह से ही हारे। आज भारतीय जनता पार्टी आपके अहम के कारण ही सत्ता में है। आपने पार्टी के हर बड़े नेता का हमेशा विरोध ही किया। पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखराम व उनके मंत्री सपुत्र अनिल कुमार भी आपकी वजह से पार्टी छोड़कर गए। आपने पार्टी के पूर्व अध्यक्षों विद्या स्टोक्स, विप्लव ठाकुर, कौल सिंह, सत महाजन व नारायण चंद पराशर का विरोध ही किया। जो आपकी हां में हां मिलाए आपको वही नेता सही लगता है। जब भी पार्टी एकजुट होकर चुनाव को लेकर मैदान में उतरने वाली होती है, या केंद्र से प्रभारी व अन्य कोई बड़ा नेता कार्यक्रम करने वाला होता है, वीरभद्र सिंह इस तरह की बयानबाजी कर ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने वाले होते हैं।वीरभद्र सिंह के सीएम रहते ही दो विधानसभा उपचुनाव व शिमला नगर निगम चुनाव में भी हार का सामना करना पड़ा।
सुक्खू ने कहा कि पूर्व कांग्रेस सरकार के समय वीरभद्र सिंह ने अपने चहेतों को चेयरमैन-वाईस चेयरमैन बनाया था। विधानसभा चुनाव में उनकी अपने ही बूथ पर जमानत जब्त हो गई और मात्र 8 से लेकर 150 तक वोट पड़े। शिमला नगर निगम चुनाव में पूर्व सीएम के गृह विधानसभा क्षेत्र शिमला ग्रामीण के वार्ड से भी पार्टी के उम्मीदवार नहीं जीत पाए। उनका वीरभद्र सिंह से आग्रह है कि वह अपनी बात सार्वजनिक मंच के बजाए पार्टी प्लेटफार्म पर रखें। चूंकि, सभी का लक्ष्य 2019 के लोकसभा चुनाव में जीत दर्जकर राहुल गांधी जी को प्रधानमंत्री बनाना है। व्यक्ति अपने कर्म से बड़ा होता है, पद की गरिमा बनाए रखना सभी का दायित्व है।
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