एमबीएम न्यूज़/शिमला
झंझीड़ी बस हादसे में हिमाचल प्रदेश पथ परिवहन निगम ने यह साबित कर दिया है कि वह अपने कर्मचारियों के लिए बेपरवाह है। मीडिया रिपोर्ट की मानें तो प्रबंधन ने अपने मृत चालक नरेश कश्यप को घर तक भेजने की व्यवस्था की जहमत नहीं उठाई। आलम यह था कि उसकी पत्नी आईजीएमसी में ठोकरे खा रही थी। करीब-करीब एक डेढ़ साल पहले ठियोग बस हादसे में निगम ने चालक के शव को ऊना उसके घर भेजने के लिए बस की व्यवस्था तो कर दी थी। मगर उस समय सोशल मीडिया में हंगामा मच गया था,जब एक वीडियो सामने आया था। जिसमें चालक के शव को बस की ही सीटों से बांध कर ले जाया जा रहा था। मीडिया में प्रकाशित खबरों में के मुताबिक ट्रांसपोर्ट मंत्री गोविंद ठाकुर को झंझीड़ी बस हादसे की सूचना 9 बजे के आसपास मिल गई थी। मंत्री पूरा दिन सचिवालय में ही बैठे रहे। लेकिन घटनास्थल व आईजीएमसी जाने की जहमत नहीं उठाई। साफ था कि अगर घटना स्थल पर जाते हैं तो लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ेगा। सोलन के बातल के रहने वाले एचआरटीसी के चालक नरेश की भी सोमवार को बस दुर्घटना में मौत हो गई। 32 वर्षीय नरेश के दोनों बच्चे दुर्घटना के समय स्कूल में थे।
आपको बता दे, आइजीएमसी में नरेश का पोस्टमार्टम हो रहा था तो पत्नी को इस बात की चिंता थी कि छोटे बच्चों को स्कूल से कौन लाएगा। पोस्टमार्टम के बाद शव को घर ले जाने की भी कोई व्यवस्था नहीं थी। कुछ अच्छे लोगों ने शव को भेजने के लिए गाड़ी का इंतजाम किया। बच्चों को स्कूल से लाने के लिए रिश्तेदारों को बोलना पड़ा। सारे घटनाक्रम से यह तो साफ़ हो गया कि एचआरटीसी प्रबंधन कि संवेदनहीनता की सारी हदें पार कर गया। ट्रांसपोर्ट मंत्री गोविन्द ठाकुर आईजीएमसी नहीं पहुंचे। स्टाफ के सदस्य की मृत्यु पर एचआरटीसी का एक भी शख्स आईजीएमसी नहीं भेजा गया।
हालांकि आरएम देवासेन नेगी आईजीएमसी से लोगों के गुस्से से बचने के लिए अफसरों के कमरों से होते हुए बाहर निकलने में कामयाब हो गए। जिससे साफ़ पता चलता है कि एचआरटीसी के अफसर अपने स्टाफ के प्रति उत्तरदायित्व निभाने को लेकर कितने गंभीर हैं। कर्तव्यपारयणता से दूर हट कर निजी सुविधाएं उनकी वरीयता में शामिल हैं। इस पुरे मामले में ट्रांसपोर्ट मंत्री कोई प्रतिक्रिया भेजते है तो प्रकाशित जाएगी।
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