हमीरपुर (एमबीएम न्यूज़) : कहते है राजनीति में कुछ भी संभव है। शंतरज व राजनीति की बिसात एक ही तरह से बिछी होती है। किसी को भी यह
पता नहीं होता है कि उसे कोई मात दे दे। ऐसा ही हाल सूबे की विधानसभा सीट भोरंज में कुछ ही दिनों में देखने को मिला है। चुनावी मैदान में जो जनता का दुलारा एक भी चुनाव नहीं हारा। राजनीति में गुरूजी के नाम से विख्यात उसी दुलारे का वंश अब गुमनामी की तरफ जाने को मजबूर है। वे कहते थे कि इतने साल राजनीति में रहकर भी उनके दामन पर कोई दाग नहीं था।

क्या इसे ही कीचड़ में कमल का खिलना नहीं कहते स्व. आईडी धीमान ने भोरंज सीट से 1998, 2003, 2007, 2012 के चुनाव भी जीते। लेकिन इस बार के चुनाव में भाजपा हाईकमान ने डॉ. अनिल धीमान का टिकट काट दिया। इस तरह भोरंज विधानसभा क्षेत्र में धीमान परिवार का राजनीतिक सूर्य फिलहाल अस्ताचल की ओर है। ये अलग बात है कि निकट भविष्य में धीमान परिवार को भाजपा किसी और चुनाव में किस्मत आजमाने को कहे। लेकिन फिलहाल स्व.आईडी धीमान के परिवार को गुमनामी झेलने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
आईडी धीमान धूमल सरकार में दो बार शिक्षा मंत्री रहे। प्रेम कुमार धूमल उन्हें गुरूजी कहते थे। क्योंकि उन्होंने सातवीं व आठवीं कक्षा में धूमल को पढ़ाया था। अभी धीमान की नौकरी के चार साल बाकी थे कि 1990 में वे राजनीति में कूद गए। विधानसभा चुनाव से एक साल पहले ही वे जनसंपर्क अभियान में जुट गए थे। उस चुनाव की याद करते हुए धीमान बताया करते, आई नॉक्ड एट एवरी डोर टू नो दि प्राब्लम्स ऑफ दैट पर्टीकुलर एरिया और यह सिलसिला 2017 तक जारी रहा। धीमान ने पहला चुनाव बारह हजार मतों से अधिक के अंतर से जीता था। तब धीमान ने उस समय के राजस्व मंत्री धर्म सिंह चौधरी को पराजित किया था। वर्ष 1993 में जब लहर भाजपा के खिलाफ थी वे 450 मतों के अंतर से अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे।
भोरंज नाम से पहचान में आए विधानसभा क्षेत्र में आईडी धीमान की तूती बोलती थी। पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल के शिक्षक रहे ईश्वरदास धीमान ने कोई भी चुनाव नहीं हारा था। इसी विधानसभा के कार्यकाल के दौरान आईडी धीमान का देहावसान हो गया। उनके निधन के बाद खाली हुई सीट पर उपचुनाव हुआ। टिकट उनके डॉक्टर बेटे अनिल धीमान को मिला और वे जीत गए। स्व.आईडी धीामन ने वर्ष 1990 में राजनीति में प्रवेश किया और वर्ष 2017 तक चमकते रहे। उन्होंने मेवा विधानसभा क्षेत्र से लगातार पांच बार चुनाव जीता।
आईडी धीमान भी अपनी राजनीतिक विरासत बेटे को सौंपना चाहते थे। भाजपा ने पिछले चुनाव में आईडी धीमान के निधन से उपजी सेंपेथी वेव को भुनाने के लिए अनिल धीमान को टिकट दिया और वे चुनाव जीत गए। इस बार आस थी कि अनिल को टिकट मिलेगा। लेकिन पार्टी हाईकमान ने भोरंज से कमलेश कुमारी को टिकट दिया। बताया जा रहा है कि अनिल धीमान पार्टी सर्वे की कसौटी पर खरा नहीं उतरे। टिकट न मिलने का कारण जो भी हो लेकिन गुरूजी की राजनीतिक विरासत उनके बेटे को हस्तांतरित करने में पार्टी हाईकमान ने खास रुचि नहीं दिखाई। टिकट न मिलने से अनिल मायूस जरूर हुए हैं। लेकिन उन्होंने खुला विद्रोह नहीं किया है।