एमबीएम न्यूज़ /शिमला
कोटखाई के चर्चित गुड़िया हत्याकांड मामले का एक साल बीतने के बाद भी गुड़िया को इंसाफ नहीं मिल पाया है और यह मामला पहेली बनता जा रहा है। एक आरोपी अनिल को सलाखों के पीछे भेजकर सीबीआई ने भले ही इस पेचीदा मामले को सुलझाने का दावा किया है, लेकिन गुड़िया के पिता ने सीबीआई की सारी थ्योरी पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। आज शिमला के ऐतिहासिक रिज मैदान पर मीडिया के समक्ष गुड़िया के पिता ने अपना दर्द ब्यां किया। उन्होंने यहां तक कह दिया कि गुड़िया को गरीब होने की सजा मिली। वह गरीब घर में पैदा हुई थी और पैसे के बल पर इस मामले को दबा दिया गया। यदि वह किसी विधायक की बेटी होती, तो पता नहीं आज क्या होता ?
रौंधे स्वर से गुड़िया के पिता ने कहा कि पहले पुलिस ने इस मामले में लापरवाही बरती और अब सीबीआई की जांच भी गले नहीं उतर रही। सीबीआई जिस आरोपी को इस मामले का सूत्रधार बता रही है, वह अकेला इस वारदात को अंजाम नहीं दे सकता था। उनके सवाल थे कि पेशे से चिरानी आरोपी अनिल 9 माह तक सीबीआई से कैसे बच सकता था और इससे भी बड़ी बात कि गुड़िया के लापता होने के बाद अढ़ाई दिन तक उसने शव को कहां छिपा कर रखा होगा। मृतका के पिता का कहना था कि आरोपी चिरानी अनिल की गुड़िया के शव को ठिकाने लगाने में संलिप्तता हो सकती है, लेकिन वह यह मानने को तैयार नहीं हैं कि उसने बलात्कार किया होगा और अकेले पूरी वारदात को अंजाम दिया होगा।
सीबीआई जांच पर सवाल उठाते हुए गुड़िया के पिता ने आगे कहा कि जिस दिन गुड़िया गायब हुई उस दिन वह परिवार के सदस्यों सहित दांदी के जंगल में बेटी को तलाशने गए और वहां मौजूद चरानियों व खच्चर वालों से बात की। लेकिन उस दौरान नीलू चरानी वहां नहीं था। उन्होंने कहा कि गुडिया के शव में मिट्टी का एक कण तक नहीं लगा था। शव पूरी तरह से साफ सुथरा था तथा कपड़े साथ पड़े थे। दरिंदों ने शव में एक भी कपड़ा नहीं रखा था। उन्होंने यह भी सवाल किया कि गुडिया की जुराबे व दो क्लिप गायब क्यों थे?
उन्होंने जोर देकर कहा कि गुडिया को न्याय मिलना चाहिए और इस मामले की पुनः जांच होनी चाहिए। दरिंदों को किसी भी सूरत में फांसी से कम सजा नहीं मिलनी चाहिए। इस बीच रिज मैदान पर आज स्वयं सेवी संस्था मदद सेवा ट्रस्ट द्वारा गुड़िया मामले पर एक पुस्तक का विमोचन किया गया। इस अवसर पर पूर्व डीजीपी आई डी भण्डारी व गुड़िया के पिता विशेष तौर पर मौजूद रहे। ट्रस्ट की अध्यक्षा तनुजा थापटा ने कहा कि गुड़िया मामले मे हुई जांच से कोई भी संतुष्ट नजर नहीं आता है तथा इस एक साल में हुए घटनाक्रम में कई जांच हुई और कई फैसले बदले गए हैं। भले ही सीबीआई ने मामले को सुलझाने की बात कर एक आरोपी को पकड़ा, परंतु पूर्व में हुए घटनाक्रम इसी ओर इशारा करतें है कि पूरा न्याय अभी नही हुआ है। उन्होंने कहा कि लेखक अश्वनी शर्मा द्वारा लिखित व दीपक सुंदरियाल द्वारा परिकल्पित इस पुस्तक में गुड़िया कि “आत्मव्यथा” को दर्शाया गया है।
गौरतलब है कि 6 जुलाई 2017 को कोटखाई के जंगल में गुड़िया का नग्न शव पाया गया था। दुष्कर्म के बाद गुड़िया को बड़ी बर्बरता से मौत के घाट उतार दिया गया था। गुड़िया दसवीं कक्षा की छात्रा थी और 4 जुलाई को रहस्यमयी हालात में गायब हो गई थी। इस मामले की प्रारंभिक जांच हिमाचल पुलिस की एसआईटी ने की और 12 जुलाई 2017 को छह लोगों को आरोपी बताकर गिरफतार कर लिया। 18 जुलाई की मध्यरात्रि एक कथित आरोपी सूरज की कोटखाई थाने के लाॅकअप में हत्या हो गई है। पुलिस पर साक्ष्य मिटाने के लिए सूरज की सुनियोजित हत्या करने का आरोप लगा। अगले दिन प्रदेश हाईकोर्ट ने गुड़िया व सूरज मामलों की जांच सीबीआई के सुपूर्द कर दी। सूरज लाॅकअप केस में सीबीआई ने 29 अगस्त 2017 को एसआईटी के प्रमुख व पुलिस के आईजी जहूर जैदी सहित 9 पुलिस वालों को गिरफतार किया। 16 नवंबर 2017 को शिमला के पुर्व एसपी डीडब्लयू नेगी गिरफतार हुए। दूसरी तरफ गुड़िया प्रकरण में सीबीआई ने करीब 9 माह की पडताल के बाद 13 अप्रैल 2018 को पेशे से चिरानी अनिल को शिमला जिले के कोटखाई से दबोच कर गुड़िया मामले को सुलझाने का दावा किया।
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